निलामी वाली सरकारी संपत्ति चल या अचल...इस चक्कर में आठ माह से नहीं हाे सकी लीसे की नीलामी

Lisa auction pending in kumaon ठेकेदार लीसा विक्रय पर स्टांप शुल्क का मामला लेकर हाई कोर्ट पहुंचे थे। जिसके बाद कोर्ट ने नीलाम होने वाली सरकारी संपत्ति को अचल की जगह चल संपत्ति मानने का आदेश पारित किया है। अब इसमें सुधार के लिए नियमावली में संशोधन का विकल्प है।

By kishore joshiEdited By: Publish:Sun, 20 Nov 2022 10:38 AM (IST) Updated:Sun, 20 Nov 2022 10:38 AM (IST)
निलामी वाली सरकारी संपत्ति चल या अचल...इस चक्कर में आठ माह से नहीं हाे सकी लीसे की नीलामी
अब नियमावली में संशोधन की तैयारी, करीब 50 करोड़ के नुकसान का अनुमान

किशोर जोशी, नैनीताल : निलामी के लायक सरकारी संपत्ति को अचल संपत्ति या चल संपत्ति मानें, इस सवाल ने वन महकमे समेत शासन को उलझा कर रख दिया है। यहां तक कि स्टांप ड्यूटी तय नहीं होने की वजह से कुमाऊं में पिछले आठ माह से चीड़ के पेड़ों से निकलने वाले लीसे की निलामी बंद है और करोड़ों के माल की गुणवत्ता खराब हो रही है।

निलामी प्रक्रिया शुरू करने के लिए वन महकमे को शासन की हरी झंडी का इंतजार है। इस वजह से वन महकमे को कुमाऊं में ही करीब 50 करोड़ के राजस्व के नुकसान का अनुमान है। अब राज्य कर विभाग इस तकनीकी चूक को दुरुस्त करने के लिए नियमावली में संशोधन की तेयारी में है, जिसके बाद ही लीसे की निलामी का रास्ता खुल सकेगा।

कुमाऊं में अल्मोड़ा वन प्रभाग, सिविल सोयम अल्मोड़ा, समेत बागेश्वर, पिथौरागढ़, चंपावत, नैनीताल में हर साल करीब 50 करोड़ का राजस्व लीसे की निलामी से मिलता रहा है। लीसा दोहन से लेकर ट्रांसपोर्ट आदि में हजारों ग्रामीणों को रोजगार मिलता रहा है। अल्मोड़ा सिविल सोयम वन प्रभाग के साथ ही चंपावत वन प्रभाग के भिंगराड़ा वन रेंज समेत नैनीताल के बडौन रेंज में सर्वाधिक लीसा दोहन हाेता है।

कुमाऊं में नैनीताल जिले के सुल्तानपुरी व हनुमानगढ़ी, अल्मोड़ा के पायखान, चंपावत के टनकपुर में लीसा निलामी डिपो हैं। इसके अलावा रोड हेड तथा जंगलों में भी डिपो हैं, जहां से 15-20 दिन के भीतर ठेकेदार को लीसा उठान कर निलामी डिपो तक पहुंचाना होता है। कुमाऊं में अप्रैल माह से लीसे की निलामी नहीं हुई है। हनुमानगढी व सुल्तान नगरी में ही एक लाख से अधिक टन लीसा निलामी होती है।

नैनीताल वन प्रभाग में ही छह-सात करोड़ का राजस्व लीसे से प्राप्त होता है जबकि पूरे कुमाऊं में 50-60 करोड़ राजस्व लीसे की निलामी से मिलता रहा है। अबकी बार निलामी नहीं होने की वजह से जहां डिपो में डंप लीसे की गुणवत्ता खराब हो रही है तो तस्करों की भी मौज हो रही है। तस्कर जंगलों से दोहन लीसा औने-पौने दाम में खरीदने के बाद तस्करी कर लीसा उद्योगों तक पहुंचा रहे हैं।

हाई कोर्ट के आदेश से ठिठके कदम

दरअसल ठेकेदारों के माध्यम से लीसा विक्रय पर स्टांप शुल्क का मामला हाई कोर्ट पहुंचा था। हाई कोर्ट ने ठेकेदारों की याचिका स्वीकार कर ली थी। साथ ही वन विभाग को निर्देशित किया था। कोर्ट के आदेश के बाद नियमावली संशोधन की नौबत आ गई है।

नीलाम होने वाली सरकारी संपत्ति को अचल संपत्ति मानते रहे

आयुक्त राज्य कर डाॅ. इकबाल अहमद ने बताया कि अब तक नीलाम होने वाली सरकारी संपत्ति को अचल संपत्ति मानते रहे हैं, कोर्ट ने चल संपत्ति मानने का आदेश पारित किया है। अब इसमें सुधार के लिए नियमावली में संशोधन का विकल्प है। शासन को प्रकरण संदर्भित किया गया है। अगले दस दिन में मामले का समाधान हो जाएगा।

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