india-china tension : नेपाल के रुख में बढ़ रही तल्खी, कालापानी और लिपुलेख तक करेगा निगरानी

india-china tension पुलेख-गर्बाधार मार्ग निर्माण के बाद तेजी से बदले हालात में नेपाल के रुख में तल्खी बढ़ती जा रही है।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Sun, 02 Aug 2020 07:27 PM (IST) Updated:Mon, 03 Aug 2020 08:23 AM (IST)
india-china tension : नेपाल के रुख में बढ़ रही तल्खी, कालापानी और लिपुलेख तक करेगा निगरानी
india-china tension : नेपाल के रुख में बढ़ रही तल्खी, कालापानी और लिपुलेख तक करेगा निगरानी

अभिषेक राज, हल्द्वानी : india-china tension : लिपुलेख-गर्बाधार मार्ग निर्माण के बाद तेजी से बदले हालात में नेपाल के रुख में तल्खी बढ़ती जा रही है। सुरक्षा का हवाला देते हुए उसने सीमावर्ती क्षेत्रों में 106 बीओपी स्थापित कर दी। अब नेपाल ने उत्तराखंड के पिथौरागढ़ से सटी छांगरु बॉर्डर आउटपोस्ट (बीओपी) को कव्वा में स्थापित करने की तैयारी शुरू कर दी है। यहां से वह कालापानी और लिपुलेख पर सीधी नजर रखेगा। ऊंचाई वाले इस स्थल से पूरे कैलास मानसरोवर मार्ग की भी निगरानी की योजना है। लिपुलेख से सटे पाला क्षेत्र में चीन की सैन्य छावनी निर्माण के बाद नेपाल की गतिविधि से सुरक्षा एजेंसियां अलर्ट हैं।

कव्वा में बीओपी निर्माण के मद्देनजर नेपाल सशस्त्र बल ने सीमा पर स्थापित विनायक पोस्ट शनिवार को हटा ली। नेपाल सशस्त्र बल ने पिथौरागढ़ जिले की सीमा से लगे क्षेत्र में पांच बीओपी बनाई थी। इसमें से बुरकिल और बलारा पोस्ट पहले ही हटा ली थी। इधर अब काली नदी पार बनाई गई विनायक पोस्ट भी हटा ली है। सूत्रों के अनुसार नेपाल अब चीन सीमा से लगे उच्च हिमालयी कालापानी से सटे कव्वा में अपनी गतिविधि बढ़ा रहा है। इसीलिए वह दूसरी बीओपी समेटने में लगा है।

स्थाई छावनी की योजना

नेपाल ने कव्वा में 160 सैनिकों की नियमित टुकड़ी तैनात करने की योजना बनाई है। अंतरराष्ट्रीय सीमा क्षेत्र से करीब 17 किमी दूर से नेपाल कालापानी के साथ ही लिपुलेख व कैलास मानसरोवर मार्ग पर नजर रखने में सक्षम हो जाएगा।

विवाद की जड़

नेपाल कुटी नदी को सीमा बताता है। हालांकि सुगौली संधि में कालापानी को सीमा माना गया है। कुटी नदी के दूसरी तरफ गुंजी, नाबी और कुटी गांव हैं। कुटी की तरफ ही चीन सीमा से सटे लिंपियाधुरा भी है। कुटी नदी गुंजी में काली नदी से मिलती है। यहां से नौ किमी दूर कालापानी है, जो भारतीय सीमा है। कालापानी से नौ किमी आगे नावीढांग है। यहां से 10 किमी दूर लीपुलेख। नेपाल ने अपने नक्शे में कालापानी से लेकर नावीढांग, लीपुलेख से लेकर लिंपियाधुरा तक अपना बताया है।

काठमांडू-महाकाली कॉरिडोर पर भी तेज किया काम

गर्बाधार-लिपुलेख मार्ग निर्माण के जवाब में नेपाल ने काठमांडू-महाकाली कॉरिडोर पर काम तेज कर दिया है। इसके तहत उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले से सटे नेपाल के दार्चुला-तिंकर तक सड़क का निर्माण होगा। इसकी कुल लंबाई 87 किलोमीटर निर्धारित है। इसे नेपाली सेना गश्त के साथ ही आवाजाही के लिए उपयोग करेगी। गत दिनों सैन्य प्रवक्ता विज्ञान देव पांडेय ने अपने बयान में कहा था कि कॉरिडोर निर्माण के बाद कैलास मानसरोवर मार्ग पर नेपाली सेना आसानी से नजर रख सकेगी। इसके बाद नेपाल के उच्च हिमालयी दो गांवों के लोगों को माइग्रेशन के लिए भारत की भूमि का प्रयोग नहीं करना होगा।

शारदा बैराज की जमीन पर किया दावा

टनकपुर के शारदा बैराज के निकट भारत- नेपाल बॉर्डर के नो मेंस लैंड पर हुए अतिक्रमण में नेपाल ने नया राग अलापना शुरू किया है। कंचनपुर महापालिका के मेयर सुरेंद्र बिष्ट ने तो बैराज की जमीन पर ही अपना दावा जता दिया है। उन्होंने बताया कि शारदा बैराज निर्माण के लिए नेपाल ने अपनी 33 एकड़ भूमि दी थी। बैराज बनने के बाद नेपाल की जो भूमि बची उसमें सालों से सामुदायिक वन समिति घास काटने से लेकर पौधारोपण करती आई है। वहां तभी से तारबाड़ था, लेकिन तारबाड़ खराब हो जाने के कारण अब नए पिलर लगाए जा रहे हैं। एसएसबी जिसे नो मेंस लैंड बता रही है बल्कि वह तो नेपाल की अपनी भूमि है। नो मेंस लैंड निर्धारित करने वाला पिलर तो तालाब में डूब गया है, जिस कारण विवाद हो रहा है। दोनों देशों के अधिकारियों को जल्द सर्वे कराकर नो मेंस लैंड एरिया का निर्धारण करना चाहिए। 22 जुलाई को शारदा बैराज के निकट ब्रह्मदेव मंडी के पास इंडो नेपाल सीमा स्थित नो मेंस लैंड पर नेपाली नागरिकों ने सीमेंट के पिलर गाड़कर तारबाड़ किया और पौधारोपण भी शुरू कर दिया। एसएसबी ने इसका विरोध किया तो नेपाली नागरिक आक्रोशित हो उठे।

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