स्वतंत्रता के सारथी: क्षय रोग पीड़ि‍त बेटियों की आस बनी हेमलता बहन

ऋषिकेश निवासी हेमलता बहन ने न सिर्फ समाज में बदलाव का बीड़ा उठाया बल्कि ऐसे उदाहरण पेश किए जो इबारत बन गए। वह क्षय रोग पीड़ि‍त बेटियों को नया जीवन दे रही हैं।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Wed, 14 Aug 2019 09:16 AM (IST) Updated:Wed, 14 Aug 2019 09:16 AM (IST)
स्वतंत्रता के सारथी: क्षय रोग पीड़ि‍त बेटियों की आस बनी हेमलता बहन
स्वतंत्रता के सारथी: क्षय रोग पीड़ि‍त बेटियों की आस बनी हेमलता बहन

ऋषिकेश, दुर्गा नौटियाल। संघर्ष और चुनौतियां कई बार इन्सान को इतना मजबूत बना देती हैं कि उसके जीवन का मकसद ही बदल जाता है। ऋषिकेश निवासी हेमलता बहन भी संघर्षों से उपजी एक ऐसी ही मिसाल है, जिसने जीवन के कटु अनुभवों को सबक मानकर दूसरों के लिए जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने न सिर्फ समाज में बदलाव का बीड़ा उठाया, बल्कि ऐसे अनूठे उदाहरण पेश किए जो इबारत बन गए। हेमलता बहन का एक अभियान 'नंदा तू राजी-खुशी रैयां ' (नंदा तू राजी-खुशी रहना) क्षय रोग पीड़ि‍त बेटियों के लिए वरदान बन गया। इस अभियान ने न सिर्फ गंभीर रूप से क्षय रोग पीड़ि‍त बेटियों को नया जीवन देने का काम किया, बल्कि समाज में उन्हें सबल बनाकर खड़ा भी किया। 

क्षय रोग, जिसे टीबी, यक्ष्मा, तपेदिक आदि नामों से भी जाना जाता है, एक ऐसी जानलेवा बीमारी है, जो किसी भी व्यक्ति को किसी भी उम्र में अपनी चपेट में ले सकती है। लेकिन, हिचकिचाहट के चलते अक्सर लोग इस बीमारी को नजरंदाज कर बैठते हैं, जिससे यह घातक रूप ले लेती है। सर्वहारा वर्ग के लोग अमूमन अपनी व्यस्ततम दिनचर्या के कारण इस बीमारी से ग्रसित हो जाते हैं। लंबे समय से सामाजिक कार्यों से जुड़ी रही हेमलता बहन करीब पांच वर्ष पूर्व देहरादून में एक ऐसे ही युवक से मिली, जो बिहार से दिहाड़ी मजदूरी के लिए यहां आया था और टीबी की चपेट में आ गया। हेमलता बहन ने उस युवक का इलाज कराया और थोड़ा स्वस्थ होने के बाद उसे आजीविका के लिए सब्जी की ठेली दिला दी। फिर तो इस बीमारी से जूझ रहे लोगों की सेवा को ही उन्होंने अपना ध्येय बना लिया। वह देहरादून की मलिन बस्तियों में घूम-घूमकर इस तरह के रोगियों को तलाशतीं और उन्हें टीबी अस्पताल पहुंचाकर उनकी जांच व दवा आदि की व्यवस्था सुनिश्चित करतीं। 

इसी दौरान हेमलता बहन ने देखा कि टीबी के रोगी दवा तो ले लेते हैं, मगर उन्हें सही पोषण नहीं मिल पाता। नतीजा दवा के दुष्प्रभाव भी कई बार घातक रूप ले लेते। उन्होंने तय किया कि ऐसे मरीजों को वह दवा के साथ पोषाहार भी उपलब्ध कराएंगी। अपने संसाधनों व अन्य लोगों की मदद से उन्होंने इस काम को आगे बढ़ाया। इसी दौरान पता चला कि टीबी से पीड़ि‍त महिलाओं व बेटियों की स्थिति और भी दयनीय है। उन्हें सामाजिक रूप से भी तरह-तरह की प्रताड़नाएं झेलनी पड़ रही हैं। सो, हेमलता बहन ने अपना ध्येय अब इन बेटियों को ही रोगमुक्त कर उन्हें संबल देने का बना दिया। वर्ष 2017 में उन्होंने 'आस' संस्था का गठन कर ऋषिकेश से इस मुहिम को शुरू किया और इसे नाम दिया 'नंदा तू राजी-खुशी रैयां'। उनके इस अभियान को तब और बल मिला, जब टीएचडीसी इंडिया लिमिटेड की सीएसआर संस्था 'सेवा-टीएचडीसी' ने उन्हें अभियान को आगे बढ़ाने के लिए आर्थिक मदद देनी शुरू की। पिछले तीन वर्ष में 'नंदा तू राजी-खुशी रैयां' अभियान के जरिये सौ से अधिक बेटियां टीबी की बीमारी को परास्त कर चुकी हैं। इनमें से कई बेटियां समाज में प्रतिष्ठित जीवन जी रही हैं, कई दोबारा पढ़ाई शुरू कर चुकी हैं और कई इस अभियान को आगे बढ़ाने में सहायक बन रही हैं। 

रोजाना उपलब्ध होता है पोषाहार 

टीबी रोगियों को उनके रोग के अनुसार तीन श्रेणियों में विभाजित कर उनका उपचार किया जाता है। वैसे सरकार की ओर से डॉट्स के तहत टीबी का निश्शुल्क इलाज उपलब्ध कराया जाता है। साथ ही प्रत्येक मरीज को 500 रुपये मासिक पोषाहार के लिए भी दिया जाता है। इस बीमारी के इलाज में बेड रेस्ट के अलावा छह से आठ माह तक नियमित दवा लेनी जरूरी है। हेमलता बहन ने अपने इस अभियान के माध्यम से इलाज के दौरान टीबी पीडि़तों को रोजाना पोषाहार देने का नियम बनाया है। ऋषिकेश के राजकीय चिकित्सालय में शाम पांच बजे मरीजों को दैनिक रूप से पोषाहार दिया जाता है। साथ ही बेटियों को उपचार की अवधि में क्राफ्ट निर्माण, प्रशिक्षण, शिक्षा, व्यक्तित्व निर्माण, शैक्षिक भ्रमण आदि भी कराया जाता है।

स्वामी मन्मथन ने बदली जीवन की राह 

समाज सेवा के क्षेत्र में चर्चित नाम बन चुकी हेमलता बहन का जीवन संघर्षों से भरा रहा। रुद्रप्रयाग जिले के राशी गांव में जन्मीं हेमलता को आठवीं कक्षा में पढऩे के लिए छह किमी दूर राउलांग जूनियर हाईस्कूल जाना पड़ता था। तब गांव से स्कूल जाने वाली वह अकेली बेटी थी। विपरीत परिस्थितियों के बीच 16 साल की उम्र में उनका विवाह तीन बच्चों के पिता एवं उनसे दोगुनी उम्र के व्यक्ति से कर दिया गया। हेमलता ने इसे अपनी नियति मानकर स्वयं को मजबूत बनाना शुरू किया। बचपन से ही निडर स्वभाव और प्रखर बोलने वाली हेमलता को तब जीवन का मुकाम मिला, जब उन्हें गांव में गठित महिला मंगल दल का अध्यक्ष चुना गया। महिला मंगल दल का नेतृत्व करते हुए हेमलता को विभिन्न मंचों पर अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिला। उन्होंने तीन बार चलवैजयंती ट्रॉफी जीती। फिर शराब विरोधी आंदोलन और किसान आंदोलनों का हेमलता ने बखूबी नेतृत्व किया। नब्बे के दशक में वह भुवनेश्वरी महिला आश्रम के संस्थापक स्वामी मन्मथन के संपर्क में आईं तो उन्हें समाज सेवा का नया मुकाम मिला। अपनी लगन एवं मेहनत से हेमलता ने आश्रम की गतिविधियों का संचालन किया और फिर पर्वतीय जन कल्याण समिति से जुड़ गईं।

बहुमुखी प्रतिभा की धनी हेमलता बहन 

हेमलता न सिर्फ समाज सेवा, बल्कि अपनी बहुमुखी प्रतिभाग के लिए भी पहचान रखती हैं। वह एक बेहतरीन थिएटर आर्टिस्ट भी हैं। रंगमंच पर 'एक गधे की आत्मकथा', 'मशाल', 'हे छुमा', 'बछुली चौकीदार' जैसे नाटकों में उनके अभिनय को खूब सराहा गया। वर्ष 2002, 2004 व 2006 के उत्तराखंड महोत्सव में उन्हें पारंपरिक वेशभषा के लिए प्रथम पुरस्कार मिला। पारिवारिक विवादों के समाधान के लिए उन्हें महिला हेल्प लाइन डेस्क में काउंसलर के रूप में रखा गया है। वह रक्षा लेखा मंत्रालय की कार्यस्थल उत्पीडऩ निवारण समिति की भी सदस्य हैं।

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