सालभर हुआ पूरा, लेकिन नए वार्डों में नहीं हुआ 'सवेरा', पढ़िए इस खबर में

विकास की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए सरकार ने 72 गांवों को नगर निगम क्षेत्र में मिलाकर शहर का भूगोल तो बदल दिया लेकिन इन क्षेत्रों में नया सवेरा नहीं हुआ।

By Raksha PanthariEdited By: Publish:Sun, 01 Dec 2019 02:56 PM (IST) Updated:Sun, 01 Dec 2019 08:27 PM (IST)
सालभर हुआ पूरा, लेकिन नए वार्डों में नहीं हुआ 'सवेरा', पढ़िए इस खबर में
सालभर हुआ पूरा, लेकिन नए वार्डों में नहीं हुआ 'सवेरा', पढ़िए इस खबर में

देहरादून, अंकुर अग्रवाल। शहर से सटे ग्रामीण क्षेत्र को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए सरकार ने 72 गांवों को नगर निगम क्षेत्र में मिलाकर शहर का भूगोल तो बदल दिया, लेकिन इन क्षेत्रों में नया 'सवेरा' नहीं हुआ। नगर निगम का नया बोर्ड चुने हुए आज पूरा एक साल बीत चुका है, लेकिन नए वार्डों की सूरत अब भी ग्रामीण ही है। नगर निगम का दायरा बढ़कर 60 वार्डों से 100 वार्ड हो चुका है। 

पूर्व में यहां का क्षेत्रफल 64 वर्ग किमी था जबकि मौजूदा क्षेत्रफल 194 वर्ग किमी है। 2011 की जनगणना के तहत नगर निगम क्षेत्र की आबादी 5.74 लाख थी, जो बढ़कर 8.03 लाख हो चुकी है। वर्तमान स्थिति पर गौर करें तो निगम क्षेत्र की जनसंख्या दस लाख पार चुकी है। फिर भी जो मकसद शहर में गांवों को शामिल करने का था, वह कोसों दूर नजर आ रहा। नया बोर्ड गठित होने के बाद ऐसा कोई प्रयास अब तक नहीं हुआ, जिसका फायदा नए शामिल क्षेत्रों को मिला हो। न तो सफाई व्यवस्था के पुख्ता प्रबंध हुए, न स्ट्रीट लाइटों पर ध्यान दिया गया। नालियों-गलियों के निर्माण की बात तो दूर की है। डोर-टू-डोर कूड़ा उठान की सोची भी नहीं गई। 

यह था मकसद 

परिसीमन के बाद करीब सवा दो लाख ग्रामीणों को शहरी नागरिक का दर्जा मिल गया। गांवों को शहर में मिलाने का निगम का प्रस्ताव पांच साल तक सरकार में धूल फांकता रहा। हालांकि, उसमें शहर से सटे 51 गांव शामिल किए जाने थे, लेकिन बाद में यह संख्या बढ़ाकर 72 कर दी गई और मौजूदा सरकार ने प्रस्ताव मंजूर कर लिया। अब तक इन 72 गांवों को न तो शहरी क्षेत्र के करीब होने का फायदा मिल पाता था न ही ग्रामीण क्षेत्रों को मिलने वाली योजनाओं का। निगम इन्हें अपना हिस्सा नहीं मानता था और ग्राम पंचायतें इन्हें शहरी क्षेत्र का हिस्सा मानकर विकास कार्य से कदम पीछे खींच लेती थी। ये गांव अभी भी सफाई और स्ट्रीट लाइट से वंचित हैं। यहां सफाई का कार्य ग्रामीण निजी खर्च पर करा रहे। ऐसे में सरकार का मकसद इन गांवों में शहरी योजनाओं का लाभ पहुंचाना था। 

पीएमओ में लगाते हैं गुहार 

सुविधाओं से वंचित शहरी क्षेत्र से सटे गांवों के लोग अक्सर पीएमओ में संपर्क कर अपनी समस्या बताते हैं। जोहड़ी गांव, मालसी, अनारवाला गांव में स्ट्रीट लाइटों और सड़कों की समस्या का समाधान भी पीएमओ के दखल के बाद ही हो पाया। 

300 करोड़ चाहिए सालाना बजट 

परिसीमन से पूर्व में नगर निगम से पास 60 वार्डों के लिए सालाना डेढ़ सौ करोड़ रुपये के बजट की व्यवस्था थी, मगर अब वार्डों की संख्या बढ़ जाने से नए जुड़े क्षेत्रों में विकास के लिए निगम को 150 करोड़ रुपये के अतिरिक्त बजट चाहिए। खुद नगर आयुक्त शासन में 300 करोड़ के सालाना बजट की डिमांड कर चुके हैं। 

बदल गया वार्डों का गणित 

परिसीमन के बाद शहर के 80 प्रतिशत वार्डों का इतिहास-भूगोल बदल चुका है। वार्डों का परिसीमन करीब आठ हजार की आबादी के हिसाब से किया गया है। ऐसे में शहर के 45 वार्ड, जिनकी आबादी नौ हजार से अधिक थी, उनकी स्थिति में भी परिवर्तन आ गया है। इतना ही नहीं ऐसे वार्ड भी प्रभावित हुए हैं, जिनकी आबादी नौ हजार से कम थी। 

निगम के लिए भी बड़ी चुनौती 

72 गांवों के शामिल होने से नगर निगम के लिए भी चुनौती बढ़ गई है। दरअसल, 2008 में जब सीमा विस्तार कर 18 गांव निगम क्षेत्र में शामिल किए गए थे, उन्हीं में अब तक मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। निगम के पास भी सीमित संसाधन हैं। और अधिकारियों के पद भी खाली पड़े हैं। 

निगम के बजट की स्थिति 

-60 वार्ड के हिसाब से निगम के पास थी 150 करोड़ के बजट की व्यवस्था 

-नगर निगम क्षेत्र में शामिल 72 गांवों में विकास कार्यों के लिए 150 करोड़ का बजट अतिरिक्त चाहिए 

-14 वें वित्त आयोग से नगर निगम को मिलते हैं 101 करोड़ रुपये 

-राज्य वित्त से नगर निगम को मिलते हैं 25 करोड़ रुपये 

-हाउस टैक्स और बाकी स्रोतों से आय 25 करोड़ रुपये 

हाउस टैक्स के नाम पर छलावा 

नए वार्डों में सरकार ने हाउस टैक्स के नाम पर भी छलावा किया। सरकार ने नए वार्डों में भवनों को दस साल तक टैक्स से छूट का वादा किया था, लेकिन जब आदेश किए तो सिर्फ आवासीय भवनों को शामिल किया गया। व्यावसायिक भवनों को टैक्स से छूट नहीं दी गई। इसका भारी विरोध भी हुआ, लेकिन हल नहीं निकला। अब नगर निगम इसी माह से यहां व्यावसायिक टैक्स वसूली की तैयारी कर रहा। 

अभी भी सिर्फ शहर पर फोकस 

नगर निगम की नई सरकार का फोकस अभी भी पुराने शहरी क्षेत्र पर ही है। पार्क भी यहीं संवर रहे और हाईटेक सब्जी मंडी भी यहीं सज रही। ओपन एयर जिम शहरी क्षेत्र में ही बना, इसका कोई लाभ ग्रामीण क्षेत्रों की जनता को नहीं मिला। 

नहीं शुरू हुए विकास कार्य 

नगर निगम बोर्ड ने सभी 100 वार्डों में विकास कार्यों के लिए 25-25 करोड़ का बजट स्वीकृत किया था। इसमें पार्षदों की तरफ से प्रस्ताव दिए गए, लेकिन अब तक किसी वार्ड में निर्माण कार्य शुरू नहीं हुए। 

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महापौर सुनील उनियाल गामा का कहना है कि नए वार्डों के साथ किसी भी तरह का अन्याय नहीं किया जा रहा। सभी वार्डों में 25-25 लाख के विकास कार्य मंजूर किए गए हैं व यह कार्य इसी महीने से शुरू हो जाएंगे। नए वार्डों में एलईडी स्ट्रीट लाइटों का करार हो चुका है। कूड़ा उठान की अभी समस्या है लेकिन जल्द ही इसका समाधान निकाला जाएगा। विकास कार्य में किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया जाएगा।

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पूर्व विधायक राजकुमार का कहना है कि भाजपा की कथनी और करनी में जमीन आसमान का अंतर है। ग्रामीण क्षेत्रों को नगर निगम में शामिल करते वक्त सरकार ने बड़े-बड़े सब्जबाग दिखाए थे, लेकिन आज सच सबके सामने है। भवनों पर दस साल टैक्स की छूट दी गई थी, लेकिन सरकार ने छलावा कर इसे सिर्फ आवासीय भवनों पर लागू किया। घोषणा के वक्त यह नहीं कहा गया था कि छूट सिर्फ आवासीय पर लागू होगी। नए वार्डों में कूड़ा नहीं उठ रहा, न सफाई हो रही। नालियां तक नहीं हैं। गंदा पानी बाहर बह रहा। सड़कें तक जर्जर हैं। फिर भी नगर निगम विकास का झूठा ढोल पीट रहा।

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