तोली-कांटे रोड की हालत नहीं सुधारे जाने से पूर्व सैनिक नाराज

गुरना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली तोली- कांटे सड़क की बदहाल स्थिति पर सैनिक ने गहरी नाराजगी जताई है।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 25 Nov 2020 10:59 PM (IST) Updated:Wed, 25 Nov 2020 10:59 PM (IST)
तोली-कांटे रोड की हालत नहीं सुधारे जाने से पूर्व सैनिक नाराज
तोली-कांटे रोड की हालत नहीं सुधारे जाने से पूर्व सैनिक नाराज

पिथौरागढ़, जेएनएन: गुरना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली तोली- कांटे सड़क की बदहाल स्थिति पर सैनिकों ने गहरी नाराजगी जताई है। कई बार शिकायत के साथ ही समस्या को समाधान पोर्टल पर डाले जाने के बाद भी अधिकारियों की उदासीनता नहीं टूटने से नाराज पूर्व सैनिकों ने सड़कों पर उतरने की चेतावनी दे दी है।

पूर्व सैनिक संगठन के राजेश भट्ट ने कहा है कि तोली-कांटे सड़क लंबे समय से बदहाल स्थिति में है। सड़क पर हुआ डामर जगह-जगह से उखड़ चुका है, जिसके चलते सड़क में जगह-जगह गड्ढे बन गए हैं। लोगों को आवागमन में खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। सड़क पर दुर्घटना की आशंका बनी हुई है। बड़ी संख्या में पूर्व सैनिक इसी सड़क से पेंशन और अन्य कार्यों के लिए प्रतिदिन जिला मुख्यालय आवागमन करते हैं। उन्होंने कहा कि मामला समाधान पोर्टल में भी रखा जा चुका है, लेकिन अभी तक समस्या समाधान के लिए कोई पहल नहीं हुई है। उन्होंने कहा कि जल्द समस्या का समाधान नहीं हुआ तो क्षेत्र के पूर्व सैनिक सड़कों पर उतरने को बाध्य होंगे। ========= अपने गांव ही आने-जाने के लिए आइटीबीपी से लेनी होती है अनुमति पिथौरागढ़: जिला मुख्यालय से सटा एक गांव ऐसा है जिस गांव तक पहुंचने को मार्ग नहीं है। देश की सुरक्षा में तैनात आइटीबीपी वाहिनी मुख्यालय के लिए भूमि देने वाले ग्रामीणों को तीस साल बाद भी पैदल चलने को एक मार्ग नसीब नहीं हुआ है। ग्रामीणों को आज भी अपने गांव से आने जाने के लिए आइटीबीपी की अनुमति लेनी पड़ती है। बाहर के लोग इस गांव तक नहीं पहुंच सकते हैं। तीस वर्षों से स्वतंत्र मार्ग की मांग करने वाले एक सन्यासी सहित चार लोग दुनिया से अलविदा कह गए, परंतु ग्रामीणां को विकल्प मार्ग नहीं मिल सका है।

जिला मुख्यालय के उत्त्तर पूर्व दिशा में स्थित बासुलकटिया जिसे डुंगरी जोशी गांव भी कहते हैं उनकी जमीन वर्ष 1989-90 में आइटीबीपी वाहिनी मुख्यालय के लिए अधिग्रहीत की गई। भूमि अधिग्रहण् ा के दौरान आइटीबीपी ओर जिला प्रशासन ने ग्रामीणों को एक वैकल्पिक मार्ग देने का आश्वासन दिया। ग्रामीणों के गोचर, पनघट,मंदिर सब अधिग्रहण की भेंट तो चढ़े ही साथ में गांव को जोड़ने वाला एकमात्र पैदल मार्ग भी इसकी भेंट चढ़ गया। ग्रामीणों कोआवाजाही के लिए आइटीबीपी की अनुमति लेनी होता है। गेट पर अपने गांव जाने के लिए कहने पर अनुमति मिलती है। बाहर के नाते रिश्तेदारों को गांव जाने के लिए गांव के रिश्तेदार को बुलाना पड़ता है। हैं।

21 नवंबर 2019 को प्रभारी अधिकारी, जिलाधिकारी कार्यालय से एक रिपोर्ट तैयार की गई। जिसमें उस दिन आइटीबीपी के कान्फ्रेंस हाल में बल के आवासीय परिसर के बीच से ग्रामीणों को आने जाने की अनुमति को लेकर हुई वार्ता का जिक्र किया गया। इस वार्ता में तय हुआ कि वाहिनी द्वारा अपने परिसर में 0.014 हेक्टेयर क्षेत्रफल के अंतर्गत चयनित स्थल पर 56 मीटर लंबा और ढाई मीटर चौड़ा रास्ता दिए जाने की सहमति बनी। ग्रामीणों द्वारा खुद मार्ग बनाने का भरोसा भी दिलाया। कई साल बीत चुके है, परंतु कोई कार्यवाही नहीं हो सकी है। अब ग्रामीण मानवाधिकार आयोग और न्यायालय की शरण में जाने की तैयारी में हैं। ग्राम प्रधान मंजू थावल द्वारा मानवाधिकार आयोग के लिए पत्र तैयार किया गया है। जिसमें एक स्वतंत्र मार्ग की मांग की गई है। दूसरी तरफ अपने चिराधिकार के लिए न्यायालय जाने का निर्णय लिया गया है।

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