प्रेमा बहन ने सात सौ महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़कर बच्चों को बालश्रम के दलदल से निकाला

Shardiya Navratri 2022 प्रेमा बहन (Prema Bahan) ने बताया कि लक्ष्मी आश्रम कौसानी में शिक्षा और व्यवहारिक कार्य करते समय मन में एक विचार आया। लक्ष्मी आश्रम तो केवल गरीब बेटियों के लिए है। लेकिन विधवा और परित्यक्ता महिलाएं भी तो हैं। जिन्हें समाज की मुख्यधारा की तरफ कौन मोड़ेगा।

By ghanshyam joshiEdited By: Publish:Tue, 27 Sep 2022 09:23 AM (IST) Updated:Tue, 27 Sep 2022 09:23 AM (IST)
प्रेमा बहन ने सात सौ महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़कर बच्चों को बालश्रम के दलदल से निकाला
प्रेमा बहन ने सात सौ महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़कर बच्चों को बालश्रम के दलदल से निकाला

घनश्याम जोशी , बागेश्वर : Shardiya Navratri 2022 : प्रणाम आश्रम, कौसानी (Pranam Ashram Kausani) की प्रेमा बहन  (Prema Bahan) कहती हैं, महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना बेहद जरूरी है। आर्थिक स्वतंत्रता ही वह जरिया है जो महिलाओं को सम्मान और बराबरी दिला सकता है।

मैंने जिन महिलाओं को सम्मान से समाज में जीना सिखाने की मुहिम छोड़ी, उसमें तमाम बाधाएं थीं। सबसे पहली बात यह महिलाएं स्किल्ड नहीं थीं। लिजाहा उन्हें अलग-अलग कामों का प्रशिक्षण देकर स्वरोजगार के लिए प्रेरित किया। आज वह सम्मान से अपने हक की कमाई खा रही हैं।

विधवा और परित्यक्ता के लिए किया काम

प्रेमा बहन ने बताया कि लक्ष्मी आश्रम कौसानी में शिक्षा और व्यवहारिक कार्य करते समय मन में एक विचार आया। लक्ष्मी आश्रम तो केवल गरीब बेटियों के लिए है। लेकिन विधवा और परित्यक्ता महिलाएं भी तो हैं। जिन्हें समाज की मुख्यधारा की तरफ कौन मोड़ेगा। उनके बच्चे भी हैं और उन्हें शिक्षित भी तो होना है। फिर क्या था प्रणाम आश्रम की प्रेमा बहन ने एक कदम आगे बढ़ाया और फिर लौट कर कभी पीछे नहीं देखा।

22 वर्ष से महिला सशक्तिकरण के लिए कर रहीं काम

कौसानी प्रणाम आश्रम की प्रेमा बहन विधवा और परित्यक्ता महिलाओं पर काम कर रही हैं। वह पिछले 22 वर्ष से महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में महिलाओं की बेहतरी को आश्रम संचालित कर रही हैं। उनकी उम्र 62 वर्ष हो गई है। लेकिन उनमें अभी भी महिलाओं को समाज से जोड़ने का जज्बा कायम है।

सात सौ महिलाओं को स्वरोजगार के लिए किया प्रेरित

अभी तक वह क्षेत्र की 700 महिलाओं को स्वरोजगार को प्रेरित कर चुकी हैं। वर्तमान में विधवा और परित्यक्ता 60 महिलाओं के लगभग 150 बच्चों को पठन-पाठन, कपड़े आदि की मदद भी करती हैं। इन महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए उनकी समझ शक्ति, खोज शक्ति और उनमें जागृति पैदा कर रही हैं।

बाल श्रमिक पर किया प्रहार

प्रेमा बहन ने कहा कि 1908 में यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार 75 प्रतिशत बाल श्रमिक केवल भारत में थे। किन परिस्थितियों से बच्चे बाल श्रमिक बनते हैं। उसे जानने की कोशिश की। जिसमें विधवा और परित्यक्ता महिलाओं के बच्चे अधिक मिले। उनकी माताओं से संपर्क किया। उनकी समस्या सुनी।

वह कहतीं थी कि कोई उन्हें बीस रुपये देने को भी तैयार नहीं रहता है। ऐसे में उनके हाथों को काम देने की ठानी और बच्चों को शिक्षित करने का लक्ष्य रखा। वर्तमान में कई माताओं के बच्चे डाक्टर, इंजीनियर, नेवी जबकि बेटियों एएनएम बनी हैं। कई खेलों में गईं और कुछ कुशल गृहिणियां भी हैं।

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