लोकतंत्र को बचाने की जिम्‍मेदारी एक व्‍यक्ति अथवा संस्‍था की ही नहीं, आम जनों की भी है

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के बिगड़ते स्वरूप के लिए कोई एक व्यक्ति या संस्था जिम्मेदार नहीं है। आम नागरिक की भी उतनी ही जिम्मेदारी है जितनी राजनीतिक दलों व नेताओं की मानते हैं।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Tue, 23 Apr 2019 12:11 PM (IST) Updated:Tue, 23 Apr 2019 12:11 PM (IST)
लोकतंत्र को बचाने की जिम्‍मेदारी एक व्‍यक्ति अथवा संस्‍था की ही नहीं, आम जनों की भी है
लोकतंत्र को बचाने की जिम्‍मेदारी एक व्‍यक्ति अथवा संस्‍था की ही नहीं, आम जनों की भी है

हल्द्वानी, जेएनएन : दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के बिगड़ते स्वरूप के लिए कोई एक व्यक्ति या संस्था जिम्मेदार नहीं है। आम नागरिक की भी उतनी ही जिम्मेदारी है, जितनी हम राजनीतिक दलों व नेताओं की मानते हैं। अगर बड़े लोकतंत्र को श्रेष्ठ बनाना है तो हर व्यक्ति को जागरूक होना होगा। अपने मतदान के अधिकार का सदुपयोग करना होगा। यह कहना है एमबीपीजी कॉलेज के चीफ प्रॉक्टर डॉ. विनय विद्यालंकार का, जो सोमवार को दैनिक जागरण के जागरण विमर्श में बतौर अतिथि बोल रहे थे। उन्होंने भारत में बड़े से बेहतर लोकतंत्र कैसे बने विषय पर चर्चा की और वैदिक काल के उदाहरणों के जरिये भी लोकतांत्रिक व्यवस्था पर प्रकाश डाला। विषय प्रवर्तन करते हुए दैनिक जागरण के महाप्रबंधक डॉ. राघवेंद्र चड्ढा ने कहा कि पहले राजनीति मिशन हुआ करती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है। बेहतर प्रतिनिधि को चुनकर ही हम लोकतंत्र को बेहतर बना सकते हैं। 

राजशाही में भी था लोकतंत्र

डॉ. विद्यालंकार बताते हैं कि प्राचीनकाल की राजव्यवस्था राजशाही होने के बावजूद लोकतंत्र कायम था। उस समय में कई राजा हुए, जहां प्रजा ही राजा को चुनती थी। यहां तक कि शिक्षित व अशिक्षित के मतों की अहमियत भी अलग-अलग हुआ करती थी। 

स्वतंत्रता का तात्पर्य मनमर्जी नहीं

लोकतंत्र में स्वतंत्रता का अर्थ पूरी तरह मनमर्जी करना नहीं है, बल्कि तय नियमों के आधार पर चलना होता है। नीतियों के अनुसार चलना है। जबकि, भारत में नियमों के विरुद्ध बोलने को स्वतंत्रता मान ली गई है।

संसद में ही बोली जाने लगी असंसदीय भाषा

बड़े लोकतंत्र को बेहतर बनाने के लिए सार्वजनिक तौर पर बोली जाने वाली भाषा का भी ध्यान रखना होगा। पहले संसद की भाषा ही ऐसी थी कि उदाहरण दिया था कि संसदीय भाषा बोलें, लेकिन अब संसद में ही असंसदीय भाषा बोली जाने लगी है।

मीडिया की भी है बड़ी जिम्मेदारी 

मीडिया को संविधान के चौथे स्तंभ के रूप में माना जाता है। ऐसे में लोगों को जागरूक करना भी मीडिया की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। मीडिया हमेशा समाज को सही दिशा दिखाने का प्रयास करता रहे। 

लोकतंत्र को बचाने के लिए आंदोलन की जरूरत

वर्तमान में भारत में जिस तरह का माहौल हो गया है, जनता को बेवकूफ बनाया जाने लगा है। नेता अपनी नीति से ज्यादा दूसरों के चरित्र पर निशाना साध रहे हैं। लोकतांत्रिक संस्थाओं को अपने हिसाब से व्यवस्थित कर दिया जा रहा है। मैं फाइनल हूं...विचार को पोषित किया जा रहा है। व्यावसायीकरण की मानसिकता ने भी लोकतंत्र को दूषित किया है। ऐसे में लोकतंत्र को बचाने के लिए आंदोलन की जरूरत है।

नई पीढ़ी जगा रही उम्मीद

हमें निराश होने की जरूरत नहीं है। नई पीढ़ी ऊर्जावान है। तमाम युवा ईमानदारी का परिचय देते हुए आगे बढ़ रहे हैं। ऐसे युवा नहीं चाहते हैं कि बैकडोर से व्यवस्था संचालित हो। अपराधी तत्व राजनीति में प्रवेश न करें।

अतिथि वक्ता का परिचय

डॉ. विनय विद्यालंकार एमबीपीजी कॉलेज में संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष पद पर हैं। अलीगढ़ उत्तरप्रदेश मूल के डॉ. विनय ने वैदिक संहिताओं एवं महाभारत में राजधर्म- तुलनात्मक अध्ययन विषय पर शोध कर चुके हैं। 1998 में लोकसेवा आयोग उत्तर प्रदेश से चयनित होकर लोहाघाट डिग्री कॉलेज से नौकरी की शुरुआत की। अब तक देश-विदेश में वैदिक धर्म व अन्य विषयों पर करीब 150 व्याख्यान दे चुके हैं। वर्तमान में नवाबी रोड हल्द्वानी में रहते हैं।

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