कोरोना संक्रमण से पटरी से उतरा कारोबार तो गांव-गांव तांबे के बर्तन बेच कर रहे हुनर का उपयोग

तांबे के बर्तन बनाने के कुशल कारीगर शिवलाल टम्टा बताते हैं कि एक गांव में करीब दो महिने पडा़व डालते हैं। बिक्री होने पर दोबारा रामनगर सुंदरखाल में बने तांबे के बर्तनों को दूसरे गांव में फिर तीसरे गांव में बेचने को ले जाते हैं।

By Prashant MishraEdited By: Publish:Sat, 23 Jan 2021 10:05 AM (IST) Updated:Sat, 23 Jan 2021 10:05 AM (IST)
कोरोना संक्रमण से पटरी से उतरा कारोबार तो गांव-गांव तांबे के बर्तन बेच कर रहे हुनर का उपयोग
शिवलाल गांव के लोगों के पुराने तांबे के बर्तनों की मरम्मत भी करते हैं।

संवाद सहयोगी, गरमपानी (नैनीताल) : बीते मार्च के महीने कोरोना संक्रमण की रफ्तार से लगाए गए लॉकडाउन के बाद से कई व्यवसाय पटरी से उतर गए हैं। अब हालात यह है कि तांबे के बर्तन के कुशल कारीगर भी गांव गांव जाकर  बर्तन बेचने को मजबूर हैं। एक गांव में करीब दो महीने का ठिकाना बनाना मजबूरी बन चुका है।

सुंदरखाल, रामनगर निवासी शिवलाल टम्टा तांबे के बर्तन के कुशल कारीगर है पर लॉक डाउन के बाद से हालात बिगड़ते चले गए। कभी रामनगर में ही बेहतर व्यवसाय कर लेने वाले शिवलाल टम्टा अब गांव-गांव जाकर तांबे से निर्मित गिलास, पतेली, गागर ,लोटा आदि बेचने को मजबूर हो गए हैं। तांबे के बर्तन बनाने के कुशल कारीगर शिवलाल टम्टा बताते हैं कि एक गांव में करीब दो महिने पडा़व डालते हैं। बिक्री होने पर दोबारा रामनगर सुंदरखाल में बने तांबे के बर्तनों को दूसरे गांव में फिर तीसरे गांव में बेचने को ले जाते हैं। बर्तनों को लेकर गांव गांव पहुंचकर अपने हुनर का उपयोग कर रहे हैं।

अलग-अलग कीमतों में है उपलब्ध

तांबे के बर्तन रखा पानी स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभदायक माना जाता है। वहीं यह पानी को भी शुद्ध करता है। हालांकि गांवों में तांबे के बर्तनों की बिक्री गुजर बसर करने को हो रही है। किलोग्राम से होने वाली बिक्री के गागर किलोग्राम के हिसाब से दो हजार, गिलास 90 प्रति तथा लोटा 160 रुपये के आसपास मिलता है। शिवलाल गांव के लोगों के पुराने तांबे के बर्तनों की मरम्मत भी करते हैं।

सरकार की उपेक्षा से भी नाराजगी

वर्तमान में शिवलाल ने बेतालघाट ब्लॉक के आमबाडी़ गांव को ठिकाना बनाया है। हालांकि बहुत ज्यादा बिक्री नहीं हो रही पर फिर भी गुजर बसर करने लायक बिक्री हो जाती है। शिवलाल सरकार की उपेक्षा से भी नाराज हैं। कहते हैं कि सरकार ध्यान दें तो तांबा उद्योग काफी आगे जा सकता है साथ ही उनके जैसे कई लोग को भी मदद मिल सकती है।

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