Uttarakhand lockdown : भूखे-प्यासे रेलवे की पटरी पकड़कर चल दिए घर के रास्ते, मां-बाप काे सता रही चिंंता

मुरादाबाद निवासी तीन नौजवान गुरुवार को पैदल ही घर के लिए निकल दिए। नैनीताल व रामनगर के बीच कंट्रक्शन साइट पर काम करने वाले युवाओं ने बताया कि काम ठप होने के कारण वे बेबश हो गए हैं।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Thu, 26 Mar 2020 04:58 PM (IST) Updated:Thu, 26 Mar 2020 09:07 PM (IST)
Uttarakhand lockdown : भूखे-प्यासे रेलवे की पटरी पकड़कर चल दिए घर के रास्ते, मां-बाप काे सता रही चिंंता
Uttarakhand lockdown : भूखे-प्यासे रेलवे की पटरी पकड़कर चल दिए घर के रास्ते, मां-बाप काे सता रही चिंंता

काशीपुर, अभय पांडेय : कोरोनावायरस के कारण पैदा हुए लाॅकडाउन की मार सबसे अधिक दिहाडी मजदूरों पर पडी है। दिनभर मेहनत कर दो जून की रोटी का इंतजाम करने वाले मेहनतकश लोग सबकुछ ठप हो जाने के कारण बेबश हो गए हैं। वैसे तो शासन-प्रशासन श्रमिकों को मदद देने के लिए प्रबंध कर रहा है लेकिन तत्‍काल सब तक पहुंचना संभव नहीं है। यही कारण है कि लोग अपने घरों के लिए पैदल ही निकलने लगे हैं। मुरादाबाद निवासी तीन नौजवान गुरुवार को पैदल ही घर के लिए निकल दिए। नैनीताल व रामनगर के बीच कंट्रक्शन साइट पर काम करने वाले युवाओं ने बताया कि, 20 दिन तक काम ठप होने के कारण उन्‍हें छुट्टी दे दी गई है। ऐसे में अब उनके पास रहने तक का ठिकाना नहीं है। मजबूरी में तीनों युवाओं ने देर रात पैदल ही मुरादाबाद जाने का निर्णय ले लिया। सुबह होते तकरीबन 11 बजे के करीब ये काशीपुर पहुंचे थे। तरकरीब 130 किलोमीटर की दूरी तय कर ये लड़के अपने घर पहुंचेंगे।

रात में एक क्राॅसिंग पर गैटमेन ने दी मदद

मुरादाबाद के हरतला निवासी गुड्डू, परमजित व राजा ने बताया कि घर पहुंच जाए तभी चैन मिलेगा। क्योंकि बाहर कब तक कोई मदद करेगा। उन्होंने बताया कि जिस कंट्रक्शन साइट पर काम कर रहे थे वहां काम बंद कर ठेकेदार ने उन्‍हें पांच सौ रुपये देकर वापस चले जाने की बात कही। इन युवाओं का कहना है कि जब वह रास्ते में आ रहे थे एक गैटमेन ने उन्हें रोका और उनसे जानकारी ली। मदद के तौर पर उसने अपने पास से उन्हें रोटी खिलाई और पानी पिलाया। इन दिहाड़ी मजदूरों का कहना है कि घर पर भी मां- बाप परेशान हैं। वह भी चाहते हैं कि कैसे भी हम घर आ जाए।

हजारों मजदूरों के सामने रहने और खाने का संकट

कोरोना को लेकर काम धंधा पूरी तरह से बंद होने का सबसे ज्यादा असर दिहाड़ी मजदूरों पर हुआ है। इनके सामने परिवार को पालने के साथ 21 दिनों तक घर का चूल्हा जलाते रहने की चुनौती है। मदद के नाम पर एक वक्त कुछ मिल भी जाए तो दूसरे वक्त की चिंता खाए जा रही है। सबकुछ ठप हो जाने के कारण मजदूर वर्ग पूरी तरह से बेबश हो गया है। संकट की यह घडी भी ऐसी है कि लोग चाहकर भी मदद नहीं कर पा रहे हैं। ऐसी बेबशी और लाचारी पहले कभी न देखी गई।

दो दिन पहले रामपुर से पैदल पहुंचे भीमताल

रातीघाट, गरमपानी के तीन युवाओं को भी कोरोना संक्रमण के चलते प्रदेश में लागू लॉकडाउन ताउम्र याद रहेगा। दिल्ली से घर लौट रहे इन युवाओं को रामपुर से जब कोई वाहन नहीं मिला तो वह पैदल सफर पर मंजिल की ओर चल निकले। भूखे-प्यासे इन युवाओं ने करीब 110 किमी की दूरी पैदल नापी। रातीघाट, गरमपानी निवासी, सुरेंद्र, उमेश और भूपेंद्र सिंह दिल्ली में एक निजी संस्थान में नौकरी करते हैं। कोरोना के खौफ के चलते अपने अन्य साथियों की भांति इन लोगों ने भी घर लौटने का फैसला किया। दिल्ली से कोई वाहन न मिलने पर यह तीनों युवक बीते रविवार को गाजियाबाद तक पैदल पहुंचे। रात में उन्हें वहां एक ट्रक मिल गया। ट्रक चालक से मदद की गुहार की तो वह रामपुर तक इन तीनों लोगों को ले आया। रामपुर से जब उन्हें हल्द्वानी के लिए कोई वाहन नहीं मिला तो तीनों पैदल सफर पर निकल पड़े था।

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