उत्तराखंड में आस्था और पर्यटन का बड़ा केन्द्र है बैजनाथ धाम, कभी कत्यूर वंश की थी राजधानी

Baijnath Dham उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के बागेश्वर जिले में स्थित बैजनाथ धाम लाखों-करोड़ों हिन्दुओं के आस्था का बड़ा केन्द्र है।

By Skand ShuklaEdited By: Publish:Fri, 11 Sep 2020 12:08 PM (IST) Updated:Fri, 11 Sep 2020 12:08 PM (IST)
उत्तराखंड में आस्था और पर्यटन का बड़ा केन्द्र है बैजनाथ धाम, कभी कत्यूर वंश की थी राजधानी
उत्तराखंड में आस्था और पर्यटन का बड़ा केन्द्र है बैजनाथ धाम, कभी कत्यूर वंश की थी राजधानी

बागेश्वर, जेएनएन :  Baijnath Dham : उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के बागेश्वर जिले में स्थित बैजनाथ धाम लाखों-करोड़ों हिन्दुओं के आस्था का बड़ा केन्द्र है। यहां हर साल श्रद्धालुओं के साथ देशी-विदेशे से पर्यटक बड़ी तादाद में पहुंचते हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के मिनी स्वीटजरलैंड कौसानी से इसकी दूरी महज 18 किमी है। बैजनाथ गरुड़ गंगा और गोमती नदी के संगम पर बसा हुआ है। बैजनाथ का पौराणिक नाम बैद्यनाथ बताया जाता है। मंदिर को अब कृत्रिम झील ने चार चांद लगा दिए हैं।

कत्यूरियों की राजधानी बैजनाथ सातवीं शताब्दी में विकसित हुई थी। कत्यूरी राजा नर सिंह देव ने यहां सातवीं में शासन स्थापित किया था। जबकि कत्यूरी राजाओं ने 13वीं शताब्दी तक राज किया। कत्यूरी शासनकाल की राजधानी रहने के दौरान बैद्यनाथ को कार्तिकेयपुर के नाम से जाना जाता था। कत्यूरी राजा कुमाऊं-गढ़वाल के अलावा नेपाल के डोटी क्षेत्र तक शासन किया करते थे।

नेपाली राजा क्रंचलदेव ने 1190 में कार्तिकेयपुर पर आक्रमण कर कत्यूरों को हराया था। इस हार से छिन्न-भिन्न होकर कत्यूरी राज्य आधा दर्जन से अधकि अलग-अलग रियासतों में बंट गया। फिर भी 1565 तक यहां कत्यूरी वंशजों का ही शासन रहा। 1565 में अल्मोड़ा के राजा कल्याण चन्द द्वारा कब्जा कर लिए जाने तक यहां कत्यूरों का ही शासन रहा। 1790 में गोरखाओं ने आक्रमण कर पूरे कुमाऊं पर अपना आधिपत्य जमा लिया। 1815 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने गोरखाओं को हरा दिया और सुगौली संधि ने इस पर अंग्रेजों का शासन स्थापित कर दिया।

बैजनाथ पौराणिक मंदिरों की स्थली

बैजनाथ अपने पौराणिक मंदिरों के लिए भी जाना जाता है। कत्यूरी शासकों के अलावा चन्द और मणिकोटी शासकों द्वारा यहां पर अनेकों मंदिरों का निर्माण एवं पुनर्निर्माण किया गया था। यहां पर 18 मंदिरों का एक समूह था जिसके केंद्र में भगवान शिव का मंदिर था। जिसके अब अवशेष मात्र ही अब वर्तमान में हैं। बैजनाथ से करीब 10 किमी की परिधि में आज भी पौराणिक मंदिरों और मूर्तियों के अवशेष पाए जाते हैं।

इन देवी-देवताओं का वास

बैजनाथ के मुख्य मंदिर के अलावा यहां सूर्य, ब्रह्म, कुबेर, चंडी, काली आदि के मंदिर हैं। यहाँ मौजूद अधिकांश देवी-देवताओं की मूर्तियों को पुरातत्विक संग्रहालय में रखा गया है। बैजनाथ के मंदिरों के एेतिहासिक धरोहर होने की वजह से इसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा उत्तराखंड में मौजूद राष्ट्रीय महत्त्व के स्मारक का दर्जा दिया गया है। यह भारत सरकार द्वारा शिव हैरिटेज सर्किट के तहत जोड़े जाने वाले देश के चार स्थानों में से भी एक है।

चार चांद लगाती कृत्रिम झील

बैजनाथ धाम के समीप कल-कल, छल-छल बह रही गोमती नदी पर कत्रिम झील का निर्माण सिंचाई विभाग ने किया है। जिससे मंदिर के सौंदर्य का चार-चांद लग गए हैं। झील में नाव आदि का संचालन भी होने लगा है। लेकिन कोरोना वायरस संक्रमण के बाद गत मार्च से यहां पर्यटकों की आवाजाही थमी है, लेकिन बागेश्वर आने वाला प्रत्येक व्यक्ति यहां की प्रकृति को निहारने के लिए कुछ क्षण यहां रुकता है।

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