स्वाइन फ्लू से एक साल के बच्चे की मौत

स्वाइन फ्लू से बुधवार को एक साल के बच्चे की मौत हो गई।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 24 Jan 2019 03:00 AM (IST) Updated:Thu, 24 Jan 2019 03:00 AM (IST)
स्वाइन फ्लू से एक साल के बच्चे की मौत
स्वाइन फ्लू से एक साल के बच्चे की मौत

जागरण संवाददाता, देहरादून: स्वाइन फ्लू से होने वाली मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। बुधवार को दून के श्री महंत इंदिरेश अस्पताल में भर्ती स्वाइन फ्लू पीड़ित एक वर्षीय बच्चे की मौत हो गई। अब तक इस बीमारी से 11 मरीजों की मौत हो चुकी है। जिनमें सात मरीज देहरादून और एक-एक मरीज हरिद्वार, उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग व टिहरी से थे। जबकि एक मरीज उप्र का रहने वाला था।

जानकारी के अनुसार, डूंडा, उत्तरकाशी निवासी एक वर्षीय बच्चे को 21 जनवरी को देहरादून के श्री महंत इंदिरेश अस्पताल में भर्ती कराया गया था। बच्चे को तेज बुखार, सिरदर्द व सांस लेने में में दिक्कत थी। बुधवार सुबह उपचार के दौरान बच्चे की मौत हो गई। उसे स्वाइन फ्लू होने की पुष्टि हुई है। मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. एसके गुप्ता के अनुसार जनपद देहरादून में स्वाइन फ्लू के तीन नए मरीज सामने आए हैं। इनमें एक मरीज मैक्स, एक सिनर्जी व एक दून अस्पताल में भर्ती है। उन्होंने बताया कि अब तक कुल 27 मरीजों में स्वाइन फ्लू की पुष्टि हो चुकी है। इनमें 15 मामले देहरादून, तीन हरिद्वार, दो उत्तरकाशी व एक टिहरी गढ़वाल से है। जबकि पांच मरीज सहारनपुर से इलाज के लिए यहां आए थे। डॉ. गुप्ता ने बताया कि स्वाइन फ्लू पीड़ित 11 मरीजों का शहर के विभिन्न अस्पतालों में उपचार चल रहा है। बरतें सावधानी

- खासते या छींकते समय अपने मुंह एवं नाक को रुमाल से ढक लें।

- नाक, कान या मुंह को छूने से पहले एवं बाद में अपने हाथों को साबुन से अच्छी तरह धोएं।

- खाना खाने से पहले व बाहर से आने पर हाथ साबुन से अच्छी तरह धोएं।

- अधिक मात्रा में पानी पीएं और पौष्टिक आहार का सेवन करें।

- बुखार, सर्दी, जुखाम, खासी, गले में खराश आदि लक्षण होने पर चिकित्सक से परामर्श लें।

- बीमारी के संदिग्ध व्यक्ति से शिष्टाचार में हाथ न मिलाएं व गले न लगें।

- बिना चिकित्सकीय परामर्श के दवाई ना लें और बीमारी के दौरान यात्रा करने से बचें।

- यदि आपका बच्चा जुखाम/खासी से पीड़ित है तो स्कूल भेजने से परहेज करें व चिकित्सक को दिखाएं। स्वाइन फ्लू से जंग हारा एक 'मसीहा'

जागरण संवाददाता, देहरादून: स्वाइन फ्लू के कारण जिंदगी की जंग हारने वाले फ्रांसीसी नागरिक पियर रेनियर कई लोगों को जीना सिखा गए। वह लंबे वक्त तक कुष्ठ रोगियों की सेवा करते रहे। कहने के लिए वह जरूर फ्रांसीसी थे, पर आत्मा उत्तराखंड में ही बसती थी। उन्होंने कई कुष्ठ रोगियों को स्वावलंबी बनाया।

रेनियर 21 साल की उम्र में पहली बार भारत आए थे और उन्होंने यहीं बसने का मन बना लिया। कुष्ठ रोगियों की स्थिति देख वह व्यथित हो उठे। इन लोगों की मदद के लिए उन्होंने देहरादून और ऋषिकेश में चार हैंडलूम सेंटर्स खोले और उन्हें काम दिया। इन सेंटर्स में करीब 100 लोग काम करते हैं। ये लोग हथकरघा उत्पाद तैयार करते हैं। जिन लोगों को अपनों ने छोड़ दिया, पियर ने उन्हें अपना बना लिया। लोग उन्हें मसीहा कहा करते थे। वह जाति, धर्म या नस्ल की सीमाओं को नहीं मानते थे। उनकी इच्छा के मुताबिक उनकी अस्थियों का एक हिस्सा गंगा में बहाया गया और बाकी कब्रिस्तान में रखा गया।

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