पीने के लिए नहीं मिला पानी, इतने गांव हुए वीरान
गंगा व यमुना जैसी सदानीरा नदियों के उद्गम वाले उत्तराखंड के गांवों के वीरान होने की एक बड़ी वजह हलक तर करने को पानी न होना भी है।
देहरादून, [केदार दत्त]: बात भले ही अजीब लगे, लेकिन है सोलह आने सच। गंगा व यमुना जैसी सदानीरा नदियों के उद्गम वाले उत्तराखंड के गांवों के वीरान होने की एक बड़ी वजह हलक तर करने को पानी न होना भी है। ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2011 के बाद निर्जन हुए 734 गांवों में से 399 में एक किलोमीटर की परिधि में पीने के पानी की कोई व्यवस्था नहीं थी। ऐसे में लोगों ने वहां से पलायन करना ही मुनासिब समझा। इनमें पौड़ी जिले के सर्वाधिक 97 गांव शामिल हैं। प्रदेश में पेयजल के हालात कैसे हैं, राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम (एनआरडीडब्ल्यूपी) की रिपोर्ट इसे बयां करती है।
राज्य के 39202 गाव-मजरों में से 21363 को ही पानी नसीब है। शेष 17839 में पीने को पर्याप्त पानी उपलब्ध नहीं है। इन गांव-मजरों के आसपास के पेयजल स्रोत या तो सूख चुके हैं अथवा वहां के लिए पूर्व में बनी पेयजल योजनाएं निष्प्रयोज्य हो गई हैं। ऐसे में हलक तर करने को पानी जुटाना लोगों के सामने एक बड़ी चुनौती है। इससे पार पाने के लिए लोग गांवों से सुविधाजनक स्थानों की ओर पलायन कर रहे हैं।
पलायन आयोग की रिपोर्ट ही बताती है कि पिछले सात सालों में 734 गांवों के निर्जन होने के पीछे पेयजल भी एक बड़ी वजह रही है। पौड़ी जिले में एक किलोमीटर की परिधि में पीने का पानी उपलब्ध न होने के कारण सबसे अधिक 97 गांव निर्जन हुए। इसमें भी पौड़ी के कोट विकासखंड में सर्वाधिक 22 गांव शामिल हैं। वहीं, पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट ब्लाक में ऐसे गांव की संख्या 35 है, बागेश्वर के गरुड़ में 29, चंपावत के चंपावत ब्लाक में 22 है।यह भी पढ़ें: सूखे को मात देकर इन गांवों ने बहार्इ जलधारा, दिया नवजीवन
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