गोमुख ग्लेशियरों की सेहत ठीक नहीं, इसलिए समय से पहले टूटा

वैज्ञानिकों के अनुसार ग्लेशियरों की सेहत ठीक नहीं है। इसलिए गोमुख ग्‍लेशियर समय से पहले टूट गया। यह नौबत कम बर्फबारी और बढ़ते तापमान से आ रही है।

By sunil negiEdited By: Publish:Tue, 05 Jul 2016 11:19 AM (IST) Updated:Tue, 05 Jul 2016 11:24 AM (IST)
गोमुख ग्लेशियरों की सेहत ठीक नहीं, इसलिए समय से पहले टूटा

रुड़की, [जेएनएन]: गोमुख ग्लेशियर का एक हिस्सा टूटने से वैज्ञानिक हैरत में नहीं हैं, लेकिन इतना जरूर कह रहे हैं कि यह घटना समय से पहले हो गई। आमतौर पर ग्लेशियर जुलाई के अंतिम अथवा अगस्त के पहले सप्ताह में टूटते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार ग्लेशियरों की सेहत ठीक नहीं है। कम बर्फबारी और बढ़ते तापमान से यह नौबत आ रही है।
रुड़की स्थित राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (एनआइएच) की टीम वर्ष 2000 से गोमुख ग्लेशियर का अध्ययन कर रही है। एनआइएच में सतही जलविज्ञान विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. मनोहर अरोड़ा के अनुसार ग्लेशियरों का टूटना एक सामान्य घटना है, हालांकि इस बार यह कुछ जल्दी घटित हो गई। वह बताते हैं कि 15 साल पहले ग्लेशियर पर करीब साढ़े छह फीट बर्फ देखने को मिलती थी, लेकिन अब बर्फ की यह परत घटकर साढ़े चार फीट रह गई है। उन्होंने बताया कि जब ताजी बर्फ की परत पतली होगी तो मूल ग्लेशियर पिघलना शुरू हो जाएगा। इस प्रक्रिया को वैज्ञानिक नेगेटिव मास बैलेंस कहते हैं।

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इसका मतलब यह है कि ग्लेशियर बढ़ने की बजाए सिकुड़ रहा है। डॉ. अरोड़ा बताते हैं कि वैज्ञानिकों की टीम ने अपने अध्ययन में पाया कि पहले नवंबर में अच्छी बर्फबारी होने लगती थी। जबकि बीते कुछ वर्षों से बर्फबारी का यह पैटर्न फरवरी में देखने को मिल रहा है।

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एनआइएच के निदेशक राजदेव सिंह बारिश और बर्फबारी के पैटर्न में आए बदलाव को स्थायी नहीं मानते। वह कहते हैं कि यह स्थिति कभी भी बदल सकती है। तब ग्लेशियर नेगेटिव मास बैलेंस से पाजिटिव मास बैलेंस (ग्लेशियर के बढ़ने की प्रक्रिया) में आ जाएंगे।

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