एक ही बार अलग-अलग व्यवहार को न समझें भूत-प्रेत का साया, मनोरोगियाें को दिखाएं

अगर व्यक्ति एक ही बार में अलग-अलग लोगों की तरह व्यवहार करता है। उसमें यह स्थिति अक्सर रहती है तो यह मल्टीपल पर्सनालिटी डिसआर्डर की समस्या है।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Mon, 06 May 2019 03:22 PM (IST) Updated:Tue, 07 May 2019 11:01 AM (IST)
एक ही बार अलग-अलग व्यवहार को न समझें भूत-प्रेत का साया, मनोरोगियाें को दिखाएं
एक ही बार अलग-अलग व्यवहार को न समझें भूत-प्रेत का साया, मनोरोगियाें को दिखाएं

हल्द्वानी, गणेश जोशी अगर व्यक्ति एक ही बार में अलग-अलग लोगों की तरह व्यवहार करता है। उसमें यह स्थिति अक्सर रहती है तो यह मल्टीपल पर्सनालिटी डिसआर्डर की समस्या है। अक्सर लोग इस तरह के व्यवहार को भूत-प्रेत का साया मानते हैं। लंबे समय तक झाड़-फूंक में ही इलाज खोजते हैं। कई बार मरीज के ठीक होने पर लोगों का इस तरह के टोटके में विश्वास गहरा होने लगता है, लेकिन अब जागरूकता बढ़ी है। इसलिए मनोरोग विशेषज्ञों के पास ऐसे मरीजों की संख्या भी बढऩे लगी है। डॉ. सुशीला तिवारी राजकीय चिकित्सालय के मनोरोग विभाग में ही पर्सनालिटी डिसआर्डर के मरीजों की संख्या 60 फीसद तक रहने लगी है।

पूर्वजों का नाम लेता है बागेश्‍वर का युवक 

बागेश्वर के एक गांव से 30 वर्षीय युवक को परिजन एसटीएच लाए। उन्होंने डॉक्टर को समस्या बताई। युवक कभी अपने पूर्वज का नाम लेकर कहता है, मैं वो हूं तो कुछ ही समय बाद पड़ोस के एक बुजुर्ग का नाम लेकर कहता है, यह भी मैं ही हूं। इस तरह से वह अक्सर व्यवहार करता है। इससे उसकी दिनचर्या से लेकर पूरा जीवन ही प्रभावित हो गया है।

डरावना व्‍यवहार करती है नैनीताल की महिला 

नैनीताल के ही पर्वतीय क्षेत्र के एक गांव का मामला है। 35 वर्षीय महिला के परिजन इलाज के लिए उसे हल्द्वानी में मनोरोग विशेषज्ञ के पास लाए थे। उनका कहना था, महिला अजीब व्यवहार करती है। कभी अंजान शख्स का नाम लेकर डराने लगती है तो कभी किसी अन्य व्यक्ति जैसा व्यवहार करने लगती है। ऐसा लगता है कि इसकी याददाश्त ही कमजोर हो गई है।

ऐसे में होते हैं तीन तरह के मनोरोग

एसटीएच के मनोवैज्ञानिक डॉ. युवराज पंत कहते हैं कि खासकर कुमाऊं क्षेत्र में इस तरह की समस्या अधिक दिखती है। इस तरह के मल्टीपल पर्सनालिटी डिसआर्डर को डिसोसिएटिव डिसआर्डर भी कहते हैं। इसके अलावा मेनिया व एक्यूट साइकोसिस भी कहते हैं। एसटीएच में इस तरह के मरीजों की संख्या 60 फीसद से अधिक है।

समाज में जागरूकता फैलाने की जरूरत

एमबीपीजी कॉलेज में मनोविज्ञान विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. रश्मि पंत कहती हैं कि लोग इसे रोग ही नहीं मानते हैं। इसलिए समस्या कई बार गंभीर हो जाती है। ऐसे में समाज में जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है। अगर लोग इसे बीमारी समझ लेंगे तो दिक्कत काफी हद तक दूर हो जाएगी।

अब इलाज संभव, फिर भी लोग करते हैं झाड़-फूंक

मनोवैज्ञानिक डॉ. युवराज पंत कहते हैं कि इस तरह की मानसिक समस्या का इलाज संभव है। साइकोथेरेपी के अलावा के दवाइयां से भी इलाज किया जा सकता है। इसके बावजूद लोग अभी भी झाड़-फूंक व अन्य टोटकों का इस्तेमाल करते रहते हैं।

बीमारी का ये है कारण

इस तरह की मानसिक बीमारी के पीछे सांस्कृतिक व सामाजिक मान्यताएं भी काम करती हैं। कई जगह अंधविश्वास के चलते बीमारी पनपने की आशंका अधिक रहती है। इसके अलावा बचपन में मानसिक आघात लगने से भी यह बीमारी पनपती है।

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