आपदा प्रबंधन के दावों पर उठ रहे सवाल

By Edited By: Publish:Sun, 17 Aug 2014 01:00 AM (IST) Updated:Sun, 17 Aug 2014 01:00 AM (IST)
आपदा प्रबंधन के दावों पर उठ रहे सवाल

राज्य ब्यूरो, देहरादून: पिछले 72 घंटों में हुई भारी बरसात के कारण हुए हादसों से एक बार फिर प्रदेश में आपदा प्रबंधन के दावों पर सवालिया निशान लग रहे हैं। आपदा से निपटने के बंदोबस्त अभी तक ग्राम पंचायत स्तर तक पहुंच ही नहीं पाए हैं। पर्वतीय जिलों को इससे नुकसान उठाना पड़ रहा है। जिला मुख्यालयों तक ही आपदा प्रबंधन सीमित होने से प्रभावित क्षेत्रों तक बचाव कार्य और राहत पहुंचने में देरी हो रही है।

प्रदेश में गत वर्ष आई आपदा के बाद भी आपदा प्रबंधन का दायरा व्यापक बनाने की सुध नहीं ली गई। प्रदेशवासी आपदा से खुद ही जूझने को मजबूर है। यह हालात तब हैं जब सरकार आपदा से निपटने के लिए तमाम दावे कर रही है। इसके लिए केंद्र से करोड़ों रुपये की मदद ली जा रहा है। उपलब्धि के नाम पर एसडीआरएफ का गठन हुआ है। गत वर्ष आपदा के बाद हुई बैठकों में आपदा से निपटने के लिए नीतियां तो बनीं लेकिन इन्हें धरातल में उतरने में खासा समय लग रहा है। पौड़ी में बादल फटने की घटना को ही देखें तो वहां घटना के कई घंटों बाद प्रशासनिक अमले के पहुंचने पर राहत और बचाव कार्य शुरू हो पाए। मुख्य मार्ग और संपर्क मार्ग अवरुद्ध होने के कारण कई प्रभावित स्थानों का संपर्क टूटा हुआ है। वहां प्रभावितों को बचाने और राहत मुहैया कराने का काम हेलीकॉप्टर के जरिए ही हो सकता है। इसके लिए प्रशासन पूरी तरह मौसम पर निर्भर है। बचाव दलों को मौके पर तुरंत भेजना सरकार के सामने चुनौती बना है। इस घटना ने सरकार की ओर से आपदा प्रबंधन के लिए ग्राम पंचायत स्तर तक पुख्ता इंतजाम किए जाने के दावों को आईना दिखा दिया। राजधानी में भी हालात बेहतर नहीं है। घटना के कुछ घंटों बाद मौके पर पहुंचा प्रशासनिक अमला उपकरणों के अभाव में केवल तमाशबीन ही बना रहा। साफ है कि आपदा प्रबंधन के लिए अभी भी ठोस कदम उठाए जाने शेष हैं।

मुख्य सचिव सुभाष कुमार का कहना है कि पर्वतीय जिलों की भौगोलिक स्थिति के कारण घटनास्थल तक पहुंचने में कुछ समय लग सकता है, लेकिन आपदा राहत कार्यो में कहीं भी कोई कोताही नहीं की जा रही है।

नदियों के किनारे अवैध निर्माण

देहरादून: गत वर्ष आपदा के बाद कैबिनेट ने नदी तट के तीस मीटर के दायरे में निर्माण कार्यो को प्रतिबंधित किया था। बावजूद इसके इस निर्णय पर आज तक अमल नहीं हो पाया है। नदियों के किनारे राजनीतिक सरपरस्ती में धड़ल्ले से अवैध कालोनियां बस रही हैं और निर्माण कार्य चल रहे हैं। संबंधित महकमें इस ओर नजरें मूंदे हुए हैं। नदियों के किनारे हो रहे यह निर्माण सीधे दुर्घटनाओं को आमंत्रण दे रहे हैं।

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