उम्र के आखिरी पड़ाव में अकेलेपन से जूझ रहे बुजुर्ग, कुछ समय देकर बचा लें

भागदौड़ भरी जिंदगी, पैसा कमाने की हवस, एकाकी परिवार की अवधारण के साथ बेरहम वक्‍त ने बुजुर्गों की तकलीफों को कम करने की बजाए और बढ़ा दिया है।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Fri, 23 Nov 2018 07:37 PM (IST) Updated:Fri, 23 Nov 2018 07:37 PM (IST)
उम्र के आखिरी पड़ाव में अकेलेपन से जूझ रहे बुजुर्ग, कुछ समय देकर बचा लें
उम्र के आखिरी पड़ाव में अकेलेपन से जूझ रहे बुजुर्ग, कुछ समय देकर बचा लें

नैनीताल, जेएनएन : उम्र के आखिरी पड़ाव में उन्‍हें जरूरत है अपनों के साथ की। बच्‍चों के साथ मॉर्निंग वॉक की, बेटे के साथ सुख-दुख साझा करने की। लेकिन भागदौड़ भरी जिंदगी, पैसा कमाने की हवस, एकाकी परिवार की अवधारण के साथ बेरहम वक्‍त ने उनकी तकलीफों को कम करने की बजाए और बढ़ा दिया है। बहू-बेटे और बच्‍चों के साथ वक्‍त गुजारने के लिए लालायित रहने वाले बुजुर्गों का जीवन अकेलेपन के अंधेरे में गुम होता जा रहा है। कुछ लोग अपने बुजुर्ग मां-बाप को वृ्द्धाश्रम भेजकर उनसे मुक्ति पाना चाहते हैं, तो कुछ जो सामाजिक बदनामी की डर से नहीं भेज पाते हैं वे उपेक्षित रखकर यातना देते हैं। यही कारण है कि एकाकीपन से तंग आकर बुजुर्गों के आत्‍महत्‍या करने जैसी घटनाएं सामने आती हैं। हल्‍द्वानी में बुजुर्ग दंप‍ती के खुदकुशी करने की घटना इसकी मिशाल है।

बात करने के लिए तरसते हैं बुजुर्ग

बुढ़ापा न सिर्फ चेहरे पर झुर्रियां लाता है, बल्कि हरेक दिन की नई-नई चुनौतियां लेकर भी आता है। अकेलापन उन्हें सबसे अधिक खलता है, बात करने के लिए तरसते हैं। अपने बच्चों की राह ताकते हैं। घर बैठे-बैठे अवसाद के शिकार बुजुर्ग अधिकतर समय घर से बाहर गुजारने की कोशिश करते हैं , ताकि किसी से बात हो जाए। कुछ गप्पें मार लें, कोई उनकी बात सुन ले। जो घर के बाहर नहीं निकल पाते हैं, वे खुद में ही घुटते हैं।

बुजुर्गो की समस्‍या स्‍वास्‍थ्‍य से कहीं अधिक अकेलापल

क्‍या आप जानते हैं बुजुर्गों की सबसे बड़ी समस्‍या क्‍या है। जी नहीं अगर आपको लगता है कि उनकी सबसे बड़ी समस्‍या स्‍वास्‍थ्‍य है तो आप जरा इस बात पर भी गौर कर लें। कई सर्वे में यह बात सामने आ चुकी है कि बुजुर्गों की सबसे बड़ी समस्‍या उनका अकेलापन है। सोचने की बात यह है कि जब बच्चे अपने पैरेंट्स की जरूरत ही नहीं समझ पा रहे हैं तो उनकी समस्या का समाधान आखिर कैसे करेंगे।

संयुक्‍त राष्‍ट्र की यह रिपोर्ट कुछ कहती है

बुजुर्गों के हालात पर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय समाज में बुजुर्गों को परिवार से मिलने वाले सम्मान में कमी आती जा रही है। अधिकतर भारतीय बुजुर्ग अपने ही घर में उपेक्षित और एकाकी जीवन जीने को अभिशप्त हैं।

20 वर्ष में बुजुर्गों की संख्‍या हुई दोगुनी

पिछले एक दशक में भारत में वयोवृद्ध लोगों की आबादी 40 प्रतिशत की दर से बढ़ी है। आगे आने वाले दशकों में इसके 45 प्रतिशत की दर से बढ़ने की उम्मीद है। दुनिया के ज्यादातर देशों में बुजुर्गों की संख्या दोगुनी होने में सौ से अधकि वर्ष का समय लग गया, लेकिन भारत में सिर्फ 20 वर्षों में ही इनकी संख्या लगभग दोगुनी हो गई।

औसत आयु के साथ लोगों की परेशानियां भी बढ़ीं

वर्तमान में औसत आयु बढ़कर 70 साल से ज्यादा हो गई है। औसत आयु बढ़ना अच्छा संकेत है। लेकिन आयु बढ़ने के साथ-साथ परेशानियों की फेहरिस्त भी लंबी होती जा रही है। इस दौर में बढ़ती महंगाई, परिवार द्वारा क्षमता से ज्यादा खर्च और कर्ज से गड़बड़ाते बजट का प्रभाव बुजुर्गों के जीवन पर भी पड़ रहा है। साथ ही हमारी आर्थिक और वित्तीय नीति भी बुजुर्गों को कोई सहारा नहीं दे पा रही है।

 

स्‍वास्‍थ्‍य पर खर्च होता है आमदनी का बड़ा हिस्‍सा

आम तरीके से एक सामान्य परिवार अपने कुल खर्च का लगभग 15 फीसदी हिस्सा स्वास्थ्य और चिकित्सा देखभाल पर खर्च करता है। अगर परिवार में कोई बुजुर्ग सदस्य है तो यह खर्च डेढ़ से दो गुना हो जाता है। इस खर्च में एक बड़ा हिस्सा दवाओं पर खर्च का होता है। सरकारों ने बुजुर्गों को पेंशन की सुविधा दी है, पर वह भी नाकाफी साबित हो रही है।

गौरतलब बातें , आप भी जानिए आधुनिक जीवनशैली में बुजुर्गों का बढ़ता अकेलापन एक बड़ी समस्या है। इसके कारण रोगों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। शोध से पता चलता है कि इसके कारण बुजुर्गों में भी नशे की आदत रहती है। इसके चलते उनकी प्रतिरोधक क्षमता में कमी आ जाती है। ब्राजील, भारत एवं अन्य एशियाई देशों में बुजुर्ग मरीजों की इच्छा रहती है कि परिवार के लोग ही उनकी देखभाल करें। परन्तु ऐसा हमेशा संभव नहीं हो पाता। बदलती जीवनशैली के साथ या आर्थिक कठिनाइयों के कारण पति-पत्नी दोनों को ही नौकरी करनी पड़ती है। उन्हें न तो इतना समय मिलता है और न सुविधा कि वे बुर्जुग मां-बाप की देखभाल कर सकें। इस कारण वे अपने बुजुर्गों को ओल्ड-एज होम में छोड़ देते हैंं और समय-समय पर उनसे मिलने जाते रहते हैं। एक राष्ट्रीय सैंपल सर्वेक्षण के अनुसार लगभग 3 प्रतिशत बुजुर्ग अकेले रहते हैं। 9.3 प्रतिशत ऐसे हैं, जो पति या पत्नी के साथ-साथ एवं 35.6 प्रतिशत ऐसे हैं, जो बच्चों के साथ रहते हैं। विदेशों के उदाहरण लें, तो कई देशों में बुजुर्गों की स्थिति अच्छी नहीं है। चीन में तो छह में से एक व्यक्ति 60 से अधिक उम्र का है। वहाँ के तमाम बुजुर्ग ‘डिमेंसिया’ से पीडि़त हैं। अमेरिका और ब्रिटेन के बुजुर्गों में ‘अल्जाइमर’ की विकराल समस्या है। इसका इलाज लंबे समय तक चलता है। सभी देशों में इतनी सुविधा नहीं है कि वे मरीजों को लंबे समय तक अस्पताल में रख सकें। इसके समाधान के रूप में जापान ने ‘केयर होम’ का रास्ता निकाला है। प्रतिदिन वीडियो कांफ्रेंसिंग कें माध्यम से अस्पतालों के डॉक्टर या नर्स बुजुर्गों से दिन में दो-तीन बार उनका हालचाल और दवाई लेने के बारे में पूछते रहते हैं।

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