उत्तराखंड के तीन सपूत बने अफसर

जागरण संवाददाता, श्रीनगर गढ़वाल: शुक्रवार को सशस्त्र सीमा बल अकादमी में आयोजित दीक्षांत परेड से एसएस

By Edited By: Publish:Fri, 06 Feb 2015 08:31 PM (IST) Updated:Fri, 06 Feb 2015 08:31 PM (IST)
उत्तराखंड के तीन सपूत बने अफसर

जागरण संवाददाता, श्रीनगर गढ़वाल: शुक्रवार को सशस्त्र सीमा बल अकादमी में आयोजित दीक्षांत परेड से एसएसबी में शामिल हुए 108 सहायक सेनानायकों में तीन उत्तराखंड के भी सपूत शामिल हैं। हाथीबड़कला देहरादून निवासी कनिष्क चौधरी को इंडोर सब्जेक्ट्स में श्रेष्ठ प्रशिक्षु का खिताब मिला है। उत्तराखंड पुलिस में सेवारत उसके पिता पीके चौधरी और माता डॉ. नीरजा चौधरी ने बताया कि कनिष्क शुरू से ही रक्षा सेवाओं के प्रति आकर्षित रहा। बेटे को अधिकारी बनता देखना काफी सुखद अनुभव है।

पूर्ति निरीक्षक की नौकरी छोड़ी

पडियारगांव पोखड़ा पौड़ी निवासी त्रिभुवन धस्माना ने अपनी 12वीं तक की शिक्षा राइंका पोखड़ा में और उसके बाद एमए अंग्रेजी और बीएड की शिक्षा ऋषिकेश में प्राप्त की। बचपन से ही रक्षा सेवाओं में जाने का लक्ष्य बनाए त्रिभुवन ने उत्तराखंड लोक सेवा आयोग से पूर्ति निरीक्षक पद पर चयन होने के बावजूद नियुक्ति नहीं ली। उन्होंने देश सेवा के लिए एसएसबी को चुना। पिता सतीश धस्माना हरिद्वार में पुरोहित का कार्य करते हैं। मां संपत्ति देवी गृहणी हैं जबकि उसका छोटा भाई अभी अध्ययनरत है।

पहले एसआइ अब बने कमांडेंट

पिथौरागढ़ के दशोली गांव निवासी किशोर कुमार पाठक वर्ष 2007 में सशस्त्र सीमा बल में बतौर सब इंस्पेक्टर भर्ती हुए। इसके बाद सहायक सेनानायक बनने का अपना पुराना लक्ष्य पूरा करने की ठानी। कड़ी मेहनत से परीक्षा पास की और 2014 में अपने इस सपने को पूरा कर एसएसबी अकादमी में बतौर प्रशिक्षु प्रवेश लिया। शुक्रवार को पासआउट हुए किशोर का छोटा भाई भी बीएसएफ में सब इंस्पेक्टर पद पर कार्यरत है।

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अभी तो सामने है चुनौतियों का पहाड़

श्रीनगर गढ़वाल: नौबस्ता कानपुर निवासी प्रभाकर सिंह सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) के प्रशिक्षु सहायक सेनानायकों में सर्वश्रेष्ठ प्रशिक्षु के खिताब से नवाजे गए हैं। उन्हें गृहमंत्री ने स्वार्ड ऑफ ऑनर प्रदान की। कानपुर विश्वविद्यालय से वर्ष 2008 में स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले प्रभाकर सिंह के पिता यदुनाथ सिंह की बिजली की सामानों की दुकान है। दो भाई दो बहनों में सबसे बड़ा प्रभाकर सिंह अपने परिवार में पहले व्यक्ति हैं जिसने अ‌र्द्धसैन्य बल को चुना। प्रभाकर का कहना है कि रक्षा सेवाओं को लेकर उसे बचपन से ही उनका आकर्षण था। उन्होंने कहा कि अभी तो सिर्फ पहला कदम ही पार किया है। असल चुनौतियां तो आनी बाकी है। उन्होंने कहा कि स्वार्ड ऑफ ऑनर पाना हर जवान का सपना होता है। पर कड़ी मेहनत, लगन के साथ ही इसे पाया जा सकता है।

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