बूढ़ाकेदार में दीपावली के एक माह बाद धूमधाम से मनाई जाती है मंगशीर दिवाली, जानें- क्या है मान्यता

बूढ़ाकेदार क्षेत्र में कार्तिक की दीपावली के ठीक एक माह बाद मंगशीर की दीपावली धूमधाम से मनाई जाती है। इस दीपावली पर गांव से बाहर रहने वाले लोग भी गांव पहुंचते हैं। करीब दस दिन पहले से ग्रामीण दीपावली की तैयारी में जुट जाते हैं।

By Raksha PanthriEdited By: Publish:Fri, 05 Nov 2021 04:01 PM (IST) Updated:Fri, 05 Nov 2021 04:01 PM (IST)
बूढ़ाकेदार में दीपावली के एक माह बाद धूमधाम से मनाई जाती है मंगशीर दिवाली, जानें- क्या है मान्यता
टिहरी के बूढ़ाकेदार में दीपावली के एक माह बाद धूमधाम से मनाई जाती है मंगशीर दिवाली।

जागरण संवाददाता, नई टिहरी। टिहरी के बूढ़ाकेदार क्षेत्र में कार्तिक की दीपावली के ठीक एक माह बाद मंगशीर की दीपावली धूमधाम से मनाई जाती है। इस दीपावली पर गांव से बाहर रहने वाले लोग भी गांव पहुंचते हैं। करीब दस दिन पहले से ग्रामीण दीपावली की तैयारी में जुट जाते हैं। दो दिन दीपावली मनाने के बाद गांव में गुरु कैलापीर देवता के नाम से तीन दिवसीय मेला भी आयोजित होता है।

कार्तिक दीपावली भी ग्रामीण मनाते हैं, लेकिन इसके ठीक एक माह बाद मंगशीर दिवाली भी पूरे क्षेत्र में धूमधाम से मनाई जाती है। बताया जाता है कि मंगशीर माह में एक बार गुरु कैलापीर देवता कुमांऊ से गढ़वाल भ्रमण पर आए थे। भ्रमण के दौरान देवता को बूढ़ाकेदार गांव से ऊपर जदरवाड़ा नाम स्थान पर ठहराया। यह स्थान देवता का काफी पंसद आ गया, जिसके बाद देवता ने यहीं पर रहने का निर्णय लिया।

देवता के इस निर्णय से ग्रामीण प्रसन्न हुए और खुशी में उन्होंने पेड़ की छाल से रोशनी की। इसके बाद से ही यहां पर हर साल मंगशीर की दिवाली मनाई जाने लगी। करीब तीन सौ सालों से यह दीपावली मनाई जाती है। इस दीपावली पर ग्रामीण रिंगाल से भैलो तैयार करते हैं और सामूहिक रूप से भैलो खेलते हैं। इस दिन रोजगार के लिए महानगर में रहने वाले लोग भी गांव पहुंचते हैं। साथ ही बाहर से भी काफी संख्या में लोग यहां आते हैं। दो दिन दीपावली मनाने के बाद बूढ़ाकेदार में तीन दिवसीय गुरु कैलापीर मेले का आयोजन होता है, जिसमें बड़ी संख्या में क्षेत्रवासी शामिल होते हैं।

देवता के साथ खेतों में दौड़ की है अनूठी परंपरा

मेले के पहले दिन गुरू कैलापीर देवता के निशान के साथ खेतों में ग्रामीणों के दौड़ लगाने की अनूठी परंपरा है। इस दौड़ को देखने के लिए बाहर से भी लोग यहां पहुंचते हैं। मेले के पहले दिन ढोल-नगाड़ों के साथ देवता मंदिर से बाहर आता है। इसके बाद आगे देवता का निशान और पीछे ग्रामीण खेतों में जाते हैं। पुंडारा नामे तोक में देवता व ग्रामीण एकत्रित होते है। इसके बाद यहां सीढ़ीनुमा खेतों पर ग्रामीण देवता के साथ दौड़ लगाते हैं। दशकों से यह परंपरा चली आ रही है। ग्रामीण देवता के निशान के साथ खेतों के सात चक्कर लगाते हैं। मना जाता है कि अच्छी उपज और क्षेत्र की खुशहाली के लिए यह दौड़ लगाई जाती है। खास बात यह है कि इस समय खेतों में गेहूं की फसल शुरुआती दौर में है खेतों में दौड़ लगाने के बाद खेतों में अच्छी फसल होती है। दौड़ लगाने के बाद देवता क्षेत्रवासियों की समस्या का भी समाधान करता है।

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