सेहत के साथ क‍िसानों की आर्थिकी सुधारेगा कीवी, पहाड़ की जलवायु आ रही पसंद

जंगली जानवरों के आतंक के कारण खेती बाड़ी से कमाई की उम्मीद खो चुके काश्तकारों के लिए कीवी उत्पादन नई उम्मीद लेकर आया है। न्यूजीलैंड मूल का यह फल घाटा झेल रहे काश्तकारों के लिए कमाई का अच्छा विकल्प बन सकता है।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Sat, 03 Oct 2020 06:35 PM (IST) Updated:Sat, 03 Oct 2020 09:37 PM (IST)
सेहत के साथ क‍िसानों की आर्थिकी सुधारेगा कीवी, पहाड़ की जलवायु आ रही पसंद
सेहत के साथ क‍िसानों की आर्थिकी सुधारेगा कीवी फल।

नैनीताल, नरेश कुमार: जंगली जानवरों के आतंक के कारण खेती बाड़ी से कमाई की उम्मीद खो चुके काश्तकारों के लिए कीवी उत्पादन नई उम्मीद लेकर आया है। न्यूजीलैंड मूल का यह फल घाटा झेल रहे काश्तकारों के लिए कमाई का अच्छा विकल्प बन सकता है। इसके उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए उद्यान विभाग की ओर से चलाई जा रही क्षेत्रफल विस्तार योजना के तहत हर वर्ष कुछ निशुल्क पौधों का वितरण भी किया जा रहा है। इसके अलावा राष्ट्रीय पादप अनुवांशिक संसाधन ब्यूरो क्षेत्रीय केंद्र निगलाट (सिरोड़ी) से पौधे खरीद काश्तकार बगीचा तैयार कर सकते हैं।

प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों में काश्तकारों की कमाई का मुख्य जरिया फल व सब्जी उत्पादन ही है। इससे होने वाली आय से ही काश्तकारों की वर्ष भर आजीविका चलती है, लेकिन जंगली जानवरों खासकर लंगूर बंदरों के आतंक से कारण अब खेती मुनाफे का सौदा नहीं रही।  काश्तकार जी तोड़ मेहनत कर जो भी उगाते है सब जंगली जानवरों की भेंट चढ़ जाता है। यही कारण है कि कई लोग खेती बाड़ी छोड़ मेहनत मजदूरी के काम में लग गए। ऐसे में कीवी का उत्पादन काश्तकारों के लिए नई उम्मीद लेकर आया है। संस्थान के कृषि वैज्ञानिक डॉ कृष्णदेव राय बताते हैं कि कीवी का उत्पादन कर काश्तकार ना सिर्फ अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं बल्कि अन्य ग्रामीणों को रोजगार भी मुहैया करा सकते हैं।

जंगली जानवर नहीं पहुंचाते नुकसान

डॉ राय बताते हैं कि कीवी की पत्तियों में छोटे-छोटे बाल होते हैं।  जिससे जंगली जानवर इसकी पत्तियों का सेवन नहीं करते। इसके अलावा इसके फलों के छिलकों का स्वाद कसैला होने के कारण बंदर और लंगूर भी इसे नुकसान नहीं पहुंचाते।

न्यूजीलैंड का पौधा है कीवी

डॉ रॉय ने बताया कि कीवी न्यूजीलैंड मूल का फल है। भारत में पहली बार 1967 बंगलुरु में इसे सजावटी पौधे के रूप में लाया गया था। उन्हीं के संस्थान की एक शाखा जो कि हिमाचल में है वहां 1968 में पहली बार इससे फल उत्पादन लिया गया। 1991 में यह पौधा क्षेत्रीय केंद्र निगलाट लाया गया। तब से लगातार इस पर शोध किया जा रहा है। संस्थान में कीवी की सात प्रजातियां एबॉट, एलीसन, ग्रुनो, मोंटी, इवार्ड, टोमरी और रेड कीवी मौजूद है।

ऐसे तैयार करें कीवी का बगीचा

कीवी के पौधे रोपने का सही समय दिसंबर से फरवरी तक माना जाता है। डॉ राय ने बताया कि इसके पौधे 8:1 के अनुपात में रोपे जाते हैं। चार मादा पौधों के बाद एक नर पौधा और फिर मादा पौधे चार-चार मीटर की दूरी पर रोपे जा सकते है। रोपने के एक वर्ष बाद टीबार अथवा जाल बनाकर इसकी बेल को सपोर्ट दिया जाता है। तीन वर्ष बाद इसकी बेल फल देना शुरू कर देते है। एक बार लगाने के बाद एक पौधा 60-70 वर्ष तक फल देता है। एक वयस्क बेल से वर्ष में करीब 45 किलो फल उत्पादन लिया जा सकता है। अक्टूबर में इसके फलों की तुड़ाई की जाती है। जिसकी लोकल और बाहरी  बाजार में 80 से 200 रुपये तक कीमत मिल जाती है। औषधि गुणों से परिपूर्ण है यह फल कीवी का फल औषधीय गुणों से परिपूर्ण है। इसका सेवन डेंगू के मरीजों के साथ ही गर्भवती महिलाओं के लिए काफी लाभ दायक होता है।इसमें  विटामिन ई, एंटी ऑक्सीडेंट के साथ ही प्रचुर मात्रा में फास्फोरस मिनरल होता है।

नर्सरी विकसित कर भी म‍िल सकता है रोजगार

डॉक्टर राय बताते हैं कि उनके संस्थान में हर वर्ष तीन से चार हजार पौधों की आपुर्ति लोगों को की जाती है। जबकि उनकी डिमांड दोगुने से भी अधिक होती है। ऐसे में काश्तकार कीवी की नर्सरी तैयार कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं संस्थान में इसके पौधों की कीमत 80 से 100 रुपये है। जबकि संस्थान के बाहर की नर्सरी स्वामियों को इससे कई अच्छी कीमत पौधों की मिल जाती है।

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