हेस्को की मुहिम, गांव संवरेंगे तो देश संवरेगा; जानिए

गांव संवरेंगे तो देश संवरेगा हेस्को की ये मुहिम लगातार जारी है। इसके हहत हेस्को उत्तराखंड समेत हिमालयी राज्यों के गांवों की तरक्की के लिए मुहिम में जुटा हुआ है।

By Raksha PanthariEdited By: Publish:Fri, 26 Oct 2018 02:11 PM (IST) Updated:Fri, 26 Oct 2018 02:11 PM (IST)
हेस्को की मुहिम, गांव संवरेंगे तो देश संवरेगा; जानिए
हेस्को की मुहिम, गांव संवरेंगे तो देश संवरेगा; जानिए

देहरादून, [केदार दत्त]: भारत की आत्मा गांवों में बसती है और जब तक गांवों का उत्थान नहीं होगा, तब तक सही मायने में विकास की कल्पना बेमानी है। इसी सूत्रवाक्य के तहत पद्मश्री डॉ. अनिल प्रकाश जोशी की अगुआई में हिमालयन एनवायरोमेंटल स्टडीज एंड कंजरवेशन ऑनाइजेशन (हेस्को) उत्तराखंड समेत हिमालयी राज्यों के गांवों की तरक्की के लिए मुहिम में जुटा हुआ है। हिमालयी राज्यों के करीब 10 हजार गांवों में हेस्को की ओर से किए गए विकास कायों की बदौलत पांच लाख से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से लाभ मिल रहा है। 

यही नहीं, सेना के साथ मिलकर सीमावर्ती इलाकों में 'शांति के लिए तकनीकी पहल' (टीआइपी) मुहिम के तहत इन क्षेत्रों के उत्थान को मुहिम छेड़ी गई है। घराटों और जलस्रोतों को पुनर्जीवित करने की दिशा में हेस्को ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई है। 

हेस्को की मुहिम, गांव संवरेंगे तो देश संवरेगा  

पद्मश्री डॉ. अनिल प्रकाश जोशी की अगुआई में हिमालयन एनवायरोमेंटल स्टडीज एंड कंजरवेशन ऑर्गेनाइजेशन (हेस्को) उत्तराखंड समेत हिमालयी राज्यों के गांवों की तरक्की के लिए मुहिम में जुटा हुआ है। करीब 10 हजार गांवों में पांच लाख से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष और परोक्ष लाभ मिला है। हेस्को को आज भारतीय लोक प्रशासन संस्थान द्वारा पुरस्कार प्रदान किया जाएगा। 

ऐसे अस्तित्व में आया हेस्को 

पौड़ी जिले के कोटद्वार निवासी डॉ. अनिल प्रकाश जोशी को पहाड़ के गांवों की दुर्दशा हर वक्त बेचैन किए रहती थी। वर्ष 1976 में डॉ. जोशी को राजकीय महाविद्यालय में प्रवक्ता के पद पर नियुक्ति मिली, लेकिन मन में हिमालय और पहाड़ की चिंता कौंधती रही। वर्ष 1979 में उन्होंने एक संगठन बनाकर इस दिशा में कार्य करने की ठानी। लंबे मंथन के बाद वर्ष 1983 में हेस्को का उदय हुआ। तब डॉ.जोशी राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय कोटद्वार में प्राध्यापक थे। गांवों में स्थानीय संसाधनों पर आधारित रोजगार और विज्ञान व नई तकनीकी विकसित करने की मुहिम में जब सरकारी नौकरी बाधा बनी तो वर्ष 1992 में उन्होंने नौकरी छोड़ दी और पूरी तरह से जुट गए गांवों और समाज की सेवा में। 

सफर चार दशक का

हेस्को के जरिये न सिर्फ उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल के साथ ही पूर्वोत्तर राज्यों में गांवों के उत्थान के लिए मुहिम तेज की गई और 35 साल के इस सफर में एक के बाद एक अनेक उपलब्धियां हेस्को के खाते में जुड़ती चली गईं। डॉ. जोशी का मानना है कि स्थानीय संसाधनों को उपयोग में लाकर ही गांव की आर्थिकी को बढ़ाया जा सकता है। 

'लोकल नीड मीट लोकली' का नारा  

इसी कड़ी में 'लोकल नीड मीट लोकली' नारे के तहत हेस्को ने मुहिम को आगे बढ़ाया और करीब 10 हजार गांवों में पांच लाख लोग विकास कार्यों का लाभ उठा रहे हैं। इसमें लोक विज्ञान व विज्ञान का समावेश किया गया, जिसके तहत परंपरागत घराटों (एक तरह की पनचक्की) को जीवित किया गया। घराटों को नई तकनीकी से जोड़ा गया, जिससे संबंधित गांवों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति में सुधार आया है। गांवों में पारंपरिक खेती को बढ़ावा दिया गया तो स्वरोजगार के लिहाज से स्थानीय उत्पादों को भी प्रोत्साहित किया गया। 

शांति के लिए तकनीकी पहल

डॉ. जोशी बताते हैं कि टेक्नोलॉजी इनिशिएटिव फॉर पीस (शांति के लिए तकनीकी पहल) हेस्को की अहम मुहिम है। इसके तहत 11 राज्यों में बॉर्डर एरिया में सेना के साथ मिलकर स्थानीय समुदाय के उत्थान को कार्य किया गया। इस कड़ी में युवाओं को प्रशिक्षण दिया गया। इससे न सिर्फ ग्रामीणों को लाभ पहुंचा, बल्कि नीति निधारकों और अधिकारियों का ध्यान भी गांवों की तरफ केंद्रित हुआ। यही नहीं, इस मुहिम के दौरान जलस्रोतों को पुनर्जीवित करने का कार्य भी प्रांरभ किया गया और अब तब 17 जलस्रोत जीवित हो चुके हैं। 

जीईपी को सरकार ने भी स्वीकारा 

सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की तर्ज पर सकल पर्यावरणीय उत्पाद (जीईपी) के लिए भी डॉ. जोशी ने मुहिम छेड़ी। उनका कहना है कि जीडीपी के साथ जीईपी का भी देश के विकास में समानांतर उल्लेख होना जरूरी है। डॉ. जोशी की पहल पर इस दिशा में कार्य शुरू हुआ और फिर हिमालय दिवस मनाने की पहल की गई। हेस्को ने स्कूलों के जरिये भी गांवों को गोद लेने की शुरुआत की, जिसमें देश के नामी स्कूल शामिल हैं।

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