1989 के चुनाव में अल्मोड़ा संसदीय सीट पर उक्रांद के काशी को मिला था व्यापक जनसमर्थन

नौवीं लोकसभा के लिए 1989 में हुए चुनाव में पूरे देश में सियासत की हवा बदलने वाली थी। इस हवा का असर अल्मोड़ा लोकसभा सीट में भी दिखाई दिया था।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Tue, 02 Apr 2019 09:32 AM (IST) Updated:Tue, 02 Apr 2019 09:32 AM (IST)
1989 के चुनाव में अल्मोड़ा संसदीय सीट पर उक्रांद के काशी को मिला था व्यापक जनसमर्थन
1989 के चुनाव में अल्मोड़ा संसदीय सीट पर उक्रांद के काशी को मिला था व्यापक जनसमर्थन

बागेश्वर,चंद्रशेखर द्विवेदी : नौवीं लोकसभा के लिए 1989 में हुए चुनाव में पूरे देश में सियासत की हवा बदलने वाली थी। इस हवा का असर अल्मोड़ा लोकसभा सीट में भी दिखाई दिया था। उस दौर में पहाड़ से राष्ट्रीय फलक पर छाने को बेताब था क्षेत्रीय पार्टी उत्तराखंड क्रांति दल (यूकेडी) का 36 वर्षीय एक युवा। मतगणना के दिन 35 हजार मतपत्र अवैध घोषित होने से भले ही क्षेत्रीय दल का यह नेता चुनाव नहीं जीत पाया था, लेकिन पहाड़ की राजनीति में वह स्थापित जरूर हो गया। पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में हुए लोकसभा चुनाव में उनके उत्तराधिकारी के रूप में सामने आए राजीव गांधी। तब उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने बहुमत से सरकार भी बनाई। फिर 1989 का चुनाव बड़ा बदलाव लेकर आया, कांग्रेस को बहुमत नहीं मिला और वीपी सिंह ने गठबंधन की सरकार बनाई।

यह चुनाव अल्मोड़ा संसदीय सीट के लिए भी कुछ अलग था। तब यहां से बदलाव की बयार चल रही थी। एक नई क्षेत्रीय पार्टी उत्तराखंड क्रांति दल राष्ट्रीय फलक में छाने के लिए बेचैन थी। उक्रांद को नेता के रूप में मिले काशी सिंह ऐरी। उस समय पर्वतीय क्षेत्र के निवासियों को 27 फीसदी आरक्षण दिए जाने की मांग भी पुरजोर तरीके से चल रही थी। इस मुहिम के नेता भी ऐरी थे। जब ऐरी चुनावी मैदान में उतरे तो उनके सामने थे लगातार दो बार चुनाव जीत कर लोकसभा पहुंच चुके दिग्गज कांग्रेसी हरीश रावत।

हरीश रावत सियासी चालों के माहिर माने जाते थे। नौवीं लोकसभा का चुनाव प्रचार शुरू हुआ। तब इस सीट में दो ही जिले अल्मोड़ा और पिथौरागढ़ ही थे। दो अन्य जिले बागेश्वर और चंपावत 1997 में बने। तब दोनों जिलों में सिर्फ उक्रांद के चुनाव निशान बाघ की ही दहाड़ थी। पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे 36 साल के काशी सिंह ऐरी को जनता का व्यापक समर्थन मिला। वह 1985 में डीडीहाट से उत्तर प्रदेश की विधानसभा में प्रतिनिधित्व कर चुके थे। ऐसा जनसमर्थन उसके बाद के लोकसभा चुनावों में आज तक किसी भी क्षेत्रीय पार्टी को नहीं मिला। मतदान हो चुका था। जनता लगभग यह मान रही थी कि उनको पहाड़ का नया नेता मिल गया है। तब लगने लगा था कि काशी सिंह ही जीतेंगे। अल्मोड़ा में वोटों की गिनती चल रही थी। इस दौरान करीब 35 हजार मतपत्र अवैध घोषित हुए।

दरअसल चुनाव आयोग ने इसका कारण मतपत्रों में स्याही का फैलना बताया था। दोनों तरफ स्याही के निशान के चलते मतपत्र ही अवैध घोषित कर दिए गए। गिनती को लेकर काफी हंगामा हो गया, लेकिन इस समय तक हुई मतगणना में हरीश रावत आगे निकल चुके थे। लगातार दो बार के सांसद हरीश रावत इस चुनाव में मात्र 10701 वोट से जीत गए। रावत को 149703 मत व ऐरी को 138902 मत मिले। चुनाव भले ही ऐरी हार गए हों लेकिन वह चुनाव के बाद पहाड़ के नेता के रुप में स्थापित हुए। इन्ही चुनावों के बाद ही उत्तराखंड के अलग राज्य को लेकर  आंदोलन भी शुरु हुआ और नवबंर 2000 में अलग उत्तराखंड राज्य मिला। ऐरी इस आंदोलन अहम हिस्सा बने रहे।

यह भी पढ़ें : विपक्ष पर गरजे गृहमंत्री राजनाथ सिंह, बोले- वीर शव नहीं गिनते, यह काम गिद्धाें का

यह भी पढ़ें : प्रमोशन में एससी-एसटी कोटे के आरक्षण पर रोक संबंधी सरकार की अधिसूचना पर निरस्‍त

chat bot
आपका साथी