जंग ए आजादी के वीर सिपाही शहीद केसरी चंद को किया याद, आज के ही दिन हंसते हंसते चूमा था फांसी का फंदा

आज ही के दिन तीन मई 1945 को जंग ए आजादी के वीर सिपाही शहीद केसरी चंद ने देश की खातिर अग्रेंजी हकूमत से लड़ते हुए हंसते हंसते फांसी का फंदा चूमा लिया था।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Sun, 03 May 2020 01:56 PM (IST) Updated:Sun, 03 May 2020 09:42 PM (IST)
जंग ए आजादी के वीर सिपाही शहीद केसरी चंद को किया याद, आज के ही दिन हंसते हंसते चूमा था फांसी का फंदा
जंग ए आजादी के वीर सिपाही शहीद केसरी चंद को किया याद, आज के ही दिन हंसते हंसते चूमा था फांसी का फंदा

विकासनगर, जेएनएन। तीन मई 1945 को फांसी के फंदे पर झूले शहीद केसरी चंद की याद में भले ही इस बार चकराता के रामताल गार्डन में मेला न लगा हो, लेकिन शहीद केसरी चंद स्मारक समिति के चंद पदाधिकारियों ने शहीद को श्रद्धाजंलि दी।

तीन मई को हजारों लोगों की भीड़ से रौनकमय रहने वाला रामताल गार्डन रविवार को सूना दिखाई दिया। जबकि आज के दिन हर साल हजारों लोग शहीद की याद में लगने वाले मेले में आते थे, सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते थे। लेकिन समिति द्वारा लॉकडाउन के चलते मेला स्थगित किए जाने की वजह से सिर्फ समिति पदाधिकारियों ने ही शहीद को पुष्पाजंलि अर्पित कर याद किया। कोरोना वायरस के संक्रमण को देखते हुए सभी ने फिजिकल डिस्टेंस का पालन किया। रविवार को श्रद्धाजंलि अर्पित करने वालों में समिति अध्यक्ष संजीव चौहान, सचिव रमेश चौहान, उपाध्यक्ष अनुपम तोमर, चंदर शेखर जोशी, राजेन्द्र जोशी आदि शामिल रहे।

मुख्यमंत्री ने दी श्रद्धाजंलि

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मुख्यमंत्री आवास में वीर शहीद केसरी चंद के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र ने कहा कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने जब आजाद हिन्द फौज की स्थापना की तो उत्तराखंड से अनेक रणबांकुरो ने इस सेना की सदस्यता लेकर देश की रक्षा की ठानी। उत्तराखंड के वीर सपूत केसरी चंद ने स्वतंत्रता संग्राम में अपने प्राणों की आहुति दी। इस दौरान विधायक मुन्ना सिंह चौहान, जिला पंचायत अध्यक्ष देहरादून मधु चौहान भी उपस्थित थे।

देश की आजादी में अहम रोल निभाया केसरी चंद ने

जंग ए आजादी के वीर सिपाही शहीद केसरी चंद ने देश की खातिर अग्रेंजी हकूमत से लड़ते हुए फांसी का फंदा चूमा लिया था। वीर केसरी चंद ने जौनसार बावर क्षेत्र के क्यावा गांव में एक नवम्बर 1920 को एक साधारण से परिवार में जन्म लिया था, जब ये मात्र छह साल के थे तो उनकी मां चल बसी। पिता शिव दत्त ने केसरी चंद को स्थानीय हाईस्कूल में शिक्षा दिलाई। आगे की पढ़ाई के लिए केसरी चंद देहरादून के डीएवी इंटर कालेज पहुंच गए, लेकिन 10 अप्रैल 1941 को बीच में ही पढ़ाई छोड़कर वह रायल इडिया आर्मी सर्विस कोर में नायब सूबेदार के पद पर भर्ती हो गए।

इन्हीं दिनों नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आह्वान पर आजाद हिंद फौज का गठन हुआ। जिसमें देश को आजाद कराने का सपना लिए केसरी चंद भी आजादी के दीवानों की टोली में शामिल हो गए। वर्ष 1944 में आजाद हिंद फौज वर्मा भारत सीमा से होते हुए मणिपुर की राजधानी इम्फाल पहुंची, जहां 28 जून 1944 को अग्रेंजों ने युद्ध के दौरान केसरी चंद को बंदी बना लिया। अक्टूबर में दिल्ली की फिरंगी सरकार ने इस स्वतंत्रता सेनानी पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया। 3 मई 1945 को देश के वीर सिपाही केसरी चंद ने आजादी की खातिर हंसते हंसते फांसी के फंदे को चूम लिया था।

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