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गोमुख ग्लेशियर का एक हिस्सा टूटकर भागीरथी नदी में गिरा

उत्‍तरकाशी में भागीरथी नदी में गोमुख ग्लेशियर का एक हिस्सा टूटकर गिर गया। इसका पता अट्ठारह किलोमीटर दूर गंगोत्री से भागीरथी के प्रवाह में देखे जाने पर चला।

By sunil negiEdited By: Published: Mon, 04 Jul 2016 10:22 AM (IST)Updated: Tue, 05 Jul 2016 10:45 AM (IST)

उत्तरकाशी, [शैलेंद्र गोदियाल]: गोमुख ग्लेशियर का एक हिस्सा टूटकर भागीरथी नदी में गिर गया। ग्लेशियर के टुकड़े यहां अट्ठारह किलोमीटर दूर गंगोत्री में भागीरथी के प्रवाह में देखे जाने पर इसका पता चला। गंगोत्री नेशनल पार्क और पंडित गोविन्द बल्लभ पंत हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान अल्मोड़ा के वैज्ञानिकों ने गोमुख ग्लेशियर का एक हिस्सा टूटने की पुष्टि की। ग्लेशियर विज्ञानी फिलहाल कम बर्फबारी को इसका कारण मान रहे हैं। हालांकि, वैज्ञानिकों ने इसे मौसम की सामान्य घटना बताया। वस्तुस्थिति का पता लगाने के लिए ग्लेशियर विज्ञानियों का एक दल गोमुख भेजने की तैयारी की जा रही है।
शनिवार शाम को गंगोत्री में भागीरथी नदी के प्रवाह में बर्फ के टुकड़े आते देख गंगोत्री नेशनल पार्क अधिकारियों का माथा ठनका। पार्क के रेंज अधिकारी प्रताप सिंह पंवार ने तत्काल भोजबासा में तैनात पार्क कर्मचारियों और पंडित गोविन्द बल्लभ पंत हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान अल्मोड़ा के वरिष्ठ वैज्ञानिकों से वायरलैस के जरिये संपर्क साधा। पता चला कि शाम को गोमुख ग्लेशियर के बायीं तरफ का एक हिस्सा टूट गया था। टूटे ग्लेशियर हिस्से का आकार क्या रहा होगा, इसका अभी पता नहीं चला है। इसके लिए प्रयास किए जा रहे हैं। बता दें कि भोजबासा में तीन वैज्ञानिकों का दल पहले से ही गोमुख ग्लेशियर के अध्ययन के लिए मौजूद है।

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PICS: गोमुख ग्लेशियर का एक हिस्सा टूटा
ग्लेशियर टूटने का पता चलने के बाद से गंगोत्री नेशनल पार्क और वैज्ञानिकों की टीम सही आंकड़ा जुटाने में लगी है। दस सालों से गोमुख ग्लेशियर पर अध्ययन कर रहे पंडित गोविन्द बल्लभ पंत हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान अल्मोड़ा के वरिष्ठ वैज्ञानिक कीर्ति कुमार लगातार अपनी टीम के सदस्यों से संपर्क साध रहे हैं, लेकिन संचार नेटवर्क न मिलने के कारण संपर्क नहीं हो पा रहा है। अलबत्ता, पार्क के अधिकारियों की इस दल से वायरलैस पर बराबर बातचीत हो रही है। वैज्ञानिकों ने ग्लेशियर का कुछ हिस्सा टूटकर भागीरथी नदी में गिरने की सूचना को सही बताया।
ग्लेशियर टूटने के कारणों को लेकर हालांकि अभी आधिकारिक तौर पर कोई कुछ नहीं बोल रहा है, लेकिन इसे मौसम से आए बदलाव और कम बर्फबारी से जोड़कर देखा जा रहा है। वरिष्ठ वैज्ञानिक कीर्ति कुमार का कहना है कि इस साल कम बर्फबारी और मौसम में आए बदलाव के कारण गोमुख ग्लेशियर मई में ही तेजी से पिघलना शुरू हो गया था। इसकी बायीं ओर दरारें पडऩी शुरू हो गई थीं। जीपीएस लोकेशन में इसका पता चला था। उन्होंने आशंका जताई कि संभवत: इसी वजह से ग्लेशियर का हिस्सा टूटा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्लेशियर में आई दरारों में बारिश का पानी जमा होने से इस तरह की घटनाएं होती हैं। वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बताया कि सप्ताह भर में वह एक टीम गोमुख में भेजने की तैयारी कर रहे हैं। तब सही-सही पता चल पाएगा कि ग्लेशियर का कितना हिस्सा टूटा और इसके क्या कारण रहे।

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2012 में भी टूटा था ग्लेशियर
गोमुख ग्लेशियर चार साल पहले भी टूटा था। वरिष्ठ वैज्ञानिक कीर्ति कुमार बताते हैं कि वर्ष 2012 में गोमुख ग्लेशियर का एक हिस्सा टूटा गया था। तब भी इसके टुकड़े बहकर गंगोत्री तक आए थे। उस वक्त गोमुख से करीब आधा किलोमीटर पहले गंगोत्री की तरफ भागीरथी के जल स्तर को नापने के लिए एक गेज स्टेशन बनाया था, ग्लेशियर के टुकड़े उसे भी साथ बहा ले गए थे। वह बताते हैं कि वर्ष 2012 में भी कम बर्फबारी और जुलाई के महीने ग्लेशियर के ऊपर से खासी बारिश हुई थी।


इस लिए टूट रहे हैं ग्लेशियर
ग्लेशियर विज्ञानी कीर्ति कुमार का कहना है कि लगातार बढ़ते प्रदूषण से ग्लोबल वार्मिंग, अनुमान से कम बर्फबारी और जंगलों की आग का असर सीधे ग्लेशियरों पर पड़ रहा है। ग्लेशियर पिघलने तथा टूटने के यही बड़े कारण बन रहे हैं। जुलाई और अगस्त माह में ग्लेशियर के ऊपर से बारिश पड़ती है, इसलिए ग्लेशियरों से टूटने की आशंका बढ़ जाती हैं।

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