राम जन्मभूमि आंदोलन की यातनाएं सरल थीं क्योंकि तब तक हम झेल चुके थे आपातकाल

विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय सह मंत्री स्नेह पाल श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के समय के प्रतिबंध यातनाओं को कठिनाई के तौर पर नहीं देखते।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Fri, 31 Jul 2020 08:25 AM (IST) Updated:Fri, 31 Jul 2020 08:25 AM (IST)
राम जन्मभूमि आंदोलन की यातनाएं सरल थीं क्योंकि तब तक हम झेल चुके थे आपातकाल
राम जन्मभूमि आंदोलन की यातनाएं सरल थीं क्योंकि तब तक हम झेल चुके थे आपातकाल

हल्द्वानी, जेएनएन : विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय सह मंत्री स्नेह पाल श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के समय के प्रतिबंध, यातनाओं को कठिनाई के तौर पर नहीं देखते। वह कहते हैं राम जन्मभूमि आंदोलन की कठिनाई इसलिए सरल थी क्योंकि आपातकाल में हम उन कष्टों को झेल चुके थे जो बड़ी जटिल और कठिन थे। तब हमें जेल जाना पड़ा था। बड़ी यातनाएं झेली। राम जन्मभूमि के समय का आंदोलन तो आनंद का विषय था। उस समय तो सरकारी अधिकारियों का व्यवहार, कार्यशैली काफी बदली थी। पुलिस और प्रशासन के अधिकारी रास्ता बताते थे कि किस तरह काम करना है, ताकि कोई पकड़ा न जाए और काम भी हो जाए।

उस समय की याद ताजा करते हुए पाल बताते हैं कि विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष अशोक सिंघल वेश बदलकर प्रचारक की मोटरसाइकिल में पूरी अयोध्या घूम लेते थे। किसी को इसका पता नहीं लगता था। ऐसे ही हम लोग जो सक्रिय कार्यकर्ता थे दूसरों को साथ लेकर काम करते थे। आंदोलन के समय मैं दिल्ली के आसपास के इलाकों में था। मेरे पास चार जिलों की जिम्मेदारी थी। मैं प्रचारक था। पुलिस पकड़ने आती थी। पुलिस से कैसे बचना है यह हमारे जैसे पुराने लोगों को पता था। नए कार्यकर्ता पकड़े जाते थे। पुलिस थाने में मीटिंग है करके बुलाती और फिर उन्हें जेल भेज दिया जाता था। ऐसे अनेक प्रकार के अनुभव रहे। जेल में रहकर और मजबूत होते थे।

देशवासियों ने हिम्मत के साथ काम किया। सभी मानते थे कि यह रामजी का काम है। आस्था का विषय था। भगवान के काम को करने में जो आनंद रहता है उसे अनुभव कर रहे थे। प्रतिबंध, यातनाएं जोश भर देती थी। कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ जाता और आगे के लिए जुट पड़ते। सिंघल का मार्गदर्शन अंडर करेंट भर देता। अंडर ग्राउंड वर्किंग, जगह-जगह रुककर रास्ते बदलकर, खेत-जंगल के रास्ते अयोध्या जाते थे। ग्रामीणों का सहयोग मिलता था। जहां से गुजरते लोग मदद के लिए जुट जाते। जिन लोगों को हम कुछ नहीं समझते थे वही हमारे लिए भगवान बने थे।

आज हम जो दिन देख रहे हैं ये समाज के सहयोग से हुआ था। समाज का काम था। ये एक तरह से स्वप्न के पूरा होने जैसा है। किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि ऐसा भी दिन जा सकता है, लेकिन एक आंदोलन के कारण देश की मानसिकता बदल गई। नक्शा बदल गया। सामाजिक, राजनीतिक परिस्थति में परिवर्तन आ गया। सिंघल के स्वप्न हमें पता थे। उन्हीं की प्रेरणा से आज भी लगे हैं। हम यह नहीं मानते कि राम मंदिर बनना ही एकमात्र उद्देश्य था। अभी और भी बहुत सारे काम होने हैं। ये एक अच्छी शुरुआत है। उत्साह का वातावरण बना हैं।

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