नैसर्गिक सौंदर्य और जैवविविधता से भरा पड़ा है उत्तराखंड, जानिए इससे जुड़े पर्यटन की खासियत

नैसर्गिक सौंदर्य से परिपूर्ण उत्तराखंड अपनी समृद्ध जैवविविधता के लिए भी मशहूर है। इससे जुड़़े पर्यटन भी यहां पर्यटकों को आकर्षित कर रहे हैं।

By BhanuEdited By: Publish:Sat, 08 Feb 2020 11:53 AM (IST) Updated:Sat, 08 Feb 2020 11:53 AM (IST)
नैसर्गिक सौंदर्य और जैवविविधता से भरा पड़ा है उत्तराखंड, जानिए इससे जुड़े पर्यटन की खासियत
नैसर्गिक सौंदर्य और जैवविविधता से भरा पड़ा है उत्तराखंड, जानिए इससे जुड़े पर्यटन की खासियत

देहरादून, केदार दत्त। नैसर्गिक सौंदर्य से परिपूर्ण उत्तराखंड अपनी समृद्ध जैवविविधता के लिए भी मशहूर है। हिमालय पर्वत श्रृंखला के रूप में यहां मौजूद जलस्तंभ से देश के करोड़ों लोगों की आर्थिकी-आजीविका जुड़ी है। गंगा, यमुना, शारदा जैसी नदियों के उद्गम स्थल यहां के हिमखंडों और सघन वन क्षेत्रों में अवस्थित हैं। 

कुल भौगोलिक क्षेत्र का 71.05 फीसद क्षेत्र वनों के रूप में अधिसूचित है, जो बेशकीमती जड़ी-बूटियों का भंडार हैं। साथ ही यहां बाघ, हाथी समेत दूसरे वन्यजीवों का सुरक्षित बसेरा। साफ है कि इस छोटे से राज्य की देश के बड़े भू-भाग के पारिस्थितिकीय संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भागीदारी है। 

यहां से मिल रही तीन लाख करोड़ की सालाना पर्यावरणीय सेवाएं इसकी तस्दीक करती है। तमाम दिक्कतों के बावजूद उत्तराखंड में जैवविविधता को संरक्षित रखने की दिशा में पूरी मुस्तैदी से कदम उठाए जा रहे हैं। न सिर्फ सरकार बल्कि, जनसामान्य को भी इसे लेकर अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभानी आवश्यक है।

पारिस्थितिकीय पर्यटन

कुदरत ने उत्तराखंड को मुक्त हाथों से नेमतें बख्शी हैं। जंगल, नदी, झरने, पहाड़, सभी कुछ तो है यहां। दो टाइगर रिजर्व को सम्मिलित करते हुए छह राष्ट्रीय उद्यान, सात वन्यजीव विहार, चार कंजर्वेशन रिजर्व के साथ ही यहां के दूसरे संरक्षित-आरक्षित वन क्षेत्रों का प्राकृतिक सौंदर्य हर किसी को आकर्षित करता है। 

सूरतेहाल, जब हम पारिस्थितिकी को सहेज रहे तो पारिस्थितिकीय पर्यटन का उपयोग राजस्व अर्जन के साथ ही स्थानीय निवासियों की आय में वृद्धि के स्रोत के रूप में करना चाहिए। वजह यह कि पारिस्थितिकीय पर्यटन में प्रकृति से छेड़-छाड़ किए बगैर पर्यटन गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाता है।

इससे पर्यटक जहां संरक्षण के भाव से ओत-प्रोत होते हैं, वहीं स्थानीय समुदाय की आर्थिकी संवरने के दरवाजे खुलते हैं। हालांकि, सरकार ने इस दिशा में पहल कर रही, मगर इन प्रयासों को अधिक तेजी देनी होगी। इससे गांवों से हो रहे पलायन को थामने में भी मदद मिलेगी।

पक्षी अवलोकन

न सिर्फ वन्यजीवों, बल्कि परिंदों के लिए भी उत्तराखंड बड़ी ऐशगाह है। देशभर में पाई जाने वाली 1300 पक्षी प्रजातियों में से लगभग 700 प्रजातियां यहां मिलती हैं। प्रवासी परिदों को भी उत्तराखंड की वादियां खूब भाती हैं। ऐसे में पक्षी प्रेमियों के लिए यह सूबा एक बड़े पक्षी अवलोकन केंद्र के रूप में भी उभर रहा है। 

जरूरत है तो यूरोप की तर्ज पर पक्षी अवलोकन को एक बड़े उद्योग के रूप में विकसित करने की। फिर चाहे वह कार्बेट व राजाजी नेशनल पार्क हों अथवा पवलगढ़, नंधौर, आसन कंजर्वेशन रिजर्व या फिर दूसरे वन क्षेत्र, सभी जगह पक्षी अवलोकन की मुहिम को वृहद स्तर पर आकार दिया जाना समय की मांग है। जाहिर है कि यह भी आय अर्जक गतिविधियों के रूप में बड़ा स्रोत बन सकता है। हालांकि, बर्ड फेस्टिवल, नेचर फेस्टिवल के रूप में गाहे-बगाहे आयोजन हो रहे हैं, मगर ऐसी पहल को निरंतरता देनी होगी।

मिलेगा रोजगार

पलायन का दंश झेल रहे उत्तराखंड के गांवों में लोगों को थामे रखने में पारिस्थितिकीय पर्यटन अहम भूमिका निभाने की क्षमता रखता है। इसमें समुदाय आधारित भागीदारी को बढ़ाना आवश्यक है। इसके दृष्टिगत प्रदेश सरकार ने उत्तराखंड इको टूरिज्म डेवलपमेंट कारपोरेशन का गठन किया है।

पारिस्थितिकीय पर्यटन के तहत संरक्षित और आरक्षित वन क्षेत्रों से लगे इलाकों में इको डेवलपमेंट कमेटियां गठित की जा रही हैं। 12 आरक्षित वन क्षेत्रों को ईको टूरिज्म डेस्टिनेशन के रूप में विकसित करने का निश्चय किया गया है। निश्चित रूप से यह पहल सराहनीय मानी जा सकती है, लेकिन सिर्फ कमेटियां गठित कर देने भर से काम नहीं चलेगा। 

यह भी पढ़ें: पवलगढ़ कंजर्वेशन रिजर्व में परिंदों के संसार से रूबरू होंगे पक्षी प्रेमी

कमेटियों से जुड़े लोगों को नेचर व बर्ड गाइड, हॉस्पिटेलिटी, फोटो व वीडियोग्राफी, सोवेनियर शॉप के जरिये स्थानीय उत्पादों की ब्रांडिंग आदि से संबंधित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। हालांकि, ये मुहिम चल भी रही, लेकिन राज्य में इसे अधिक गंभीरता के साथ आगे बढ़ाना होगा।

यह भी पढ़ें: उत्तराखंड में छह माह के भीतर आएंगे असम से गैंडे, पढ़िए पूरी खबर

chat bot
आपका साथी