वन अनुसंधान केंद्र हल्‍द्वानी ने एक एकड़ में बसाया भगवान बदरीनाथ का वन

पर्यावरण और धार्मिक मान्यताओं के बीच एक संबंध स्थापित कर वन अनुसंधान केंद्र हल्द्वानी ने इस बार वाटिका नहीं बल्कि वन तैयार किया है। यह वन बदरीनाथ में ही हाईवे किनारे बनाया गया है। चार धाम में शामिल बदरीनाथ को भगवान विष्णु का एक रूप माना जाता है।

By Edited By: Publish:Mon, 19 Oct 2020 03:00 AM (IST) Updated:Mon, 19 Oct 2020 05:05 PM (IST)
वन अनुसंधान केंद्र हल्‍द्वानी ने एक एकड़ में बसाया भगवान बदरीनाथ का वन
संजीव चतुर्वेदी के मुताबिक बदरीनाथ मंदिर क्षेत्र में हाईवे से लगती भूमि पर यह वन तैयार किया गया है।

हल्द्वानी, जेनएन : पर्यावरण और धार्मिक मान्यताओं के बीच एक संबंध स्थापित कर वन अनुसंधान केंद्र हल्द्वानी ने इस बार वाटिका नहीं बल्कि वन तैयार किया है। यह वन बदरीनाथ में ही हाईवे किनारे बनाया गया है। जहां बद्री तुलसी, भोज पत्र, बदरी फल और बदरी वृक्ष को एक एकड़ के दायरे में संरक्षित कर जगह का नाम बदरी वन रखा गया है। धार्मिक मान्यता के लिहाज से आदि गुरु शंकराचार्य ने 815-820 ई. में बदरीनाथ क्षेत्र की यात्रा के दौरान इस क्षेत्र के वन का नाम बदरीवन रखा था। चार धाम में शामिल बदरीनाथ को भगवान विष्णु का एक रूप माना जाता है।

अलकनंदा नदी मानो यहां भगवान बदरी के चरण स्पर्श कर निकलती है। वन संरक्षक (अनुसंधान) संजीव चतुर्वेदी के मुताबिक बदरीनाथ मंदिर क्षेत्र में हाईवे से लगती भूमि पर यह वन तैयार किया गया है। इन प्रजातियों को यहां लगाने का उद्देश्य लोगों को यह बताना है कि पौधों का सिर्फ वैज्ञानिक नहीं बल्कि धार्मिक व ऐतिहासिक महत्व भी होता है। बदरी वन में लगे बोर्ड की मदद से इन चारों प्रजातियों की पूरी जानकारी भी लोगों को मिलेगी।

ये हैं चार मुख्य प्रजाति

बदरी तुलसी : खास तरह की तुलसी बदरीनाथ व आसपास के क्षेत्र में ही पाई जाती है। रिसर्च के मुताबिक साधारण तुलसी व अन्य वनस्पतियों के मुकाबले इसमें 12 प्रतिशत अधिक कार्बन अवशोषित करने की क्षमता होती है। भगवान बदरीनाथ को प्रिय होने की वजह से पूजा की थाल में श्रद्धालु बदरी तुलसी जरूर रखते हैं।

बदरी फल : मान्यता है कि भगवान विष्णु ने बदरी घाटी में तपस्या की थी। उस दौरान उन्होंने आहार के तौर पर स्थानीय बदरी फल का सेवन किया था। विटामिन व खनिज तत्व से भरपूर यह प्रजाति भूस्खलन रोकने के साथ जमीन की उर्वरा क्षमता को बढ़ाने में भी योगदान देती है।

बदरी वृक्ष : इस प्रजाति को हिंदू व बौद्ध धर्म में पवित्र माना जाता है। इसके फूल और पत्तियों में सुगंध के कारण धूप भी बनाई जाती है। औषधीय गुणों के कारण आयुर्वेदिक दवा में भी इस्तेमाल किया जाता है। बदरी वृक्ष की लकड़ी फर्नीचर, कोयला व पेंसिल बनाने के काम आती है।

भोजपत्र : धार्मिक महत्व का भोजपत्र बदरीनाथ से 25 किमी दूर लक्ष्मीवन में काफी मात्रा में मिलता है। प्राचीन काल में इसकी छाल पर गंथ लेखन के साथ संस्कृति की कृतियां रची जाती थी। काफी पहले जब लोग नंगे पांव बदरीनाथ की यात्रा करते थे तो पैर के नीचे भोजपत्र की छाल बांधा करते थे।

लोगों को पर्यावरण का महत्व समझाने की कोशिश

वन संरक्षक (अनुसंधान) उत्तराखंड संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि बदरीनाथ मंदिर क्षेत्र में हाईवे से लगती एक एकड़ जमीन पर बदरीवन की स्थापना की गई है। प्रजातियां लगाने के बाद बोर्ड भी लग चुके हैं। हमारा प्रयास है कि लोग पर्यावरण का धार्मिक महत्व समझ संरक्षण में योगदान दें।

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