25 लाख रुपये किलो तक बिकने वाले कीड़ा जड़ी के लिए चीन से अब तक नहीं आई डिमांड

यारसा गंबो यानी कीड़ा जड़ी की बिक्री पर इस वर्ष ग्रहण लग चुका है। जिस चीन में कीड़ा जड़ी की विशेष मांग रहती थी वहां से अभी तक कोई मांग नहीं आई है।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Tue, 20 Aug 2019 04:32 PM (IST) Updated:Wed, 21 Aug 2019 10:08 AM (IST)
25 लाख रुपये किलो तक बिकने वाले कीड़ा जड़ी के लिए चीन से अब तक नहीं आई डिमांड
25 लाख रुपये किलो तक बिकने वाले कीड़ा जड़ी के लिए चीन से अब तक नहीं आई डिमांड

मदकोट (पिथौरागढ़) जेएनएन : यारसा गंबो यानी कीड़ा जड़ी की बिक्री पर इस वर्ष ग्रहण लग चुका है। जिस चीन में कीड़ा जड़ी की विशेष मांग रहती थी, वहां से अभी तक कोई मांग नहीं आई है। कीड़ा जड़ी खरीदने के लिए उच्च हिमालय पहुंचने वाले नेपाली ठेकेदार भी नदारद हैं। दो माह तक बर्फ के बीच बुग्यालों में रहने के बाद कीड़ा जड़ी खोदकर लाए भारतीय विक्रेता चीन से मांग और नेपाली ठेकेदारों की बाट जोह रहे हैं।
आम चर्चा में कीड़ा जड़ी को शक्तिवर्धक माना जाता है। इसकी चीन में जबरदस्त मांग रहती है। तिब्बत व चीन नेपाली ठेकेदारों के माध्यम से भारतीय ग्रामीणों से यह जड़ी का क्रय कराता है। इसकी मांग को देखते प्रतिवर्ष इसके रेट घटते-बढ़ते रहे हैं। बीते वर्ष 11 लाख तो पूर्व में यह 25 लाख प्रति किलो तक बिकी है। इस वर्ष उच्च हिमालय में कीड़ा जड़ी उत्पादन अच्छा रहा, परंतु ग्राहकों की बेरुखी इसी तरह रही तो काश्तकारों के लिए यह कष्टप्रद हो सकती है।

सौ से अधिक गांवों में आजीविका का साधन
कीड़ा जड़ी धारचूला और मुनस्यारी के सौ से अधिक गांवों के ढाई हजार परिवारों की आजीविका का सबसे पुख्ता माध्यम है। जबकि नेपाल के चार दर्जन से अधिक ठेेकेदार यहां इस काम में लगे हैं। इस बार मदकोट, मुनस्यारी से लेकर धारचूला तक के बाजारों में इस सीजन में होने वाली चहल-पहल गायब है। चीन से मांग नहीं आने को लेकर तमाम तरह की चर्चाएं व्याप्त हैं। 

दोहनकर्ताओं को दोहरा नुकसान 
कीड़ा जड़ी दोहन के लिए ग्रामीण डेढ़ से दो माह के लिए मय परिवार उच्च हिमालय में चले जाते हैं। इस प्रवास के लिए टेंट सहित खाद्य सामग्री व अन्य उपभोग की वस्तुएं उच्च हिमालय पहुंचानी पड़ती हैं। गांवों से उच्च हिमालय तक सामग्री जानवरों भेड़, बकरियों और खच्चरों की पीठ पर लदकर जाता है। इसका भाड़ा काफी अधिक होता है। हरीश कुमार और बल्थी गांव निवासी विरेंद्र सिंह मेहता बताते हैं कि दोहन के दौरान उनका खर्च पचास हजार रु पये से अधिक आ गया था। कीड़ा जड़ी नहीं बिकी तो परिवार सड़क पर आ जाएगा। इन परिवारों के बच्चे देहरादून, हल्द्वानी और पिथौरागढ़ में पढ़ते हैं । लाखों की कीड़ा जड़ी होने के बाद भी ग्रामीण बच्चों को खर्च भेज पाने में असमर्थ हो चुके हैं।

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