मानव की तरह छोटे परिवार की तरफ ढल रहे हैं हाथी, पढ़िए पूरी खबर

मानव की तरह हाथियों की जीवनशैैैैली में भी बदलाव आ रहा है। जिन क्षेत्रों में कभी एक-एक झुंड में 80-90 हाथी देखे जाते थे उनकी संख्या सिमटकर 32 से 40 के बीच आ गई है।

By BhanuEdited By: Publish:Sat, 04 May 2019 10:09 AM (IST) Updated:Sat, 04 May 2019 08:18 PM (IST)
मानव की तरह छोटे परिवार की तरफ ढल रहे हैं हाथी, पढ़िए पूरी खबर
मानव की तरह छोटे परिवार की तरफ ढल रहे हैं हाथी, पढ़िए पूरी खबर

देहरादून, केदार दत्त। समाज में जो बदलाव आ रहे हैं, क्या उसकी छाया वन्यजीवों पर भी पड़ रही है। ऐसा हो रहा है अथवा नहीं, यह तो शोध का विषय है, मगर जंगल का सामाजिक प्राणी कहे जाने वाले हाथियों के झुंड को लेकर जो नया ट्रेंड देखने में आ रहा, वह हैरत में डालने वाला है। जिन क्षेत्रों में कभी एक-एक झुंड में 80-90 हाथी देखे जाते थे, उनकी संख्या सिमटकर 32 से 40 के बीच आ गई है। 

राजाजी टाइगर रिजर्व के गंगा के मैदानों में तो ये बेहद छोटे-छोटे समूहों में नजर आते हैं। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि हाथियों के परंपरागत गलियारे बाधित होने से वे लंबी प्रवास यात्राएं नहीं कर पा रहे हैं। यही वजह भी है कि झुंडों में इनकी संख्या कम हुई और गंगा के मैदानों में तो चार से आठ के समूहों में बंट जाते हैं। अलबत्ता, वे एक-दूसरे के संपर्क में रहते हैं।

उत्तराखंड में राजाजी और कार्बेट टाइगर रिजर्व के साथ ही 11 वन प्रभागों में यमुना से लेकर शारदा तक 6643.5 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में हाथियों की मौजूदगी है और इनकी संख्या निरंतर बढ़ रही है। राज्य में वर्ष 2003 में 1582 हाथी थे, जिनकी संख्या 2017 में बढ़कर 1839 पहुंच गई। ऐसे में हाथियों के बड़े-बड़े झुंड दिखने चाहिए थे, मगर अब झुंडों में इनकी संख्या काफी कम हो चली है।

राजाजी टाइगर रिजर्व को ही लें तो वहां 80-90 हाथियों की संख्या वाले झुंड दिखते थे, जो बीते दौर की बात हो चली है। अब तो मानसून सीजन शुरू होने और खत्म होने के बाद होने वाले माइग्रेशन के दौरान भी हाथियों की इतनी संख्या के झुंड नजर नहीं आते। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या वास्तव में हाथियों ने बदली परिस्थितियों में अपने झुंडों का आकार छोटा किया है या फिर इसकी अन्य कोई वजह है।

वन्यजीव वैज्ञानिक डॉ.रितेश जोशी बताते हैं कि अमूमन देखा गया है कि मानसून शुरू होने से पहले और खत्म होने के बाद हाथियों के झुंड एक से दूसरी जगह आते-जाते हैं। इस दौरान वे लंबी प्रवास यात्राएं करते हैं। एक दौर में तो यहां के हाथी बिहार तक आते-जाते थे। 

कहने का आशय यह कि हाथियों की प्रवास यात्रा के लिए लंबे वन क्षेत्र होते थे, जो अब सिमटे हैं। खासकर गलियारे बाधित होने से इनकी आवाजाही बुरी तरह प्रभावित हुई है और इसी कारण झुंड में हाथियों की संख्या भी घटी है। वे लंबी प्रवास यात्रा की बजाए छोटी-छोटी यात्रा कर रहे हैं। डॉ.जोशी के मुताबिक यदि परंपरागत गलियारे निर्बाध हो जाएं तो हाथियों के झुंड भी बढ़ेंगे और हर झुंड में इनकी संख्या भी बढ़ेगी।

राजाजी टाइगर रिजर्व के निदेशक पीके पात्रो भी मानते हैं कि अब हाथियों के झुंड में संख्या कम हुई है। वह बताते हैं कि रिजर्व के चीला क्षेत्र में 32 से 40 हाथियों के झुंड दिखते हैं, जिनकी संख्या कभी ज्यादा हुआ करती थी। वह भी इसकी वजह हाथियों की लंबी प्रवास यात्राएं न हो पाने को मानते हैं। 

इसके अलावा जंगलों में मानवीय हस्तक्षेप और चारों तरफ आबादी व लाइट के कारण भी हाथियों को दिक्कत उठानी पड़ रही है। हालांकि, वह कहते हैं कि गलियारे खुलवाने के लिए महकमा गंभीरता से कदम उठा रहा है।

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