उत्तराखंड में बदले गए पिछली कांग्रेस सरकार के ये दो अहम फैसले, जानिए
उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सरकार ने पिछली कांग्रेस सरकार के दो अहम फैसले बदल डाले। एक फैसले के जरिए पंचायत प्रतिनिधियों के भरोसे को जीतने की कोशिश की गई।
देहरादून, राज्य ब्यूरो। त्रिवेंद्र सरकार ने पिछली कांग्रेस सरकार के दो अहम फैसले बदल डाले। एक फैसले के जरिए पंचायत प्रतिनिधियों के भरोसे को जीतने की कोशिश की गई। वहीं, दूसरे फैसले में उत्तराखंड पूर्व सैनिक कल्याण निगम (उपनल) का दायरा बढ़ाकर बड़ी आउटसोर्सिग एजेंसी बना दिया।
पिछली कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में अस्तित्व में आए उत्तराखंड पंचायतीराज अधिनियम-2016 की धारा 30, 69 और 107 में त्रिस्तरीय पंचायत प्रतिनिधियों को लोक सेवक की श्रेणी में रखा गया है। उक्त अधिनियम में लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा-9(क) जोड़ी गई। इसके मुताबिक सरकार के संविदा के लिए पंचायत में निर्वाचन के लिए अयोग्य करार दिया गया। इससे ये प्रतिनिधि पंचायतों में ठेकेदारी, निर्माण कार्य और व्यवसाय करने से वंचित हो गए। इस व्यवस्था के विरोध में त्रिस्तरीय पंचायत प्रतिनिधियों ने एकजुट होकर सरकार पर दबाव बढ़ाया।
उनकी कोशिश कामयाब रही। त्रिवेंद्र सिंह रावत मंत्रिमंडल ने उत्तराखंड पंचायतीराज अधिनियम में संशोधन कर त्रिस्तरीय पंचायत प्रतिनिधियों को लोक सेवक की श्रेणी से हटाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी। इससे ग्राम प्रधानों, ब्लॉक प्रमुखों और जिला पंचायत सदस्यों के लिए ठेकेदारी में काम करना आसान हो गया है। हालांकि इस संशोधन के साथ शर्त ये जोड़ी गई है कि पंचायत प्रतिनिधि अपने खुद के पंचायत क्षेत्र में ठेकेदारी या अन्य निर्माण कार्य नहीं करा सकेंगे। पंचायत प्रतिनिधियों के संगठनों की ओर से यह सुझाव दिया गया था।
उधर, भाजपा सरकार ने उपनल को लेकर पिछली सरकार के पांच जुलाई, 2016 के आदेश में संशोधन को मंजूरी दी है। उक्त आदेश के मुताबिक उपनल केवल भूतपूर्व सैनिकों के साथ उनके विधिक आश्रितों को ही 10 वर्ष की अवधि तक विभिन्न शासकीय विभागों व निगमों में नियोजित कर सकता है। मंत्रिमंडल ने उक्त फैसले को संशोधित कर उपनल को प्रदेश के अन्य व्यक्तियों के लिए भी आउटसोर्सिग एजेंसी बना दिया।