नवरात्र व्रत के दौरान बहा करती संयम, ध्यान और पूजा की त्रिवेणी
नवरात्र में रखे गए व्रत वर्ष के अन्य अवसरों पर किए जाने वाले व्रतों से अधिक महत्वपूर्ण माने गए हैं। कारण नवरात्र व्रत के दौरान संयम ध्यान और पूजा की त्रिवेणी बहा करती है।
देहरादून, जेएनएन। ऋतु परिवर्तन हमारे शरीर में छिपे हुए विकारों एवं ग्रंथि विषों को उभार देता है। ऐसे समय में व्रत रखकर इन विकारों को बाहर निकाल देना न केवल अधिक सुविधाजनक होता है, बल्कि जरूरी एवं लाभकारी भी। हमारे ऋषि-मुनियों ने इसीलिए ऋतुओं के संधिकाल में व्रत रखने का विधान किया। इसमें भी नवरात्र के दौरान रखे गए व्रत वर्ष के अन्य अवसरों पर किए जाने वाले व्रतों से अधिक महत्वपूर्ण माने गए हैं। कारण, नवरात्र व्रत के दौरान संयम, ध्यान और पूजा की त्रिवेणी बहा करती है। सो, यह व्रत शारीरिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक, सभी स्तरों पर अपना प्रभाव छोड़ते हैं।
देखा जाए तो व्रत का वास्तविक एवं आध्यात्मिक अभिप्राय ईश्वर की निकटता प्राप्त कर जीवन में रोग एवं थकावट का अंत कर अंग-प्रत्यंग में नया उत्साह भरना और मन की शिथिलता एवं कमजोरी को दूर करना है। श्री रामचरितमानस में राम को शक्ति, आनंद एवं ज्ञान का प्रतीक और रावण को मोह यानी अंधकार का प्रतीक माना गया है। नवरात्र व्रतों की सफल समाप्ति के बाद व्रती के जीवन में मोह आदि दुर्गुणों का विनाश होकर उसे शक्ति, आनंद एवं ज्ञान की प्राप्ति हो, ऐसी अपेक्षा की जाती है।
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विजयदशमी पर्व के मुहूर्त
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