कण्वाश्रम : ..तो क्या भविष्य बन पाएगा इतिहास

जागरण संवाददाता, कोटद्वार: कोटद्वार क्षेत्र की जनता से यदि कोई पूछे कि पिछले 18 वर्षों में क

By JagranEdited By: Publish:Mon, 17 Dec 2018 03:00 AM (IST) Updated:Mon, 17 Dec 2018 03:00 AM (IST)
कण्वाश्रम : ..तो क्या भविष्य बन पाएगा इतिहास
कण्वाश्रम : ..तो क्या भविष्य बन पाएगा इतिहास

जागरण संवाददाता, कोटद्वार: कोटद्वार क्षेत्र की जनता से यदि कोई पूछे कि पिछले 18 वर्षों में कण्वाश्रम को क्या मिला तो विकास के नाम पर झूठे आश्वासन ही एकमात्र जवाब मिलेगा। पिछले 18 वर्षों में जहां एक ओर कण्वाश्रम को अंतरराष्ट्रीय फलक पर लाने की घोषणाएं हुई। वहीं कण्वाश्रम में पर्यटन विकास को भी तमाम योजनाएं बनी, लेकिन कण्वाश्रम में पसरा सन्नाटा राजनैतिक गलियारों से हुई तमाम घोषणाओं की कलई खोलता दिख रहा है।

राजनैतिक मंचों से कई मर्तबा राष्ट्रीय धरोहर बनाने की घोषणा की गई, लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि जिस कण्वाश्रम ने देश को नाम दिया। आज उसका नाम लेने वाला कोई नहीं। उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ तो उम्मीद जगी कि कण्वाश्रम को पहचान मिलेगी, लेकिन कण्वाश्रम राष्ट्रीय धरोहर बनना तो दूर, उत्तराखंड में ही उपेक्षित पड़ा है। कण्वाश्रम एक समय में अध्यात्म, ज्ञान-विज्ञान का विश्वविख्यात केंद्र था। जिसमें संपूर्ण विश्व के दस सहस्त्र विद्यार्थी कुलपति कण्व से शिक्षा ग्रहण करते थे। महर्षि कण्व, विश्वामित्र, दुर्वासा आदि की तपोस्थली के साथ ही यह स्थान मेनका-विश्वामित्र और शकुंतला व राजा दुष्यंत की प्रणय स्थली भी रहा है। यही वही स्थान है, जहां शकुंतला-दुष्यंत के तेजस्वी पुत्र भरत ने जन्म लिया। वहीं भरत जिनके नाम से देश का नाम भारत पड़ा। प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने वर्ष 1955 में रूस यात्रा की थी। उस दौरान रूसी कलाकारों ने महाकवि कालिदास रचित 'अभिज्ञान शाकुंतलम' की नृत्य नाटिका प्रस्तुत की। एक रूसी दर्शक ने पं. नेहरू से कण्वाश्रम के बारे में जानना चाहा, लेकिन उन्हें जानकारी न थी। वापस लौटते ही पं. नेहरू ने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. संपूर्णानंद को कण्वाश्रम की खोज का दायित्व सौंप दिया। 1956 में प्रधानमंत्री पं. नेहरू व उप्र के मुख्यमंत्री डॉ. संपूर्णानंद के निर्देश पर तत्कालीन वन मंत्री जगमोहन ¨सह नेगी कोटद्वार पहुंचे व कण्वाश्रम (चौकीघाटा) के निकट एक स्मारक का शिलान्यास किया, जो आज भी मौजूद है।

आज भी गुमनाम है पावन स्थल

मालिनी नदी के तट पर स्थित कण्वाश्रम के गौरवमयी इतिहास से देश ही नहीं, सूबे की सरकार भी शायद अनजान लगती है। ऐसा न होता तो आजादी के 70 साल बाद भी कण्वाश्रम गुमनामी के अंधेरे में न डूबा होता। राज्य गठन के बाद कण्वाश्रम को राष्ट्रीय स्मारक के रूप में विकसित करने की घोषणाएं कई राजनैतिक मंचों से हुई। लेकिन, आज तक किसी घोषणा को अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका। प्रदेश के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज सोमवार को कण्वाश्रम को ऐतिहासिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए तैयार होने वाली योजनाओं का शिलान्यास करेंगे। सवाल यह उठ रहा है कि क्या इस मर्तबा भी कण्वाश्रम के विकास की योजनाएं मात्र शिलान्यास तक ही सिमटी रखेंगी अथवा कण्वाश्रम को नई पहचान मिल पाएगी।

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