इस गांव में रहते हैं 110 कश्मीरी पंडितों के परिवार, घर वापसी की उम्मीद में छलक उठे आंसू

ऊधमसिंह नगर के काशीपुर की सुल्तानपुर पट्टी स्थित पिपलिया गांव में कश्मीर से 1947 में आए 110 परिवार रहते हैं।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Tue, 06 Aug 2019 09:36 AM (IST) Updated:Wed, 07 Aug 2019 09:52 AM (IST)
इस गांव में रहते हैं 110 कश्मीरी पंडितों के परिवार, घर वापसी की उम्मीद में छलक उठे आंसू
इस गांव में रहते हैं 110 कश्मीरी पंडितों के परिवार, घर वापसी की उम्मीद में छलक उठे आंसू

काशीपुर (ऊधमसिंह नगर) जेएनएन : ऊधमसिंह नगर के काशीपुर की सुल्तानपुर पट्टी स्थित पिपलिया गांव में कश्मीर से 1947 में आए 110 परिवार रहते हैं। अब इनकी तीसरी पीढ़ी यहां पल बढ़ रही है तो समाज काफी विस्तार ले चुका है। कश्मीरी ब्राह्मण बहुल इस गांव में सोमवार को सभी परिवारों में जश्न का माहौल रहा। लोगों ने एक-दूसरे को मिठाई खिलाकर बधाई दी। हाथ पर तिरंगा लिए भारतमाता जिंदाबाद के नारे लगाते हुए बोले, हमें असली आजादी तो आज मिली है। बुजुर्गों की आंखों से खुशी में आंसू बहने लगे। जागरण संवाददाता ने जब उनसे बातचीत की तो रोंगटे खड़ी करनेवाली दास्तां सामने आई। इन सबकी चाहत है कि सरकार सुरक्षा व रोजगार दे तो हम कश्मीर ही जाएंगे। अपनी मिट्टी की खुशबू और हमारे सारे रिश्तेदार वहीं हैं। 

घर में बंद कर लगा देते थे आग

कश्मीर से 1947 में काशीपुर आए जगदीश राम शर्मा ने बताया कि ब्लूचिस्तान के आतंकी हमारे घरों में ही लोगों को बंद कर जला देते थे। काट डालते थे। मारपीट कर हमें भगा दिया गया। तब से यहीं हैं। राजा हरिङ्क्षसह ने किसी तरह मिलिट्री की मदद से 110 कश्मीरी पंडितों के परिवारों को यहां भेजा तो नैनीताल के सुपरिटेंडेंट ने हमारे रहने की व्यवस्था की व सरकार ने हमें जीवन यापन के लिए यहां 1000 एकड़ जमीन दी। बावजूद इसके हम लोग आॢथक रूप से समृद्ध नहीं हो सके व खेती-किसानी में ही ङ्क्षजदगी बीत गई। हम दूसरे राज्य में आ गए तो हमें मुआवजा भी सरकार ने नहीं दिया। फिर भी सरकार यदि हमें वहां भेजने व सुरक्षा की व्यवस्था करे तो हम अपने वतन जाना चाहते हैं।

हम यहां की जमीन बेचकर कश्मीर चले जाएंगे

कश्मीरी पंडित उमेश चंद्र शर्मा का कहना है कि जब से 370 अनुच्छेद हटा है, हमारे परिवार के लोग बहुत खुश हैं। हमारे सारे रिश्तेदार कठुआ, जम्मू, राजौरी आदि में रहते हैं। अब हम वहां जाकर रह सकते हैं। यहां की जमीन-जायदाद बेचकर हम वहीं चले जाएंगे। यदि सरकार हमारी मदद करे और रोजगार की व्यवस्था करा दे तो। 

सरकार हमें दे मुआवजा

तिलकराज कहते हैं कि सरकार जम्मू में रहने वालों को 25 लाख तक मुआवजा दे रही है, लेकिन जो लोग दूसरे राज्यों में चले गए उन्हें कुछ नहीं मिला। इससे हमारा काफी नुकसान हो गया है। हमें भी सरकार को मुआवजा देना चाहिए। साथ ही सुरक्षा दे। हम कश्मीर जाएंगे।

जिंदा रहने के लिए मिले थे महज साढ़े तीन हजार

संतोष शर्मा कहते हैं कि हमारे बुजुर्गों ने बताया कि जब हम 1947 में यहां आए तो सरकार ने महज साढ़े तीन हजार हमें जीने-खाने व रहने के लिए दिए थे। उसके बाद सारे कश्मीरियों ने मेहनत मजदूरी करके किसी तरह ङ्क्षजदगी बिताई व आनेवाली पीढ़ी का पालन-पोषण किया। आज जो निर्णय आया है उससे हमारे परिवार में बहुत खुशी है। हम वापस जाना चाहते हैं। 

आज मिली असली आजादी

पंकज शर्मा बोले, मुझे तो लग रहा है कि आज असली आजादी मिली है। सरकार हमें यदि जानमाल की सुरक्षा व रोजगार की गारंटी दे तो हम लोग तुरंत कश्मीर जाना चाहेंगे और वहीं अपना कारोबार करेंगे। घर बनाएंगे। हमारे बच्चे भी बहुत खुश हैं कि अब हम कश्मीर में बस सकते हैं। लेकिन सुरक्षा को लेकर डर जरूर लग रहा है। 

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