चुनाव के बाद इस बस्ती से मुंह फेर देते हैं नेताजी, पढ़िए पूरी खबर

ऋषिकेश विधान सभा के अंतर्गत हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र की एक बस्ती ऐसी है जिसे हर दल के नेताओं ने सिर्फ अपने वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया है।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Tue, 02 Apr 2019 09:03 AM (IST) Updated:Tue, 02 Apr 2019 09:03 AM (IST)
चुनाव के बाद इस बस्ती से मुंह फेर देते हैं नेताजी, पढ़िए पूरी खबर
चुनाव के बाद इस बस्ती से मुंह फेर देते हैं नेताजी, पढ़िए पूरी खबर

देहरादून, जेएनएन। लोक सभा चुनाव में सभी राजनैतिक दल विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं लेकिन ऋषिकेश विधान सभा के अंतर्गत हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र की एक बस्ती ऐसी है जिसे हर दल के नेताओं ने सिर्फ अपने वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया है। 

चुनाव आते ही नेता बस्ती की तरफ दौड़ने लगते हैं और यहां के लोगों को विकास के सपने दिखाते हैं। मगर जीतने वाले नेता को इस बस्ती की याद फिर कभी नहीं आती।

हरिपुरकलां स्थित सपेरा बस्ती ऐसी बस्ती हैं जो कि ग्राम पंचायत से लेकर विधान सभा व लोक सभा चुनाव में वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल की जाती रही है। इस बस्ती में 155 परिवार हैं और करीब 90 वोटर हैं। 

ये लोग 45 वर्ष से अधिक समय से यहां रह रहे हैं। बस्ती निवासी गुलाबो रानी, शकीला, रातो देवी, बिंद्रा रानी, हुकुमों आदि बताती हैं कि चुनाव के समय नेता लोग जब वोट मांगने आते हैं तो उनसे हमारी एक ही गुजारिश रहती है कि रहने के लिए पक्के मकान बनवा दो। लेकिन कोई भी उनकी सुनवाई नहीं करता। यहां के लोग कबाड़ बीनने का काम करके गुजर बसर करते हैं। बस्ती के लोगों के वोटर कार्ड व राशन कार्ड तो बने हैं, लेकिन उनको सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलता। वोट मांगने के लिए आने वाले नेता इनके अधिकार दिलाने की बात तो करते हैं, लेकिन जीतने के बाद फिर कभी मुड़कर इस बस्ती में नहीं आते।

वन विभाग नहीं बनाने देता पक्के मकान

दरअसल यह लोग जिस जमीन पर रहते हैं उसे वन विभाग अपनी बताता है। राजाजी पार्क क्षेत्र घोषित होने की वजह से यहां पक्के निर्माण पर रोक है। बस्ती के लोगों का कहना है कि वन विभाग वाले न तो उनके पक्का मकान बनाने देते हैं और न ही यहां से विस्थापित कर रहे हैं जबकि वह राजाजी पार्क बनने से पहले से यहां रहते आए हैं।

नहीं मिलता सरकारी योजना का लाभ

बस्ती के लोगों के वोटर कार्ड व राशन कार्ड जरूर बने हैं, लेकिन यह सिर्फ वोट डालने के काम आते हैं। जमीन पर मालिकाना हक न होने के वजह से इन लोगों को न तो सरकार की आवास योजनाओं का लाभ मिल पाता है और न ही दूसरी किसी योजना का। ये लोग कच्ची झोपडिय़ों में रहने को मजबूर हैं। हालांकि सौभाग्य योजना से बस्ती में कुछ सोलर लाइट लगीं है, लेकिन पीने का पानी और पक्के मकान नसीब नहीं हुए। 

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