पौड़ी में सात साल के भीतर 298 गांव से हुआ पलायन

पौड़ी जिले में सात साल के भीतर 298 गांव से पलायन हुआ है। इनमें से 186 गांव पूरी तरह से खाली हो गए हैं।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Sat, 08 Dec 2018 01:25 PM (IST) Updated:Sat, 08 Dec 2018 01:25 PM (IST)
पौड़ी में सात साल के भीतर 298 गांव से हुआ पलायन
पौड़ी में सात साल के भीतर 298 गांव से हुआ पलायन

देहरादून, जेएनएन। गढ़वाल की कमिश्नरी पौड़ी जिले में सात साल के भीतर 298 गांव से पलायन हुआ है। इनमें से 186 गांव पूरी तरह से खाली हो गए हैं। जबकि 112 में 50 फीसद से ज्यादा पलायन जारी है। आजीविका और रोजगार की कमी के चलते पलायन बढ़ा है। पलायन आयोग ने इसकी विस्तृत रिपोर्ट मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को सौंप दी है। मुख्यमंत्री ने कहा कि सहकारिता के 36 सौ करोड़ के बजट से गांव में आर्थिकी और रोजगार के द्वार खुलेंगे। 

पलायन आयोग ने पहले प्रदेश के 13 जनपदों का सर्वे कर मई माह में सरकार को सौंपी थी। इसके बाद ईको टूरिज्म पर एक रिपोर्ट सौंपी थी। सरकार ने गांव, ब्लॉक और जिलेवार रिपोर्ट तैयार करने के निर्देश दिए थे। इस पर सबसे ज्यादा पलायन प्रभावित गांव पौड़ी से शुरुआत की गई। छह माह पौड़ी में आयोग की टीमें विस्तृत सर्वे कर रही थीं। रिपोर्ट तैयार होने के बाद शुक्रवार को मुख्यमंत्री को सौंप दी गई है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि पलायन रोकने के लिए विकास की ठोस योजनाएं बनाई जा रही हैं। जल्द यह योजनाएं धरातल पर उतर जाएंगी। इससे गांव में रोजगार और आर्थिक समृद्धि लौटेगी। ग्रामीण विकास विभाग की मदद से इन योजनाओं का क्रियान्वयन होगा। इसके लिए केंद्र और राज्य सरकार की मदद से 36 सौ करोड़ की योजना तैयार हो गई है। इधर, पलायन आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. एसएस नेगी ने कहा कि पौड़ी के कुल 3447 गांव में 298 में पलायन हुआ है। 

बचे हुए 2149 गांव में पलायन कैसे रोका जाए, इसके समाधान के साथ रिपोर्ट सौंपी गई है। खासकर शेष गांव में 70 फीसद लोग मजदूरी और कृषि पर आजीविका चला रहे हैं। इनकी मासिक आय पांच हजार प्रति परिवार है। हालांकि, यह सुखद है कि खेतीबाड़ी छोड़ लोग लघु उद्योग से जुड़ रहे हैं। जिले में 65 सौ लोग लघु उद्योग से जुड़े हैं। जनपद के खिर्सू, दुगड्डा और थलीसैंण ब्लॉक की स्थिति बेहतर हैं। पोखड़ा, नैनीडांडा, जयहरीखाल, रिखणीखाल आदि विकास खंड में सबसे ज्यादा पलायन हुआ है। 

अब अल्मोड़ा का सर्वे

पौड़ी के बाद सबसे ज्यादा पलायन वाला जिला अल्मोड़ा है। इसके बाद आयोग ने अल्मोड़ा में विस्तृत सर्वे करने की योजना बनाई है। मार्च 2019 तक इसकी रिपोर्ट तैयार करने की बात कही गई। इसके लिए 20 लोगों की टीमें बनाई गई हैं। 

श्‍मशान में महिलाएं पहुंचाती लकड़ियां 

बढ़ते पलायन की स्थिति यह है कि कई गांव में स्वभाविक मौत के बाद कंधा लगाने को पुरुष नहीं मिलते हैं। दूसरे गांव से फोन करके अंतिम यात्रा के लिए लोग बुलाए जाते हैं। यही नहीं श्‍मशान तक महिलाएं लकड़ी पहुंचाने का काम करती हैं। नैनीडांडा ब्लॉक में यह स्थिति सबसे ज्यादा देखने को मिली हैं। कुछ गांव में सिर्फ एक से दो बुजुर्ग लोग ही निवास करते हैं। 

ये की गई सिफारिशें  गांव की अर्थव्यवस्था और विकास को गति देना।  कृषि एवं गैर कृषि आय में बढ़ावा देना।  ग्राम केंद्रित योजनाओं का संचालन करना।  बुनियादी सुविधाओं को उपलब्धता।  कर्मचारियों और स्थानीय समुदाय का बेहतर समन्वय।  महिलाओं की भूमिका पर ध्यान देकर योजनाएं बनाना।  जिला नीति, ग्रामीण अर्थ व्यवस्था बढ़ाने की रणनीति। 

रिपोर्ट में ये भी शामिल  29 प्रतिशत बीपीएफ परिवारों के साथ प्रदेश का पहला गरीब जिला।  83 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्र में रहते लोग।  05 प्रतिशत बढ़ा लघु उद्योग  85 प्रतिशत लोग समय पर देते बैंक लोन।  10 प्रतिशत बढ़ा ट्रांसपोर्ट और डेयरी उद्योग  पशुपालन की जगह मुर्गीपालन पर जोर।  हार्टीकल्चर 20 हजार हेक्टेअर से पहुंचा चार हजार।

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