उत्‍तराखंड के इस गांव में पांडव नृत्य की है अनूठी परंपरा

रुद्रप्रयाग के केदारघाटी के दरमोला भरदार में पांडव नृत्य की एक अनूठी परंपरा है। यहां प्रतिवर्ष एकादशी पर्व पर देव निशानों के गंगा स्नान के साथ पांडव नृत्य का आयोजन होता है।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Sun, 18 Nov 2018 02:22 PM (IST) Updated:Mon, 19 Nov 2018 08:43 AM (IST)
उत्‍तराखंड के इस गांव में पांडव नृत्य की है अनूठी परंपरा
उत्‍तराखंड के इस गांव में पांडव नृत्य की है अनूठी परंपरा

देहरादून जेएनएन। रुद्रप्रयाग जिले के केदारघाटी के दरमोला भरदार में पांडव नृत्य की एक अनूठी परंपरा है। यहां प्रतिवर्ष एकादशी पर्व पर देव निशानों के गंगा स्नान के साथ पांडव नृत्य का आयोजन सदियों से चला आ रहा है। एकादशी का पर्व इसलिए शुभ माना गया है कि इस दिन भगवान नारायण एवं तुलसी विवाह संपन्न हुआ था। पौराणिक परंपराओं के अनुसार पांडव मोक्ष प्राप्ति के लिए स्वर्गारोहण को जाते समय अपने अस्त्र-शस्त्र केदारघाटी में छोड़ गए थे, तब से लेकर आज भी यहां इनकी पूजा होती चली आ रही है। स्कंद पुराण के केदारखंड में पांडव काल का पूरा वर्णन मिलता है। इससे जहां एक ओर ग्रामीण अपनी अटूट आस्था के साथ संस्कृति को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर भावी पीढ़ी को भी इससे रूबरू करा रहे हैं। 

गढ़वाल क्षेत्र में प्रत्येक वर्ष नवंबर माह से लेकर फरवरी माह तक पांडव नृत्य का आयोजन होता है। प्रत्येक गांव में पांडव नृत्य के आयोजन की अलग-अलग परंपराएं हैं। कहीं पांच तो कहीं दस वर्षों बाद पांडव नृत्य का आयोजन होता है, लेकिन भरदार क्षेत्र के ग्राम पंचायत दरमोला एकमात्र ऐसा गांव है, जहां प्रत्येक वर्ष एकादशी पर्व पर देव निशानों के साथ मंदाकिनी व अलकनंदा के तट पर गंगा स्नान के साथ पांडव नृत्य शुरू करने की परंपरा है। इस गांव में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।

एकादशी की पूर्व संध्या पर दरमोला, तरवाडी, स्वीली, सेम के ग्रामीण भगवान बद्रीविशाल, लक्ष्मीनारायण, शंकरनाथ, नागराजा, देवी, हित, ब्रहमडुंगी, भैरवनाथ समेत कई नेजा-निशान व गाजे बाजों के साथ गंगा स्नान के लिए संगम तट पर पहुंचते हैं। यहां पर जागरण एवं देव निशानों की चार पहर की पूजा अर्चना की जाती है। एकादशी पर्व पर तड़के सभी देव निशानों के गंगा स्नान कराने के उपरांत पूजा-अर्चना एवं हवन किया जाता है। इसके उपरांत ही देव निशानों को गांव में ले जाकर इसी दिन यहां पांडव नृत्य का आयोजन शुरु होता है। इस आयोजन में मुख्य रुप से पांडवों के बाणों एवं अस्त्र-शस्त्रों की पूजा-अर्चना की भी अनूठी परंपरा है, जिससे लोगों की अटूट आस्था आज तक बनी हुई है। केदारघाटी में पांडवों के अस्त्र-शस्त्र छोड़े जाने का वर्णन स्कंद पुराण के केदारखंड में भी मिलता है। 

मान्यता है कि एकादशी के भगवान विष्णु ने पांच माह की निंद्रा से जागकर तुलसी से साथ विवाह हुआ था। यह दिन देव निशान को गंगा स्नान व पांडव नृत्य के लिए शुभ माना गया है, जो सदियों से चला आ रहा है। तब से अभी तक ग्रामीण देव निशानों को गंगा स्नान के लिए अवश्य लाते हैं। बताया जाता है कि यदि इस दिन देव निशानों को गंगा स्नान के लिए नहीं लाया गया तो गांव में कुछ न कुछ अनहोनी अवश्य होती है। इसलिए ग्रामीण इस दिन को कभी नहीं भूलते हैं।

एकादशी यानी 19 नवंबर से शुरू होगा आयोजन 

इस वर्ष एकादशी पर्व यानी 19 नवंबर से पांडव नृत्य का आयोजन शुरू होगा। इससे पूर्व रविवार को ग्रामीण देव निशानों के साथ संगम तट पर पहुंचेंगे तथा रात्रि जागरण के बाद सोमवार सुबह स्नान किया जाएगा। यहां पर देव निशानों की पूजा-अर्चना के बाद दरमोला गांव के लिए प्रस्थान करेंगे। इस बार ग्राम पंचायत के दरमोला के राजस्व ग्राम तरवाड़ी में पांडव नृत्य का आयोजन किया जाएगा, जिसे लेकर पांडव लीला कमेटी की तैयारियों में जुटी है।

सदियों से होता आ रहा पांडव नृत्य का आयोजन 

पुजारी गिरीश डिमरी (पांडव नृत्य समिति ग्राम पंचायत दरमोला) का कहना है कि केदारघाटी के ग्राम पंचायत दरमोला में पांडव नृत्य का आयोजन सदियों से होता आ रहा है। यह एक ऐसा गांव है, जहां प्रतिवर्ष देव निशानों के गंगा स्नान के साथ पांडव नृत्य की परंपरा है। ऐसे पौराणिक संस्कृति को बचाना हम सभी का धर्म होना चाहिए, जिससे भावी पीढ़ी भी रूबरू हो रही है।

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