उत्तराखंड में फायर लाइनें साफ न होने से बढ़ी आग रोकने की चिंता, जानिए क्यों पेड़ भी बन रहे चुनौती

Uttarakhand Forest Fire दावानल पर नियंत्रण में फायर लाइनें अहम भूमिका निभाती है। पर उत्तराखंड में फायर लाइनें साफ नहीं होने के कारण आग रोकने की चुनौती खड़ी हो गई है। इस बार बारिश और बर्फबारी के कारण भी मुसीबत बढ़ गई है।

By Raksha PanthriEdited By: Publish:Mon, 21 Feb 2022 08:31 AM (IST) Updated:Mon, 21 Feb 2022 08:31 AM (IST)
उत्तराखंड में फायर लाइनें साफ न होने से बढ़ी आग रोकने की चिंता, जानिए क्यों पेड़ भी बन रहे चुनौती
उत्तराखंड में फायर लाइनें साफ न होने से बढ़ी आग रोकने की चिंता।

केदार दत्त, देहरादून। Uttarakhand Forest Fire उत्तराखंड में जंगलों के सुलगने का सिलसिला शुरू चुका है। इसकी रोकथाम के लिए वन विभाग ने भले ही मोर्चा संभाल लिया हो, लेकिन यह डगर इतनी आसान भी नहीं है। आग पर नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली फायर लाइनें अभी तक पूरी तरह साफ नहीं हो पाई हैं। राज्य के जंगलों में फायर लाइनों की कुल लंबाई 13917.1 किलोमीटर है। यद्यपि, इनकी सफाई के लिए कसरत चल रही है, लेकिन विपरीत मौसम और विषम भौगोलिक परिस्थितियां चिंता व चुनौती, दोनों ही बढ़ा रहे हैं।

आग को फैलने से रोकने के उद्देश्य से जंगलों में चौड़े रास्ते बनाए जाते हैं, जिन्हें हर समय साफ रखना जरूरी है। इन्हें ही फायर लाइन कहा जाता है। जंगल की आग एक से दूसरे हिस्से में न पसरे, इसे देखते हुए फायर लाइनों को वहां जमा पत्तियों के ढेर और उगी झाडिय़ों को नियंत्रित ढंग से जलाकर साफ रखा जाता है। आग के फैलाव को रोकने का यह सबसे कारगर तरीका है। यही नहीं, फायर लाइनें सामान्य परिस्थितियों में गश्त में भी बड़ी मददगार होती हैं।

इस सबको देखते हुए वन विभाग के मुखिया ने पिछले वर्ष 16 दिसंबर को ही सभी वन प्रभागों के डीएफओ और संरक्षित क्षेत्रों के निदेशकों को पत्र भेजा था। इसमें फायर लाइनों के महत्व को रेखांकित करते हुए इनकी साफ-सफाई के लिए कदम उठाने के निर्देश दिए गए थे। इसके बाद मैदानी क्षेत्रों में कसरत हुई, लेकिन विषम भूगोल वाले पर्वतीय क्षेत्रों में मौसम इस राह में लगातार बाधक बना रहा। परिणामस्वरूप पहाड़ के जंगलों की फायर लाइनों की सफाई के लिए नियंत्रित फुकान का कार्य नहीं हो पाया था।

अब इस दिशा में तेजी से कदम बढ़ाए जा रहे हैं। मुख्य वन संरक्षक वनाग्नि एवं आपदा प्रबंधन निशांत वर्मा ने बताया कि सभी संरक्षित व आरक्षित क्षेत्रों में यह कार्य किया जा रहा है। प्रयास यह है कि इस माह के आखिर तक प्रदेशभर में अधिकांश फायर लाइनों को पूरी तरह से क्लीयर करा लिया जाए।

पेड़ भी बने हैं चुनौती

पर्वतीय क्षेत्र के जंगलों में फायर लाइनों को साफ रखने की राह में वहां उगे पेड़ भी चुनौती बने हैं। फायर लाइनों को साफ रखने के लिए होने वाले नियंत्रित फुकान के दौरान वहां खड़े पेड़ों के जलने का खतरा बना रहता है। इसके अलावा एक हजार मीटर से ऊपर की ऊंचाई पर पेड़ों के कटान पर प्रतिबंध है। ऐसे में इन्हें काटा भी नहीं जा सकता।

राज्य में फायर लाइनें

चौड़ाई, लंबाई

100 फीट, 1448.94 किमी

50 फीट, 2451.02 किमी

30 फीट, 3174.56 किमी

05 से 30 फीट तक, 6842.58 किमी

जंगल की आग (15 फरवरी से अब तक)

क्षेत्र, घटनाएं, प्रभावित क्षेत्र, क्षति

गढ़वाल, 00, 00, 00

कुमाऊं, 01, 1.0, 1250

वन्यजीव परिक्षेत्र, 02, 1.25, 1250

(नोट: प्रभावित क्षेत्र हेक्टेयर और क्षति रुपये में)

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