Dehradun Nagar Nigam ने अतिक्रमण हटाओ अभियान के दौरान तोड़े थे मकान, अब कोर्ट ने दिए दोबारा बनाकर देने के आदेश

Dehradun Nagar Nigam नगर निगम ने अक्टूबर 2020 में कोरोनाकाल के दौरान निरंजनपुर में अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई की थी। अब द्वितीय अपर सिविल जज इंदु शर्मा की कोर्ट ने यह फैसला सुनाया है। वर्ष 1995 में पिछड़े एवं अनुसूचित जाति के आवासहीन व्यक्तियों को निरंजनपुर में भूखंड दिए गए थे। 2003 में नगर निगम की ओर से इस जमीन को अपना बताते हुए नोटिस जारी किए गए।

By Soban singh Edited By: Nirmala Bohra Publish:Sun, 05 May 2024 08:48 AM (IST) Updated:Sun, 05 May 2024 08:48 AM (IST)
Dehradun Nagar Nigam ने अतिक्रमण हटाओ अभियान के दौरान तोड़े थे मकान, अब कोर्ट ने दिए दोबारा बनाकर देने के आदेश
Dehradun Nagar Nigam: नगर निगम को तोड़े गए मकानों को दोबारा बनाकर देने के आदेश

HighLights

  • अक्टूबर 2020 में अतिक्रमण हटाओ अभियान के तहत नगर निगम ने निरंजनपुर में तोड़े थे तीन मकान
  • कोर्ट ने कार्रवाई को माना नियम विरुद्ध, कहा-जिस समय कार्रवाई हुई तब संपत्तियां थी विवादग्रस्त

जागरण संवाददाता, देहरादून: Dehradun Nagar Nigam: अतिक्रमण हटाओ अभियान के तहत तीन मकानों को तोड़ना नगर निगम को भारी पड़ गया है। कोर्ट ने तीनों मकानों को दोबारा बनाकर देने का आदेश जारी किया है। यही नहीं, निगम को अक्टूबर 2020 से अब तक मकान के स्वामियों को एक हजार रुपये प्रतिदिन के हिसाब से हर्जाना भी अदा करना होगा।

नगर निगम की कार्रवाई के विरुद्ध द्वितीय अपर सिविल जज इंदु शर्मा की कोर्ट ने यह फैसला सुनाया है। कोर्ट ने माना कि जिस समय यह कार्रवाई हुई थी तब संपत्तियां विवादित थीं। ऐसे में यह कार्रवाई नियम विरुद्ध हैं। कोर्ट ने मकान बनाकर देने के लिए एक महीने का समय दिया है।

पीड़ितों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया

नगर निगम ने अक्टूबर 2020 में कोरोनाकाल के दौरान निरंजनपुर में अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई की थी। इस दौरान सरिता पत्नी हरिनाथ, गुड्डी पत्नी सुरेंद्र सिंह और शांति देवी पत्नी बाबूलाल के मकानों को तोड़ कर उन्हें यहां से बेदखल कर दिया गया था। नगर निगम की इस कार्रवाई के बाद पीड़ितों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

बताया कि वर्ष 1995 में पिछड़े एवं अनुसूचित जाति के आवासहीन व्यक्तियों को निरंजनपुर में भूखंड दिए गए थे। इनमें से इन तीनों पीड़ितों को भी भूखंड दिए गए। इसके बाद इन भूखंडों पर उन्होंने अपनी आय से मकानों का निर्माण कराया था। उस समय से ही सभी लोग यहां पर काबिज हो गए और सरकारी दस्तावेज में भी उनके नाम दाखिल हो गए।

नगर निगम ने जारी किए नोटिस

इसके बाद वर्ष 2003 में नगर निगम की ओर से इस जमीन को अपना बताते हुए नोटिस जारी किए गए। कहा गया कि यदि उन्होंने जमीन खाली नहीं की तो पुलिस और प्रशासन की मदद से इन्हें तोड़ दिया जाएगा। उन्होंने पुलिस के पास गुहार लगाई तो पुलिस ने इसमें कोई मदद नहीं की और उन्हें कोर्ट की शरण लेने को कहा। तब उन्होंने कोर्ट में अपनी बात रखते हुए नगर निगम के इस आदेश पर स्थगन आदेश प्राप्त कर लिया।

इसी बीच नगर निगम ने कार्रवाई करते हुए तीन पीड़ितों के मकान ढहा दिए। कोर्ट में पीड़ितों ने अपने मकानों के निर्माण और हर्जाने की मांग की थी। पीड़ितों के अधिवक्ता जितेंद्र कुमार ने बताया कि 12 अप्रैल को द्वितीय अपर सिविल जज इंदु शर्मा ने नगर निगम के खिलाफ फैसला सुनाया है।

न्यायालय ने पाया कि इन संपत्तियों के संबंध में न्यायालय में वाद चल रहा था। बावजूद इसके नगर निगम ने यह कार्रवाई की, जो कि नियम विरुद्ध है। ऐसे में पीड़ित हर्जाना पाने की योग्य हैं।

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