Uttarakhand Chunav 2022 : चुनाव में खो जाते हैं आधी आबादी के मुद्दे, पहाड़ सी जिंदगी जीती हैं पहाड़ की महिलाएं
21 सालों में हुए विधानसभा लोकसभा चुनावों में महिलाओं के सिर से बोझ कम करने के दावे किए गए है। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ ओर ही है। अभी भी शहरों के अपेक्षा 70 फीसदी आबादी गांवों में रहती है। लेकिन हालात देखने पर सब अपने आप पता चल जाता है।
विनय कुमार शर्मा, चम्पावत। हरित क्रांति की बात करें या फिर राज्य गठन के संघर्ष या शराब विरोधी आंदोलन हो। उत्तराखंड की महिलाओं ने हर मोर्चे पर बखूबी लड़ा और एक मिसाल कायम की। राज्य गठन के बाद आज राज्य में पांचवी विधानसभा गठित होने वाली है। कुछ दिनों में ही चुनाव है। लेकिन प्रदेश की आधी आबादी आज भी उपेक्षित है। गरीबी, कुपोषण के कारण पहाड़ की महिलाएं आज भी उम्र के आधे पड़ाव को भी पार नही कर पाती। शिक्षा के प्रसार के लिए कई योजनाएं चली लेकिन वह भी सफल होती नही दिखाई दे रही है। इन 21 सालों में हुए विधानसभा, लोकसभा चुनावों में महिलाओं के सिर से बोझ कम करने के दावे किए गए है। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ ओर ही है। अभी भी शहरों के अपेक्षा 70 फीसदी आबादी गांवों में रहती है। लेकिन वहां के हालात देखने पर सब अपने आप पता चल जाता है।
दो जून के लिए जलाती है खून
पहाड़ की महिलाएं हर रोज सुबह से लेकर देर रात तक दो जून की रोटी के लिए हाड़तोड़ मेहनत करती है। महिला सशक्तिकरण व रोजगार के नारे बस कागजों पर ही दिखाई देते है। रोजगार के अभाव में पुरूष अक्सर बाहर शहरों में नौकरी करता है और महिला घर में मेहनत कर परिजनों की देखभाल करती है।
70 फीसद ही साक्षर
प्रदेश में कुल 70 फीसद महिलाएं ही साक्षर है। जबकि 87.4 फीसद पुरुष साक्षर है। पहाड़ी क्षेत्रों में तो महिला साक्षरता की हालत और भी खराब है। प्रदेश में सबसे कम साक्षरता उत्तरकाशी में केवल 62.4 फीसद है। कुमांऊ में ऊधम सिंह नगर के बाद सबसे कम महिला साक्षरता चम्पावत जिले में है। यहां केवल 68 फीसद महिलाएं ही साक्षर है।
महिला साक्षरता दर
जिला महिला साक्षरता दर
उत्तरकाशी 62.4 फीसद सबसे कम
टिहरी 64.3
ऊधमसिंहनगर 64.4
हरिद्वार 64.8
चम्पावत 68
पिथौरागढ़ 72.3
बागेश्वर 69
अल्मोड़ा 69.9
नैनीताल 77.3
(2011 की जनगणना के अनुसार)
प्रदेश में कुल महिला मतदाता
कुल मतदाता महिला पुरुष
7599688 3572045 3923492