कभी लोहे की खदानों के लिए प्रसिद्ध था ये पर्यटन स्थल, आज सरकारी उपेक्षा का झेल रहा दंश

लोहे की खदानों के लिए प्रसिद्ध रहा जौनसार-बावर का पर्यटन स्थल लोहारी-लोखंडी गांव सरकारी उपेक्षा का दंश झेल रहा है। प्रदेश में आई भाजपा और कांग्रेस की सरकारों ने गांव को पर्यटन सर्किट के रूप में विकसित करने का वादा तो किया लेकिन उसे पूरी नहीं किया।

By Raksha PanthariEdited By: Publish:Sun, 15 Nov 2020 07:40 AM (IST) Updated:Sun, 15 Nov 2020 07:40 AM (IST)
कभी लोहे की खदानों के लिए प्रसिद्ध था ये पर्यटन स्थल, आज सरकारी उपेक्षा का झेल रहा दंश
कभी लोहे की खदानों के लिए प्रसिद्ध था ये पर्यटन स्थल, आज सरकारी उपेक्षा का झेल रहा दंश।

चकराता(देहरादून), जेएनएन। कभी लोहे की खदानों के लिए प्रसिद्ध रहा जौनसार-बावर का पर्यटन स्थल लोहारी-लोखंडी गांव सरकारी उपेक्षा का दंश झेल रहा है। राज्य गठन के बाद प्रदेश में आई भाजपा और कांग्रेस की सरकारों ने गांव को पर्यटन सर्किट के रूप में विकसित करने का वादा तो किया, लेकिन वादे को धरातल पर उतारने के लिए सरकारों ने कभी गंभीर प्रयास नहीं किए। लिहाजा आज भी नैसर्गिक सौंदर्य से भरपूर गांव पर्यटन मानचित्र पर अंकित होने की बाट जोह रहा है। स्थानीय बाशिंदों का कहना है कि पर्यटन सर्किट के तौर पर विकसित होने से ग्रामीणों को रोजगार के साधन मुहैया होने के साथ ही विकास की किरण भी गांव तक पहुंचेगी।

चकराता से मात्र बीस किमी की दूरी पर घने बांज, बुरांश व देवदार के जंगलों के बीच 8500 फीट की ऊंचाई पर स्थित लोहारी-लोखंडी गांव कभी पूरे जौनसार-बावर परगने की आर्थिक गतिविधियों का केंद्र रहा था। चकराता क्षेत्र के ग्रामीण मेहर सिंह, वीरेंद्र सिंह, श्याम सिंह आदि बताते हैं कि लोहारी में लोहे की खदानें बड़ी मात्रा में पाई जाती थीं, जिनसे स्थानीय काश्तकारों लोहे से बनने वाले घरेलू उपकरण और औजार बनाए जाते थे। लोहे की खदानों और उनसे निर्मित होने वाले औजारों के चलते ही गांव का नाम लोहारी-लोखंडी पड़ा। 

आज भी गांव और उसके आसपास के क्षेत्रों में लोहे की खदानों के अवशेष मिलते हैं। गांव की ऐतिहासिक महत्ता और पर्यटन की दृष्टि से उत्तम स्थिति को देखते हुए राज्य गठन के बाद प्रदेश में आई कांग्रेस और भाजपा की सरकारों ने इसे पर्यटन सर्किट के रूप में विकसित करने का वादा किया था। सरकारों के वादे के पीछे पर्यटन नगरी चकराता से मात्र बीस किमी की दूरी के साथ ही इससे सटे बुधेर, कोटी-कनासर, मोइला टॉप, देववन, खडंबा, मुंडाली जैसे पर्यटन स्थलों का होना था। 

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लोहारी-लोखंडी को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने से आधा दर्जन अन्य रमणीक स्थल भी पर्यटन मानचित्र पर उभरते, जिससे पूरा क्षेत्र पर्यटन सर्किट के रूप में विकसित होकर स्थानीय बाशिंदों को रोजगार मुहैया कराने का माध्यम बनता, लेकिन सरकारों ने वादे को धरातल पर उतारने के लिए कभी भी गंभीर प्रयास नहीं किए। आलम यह है कि लोहारी-लोखंडी को जाने वाला मार्ग पिछले एक दशक से जर्जर हाल में है। वहीं, बुधेर जाने के लिए सिर्फ कच्चा मार्ग है। मोइला टॉप के लिए मार्ग नहीं होने के चलते यहां पहुंचने के लिए छह किमी की खड़ी चढाई चढनी पड़ती है। पर्यटन के रूप गांव के विकसित होने से ग्रामीण युवाओं को रोजगार के साधन मुहैया होने के साथ ही गांव तक विकास की किरण भी पहुंचती, लेकिन किसी भी सरकार ने गंभीरता से प्रयास नहीं किए।

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