उत्तराखंड के शहरी क्षेत्रों में मिलेगी सुकून की छांव, पहले चरण में ये पांच शहर शामिल

शहरी क्षेत्रों के निवासियों को भी अब सुकून की छांव नसीब हो सकेगी। केंद्र सरकार की सिटी फॉरेस्ट (नगर वन) योजना के तहत राज्य के नगर निकायों में भी इसे धरातल पर उतारा जाएगा।

By Raksha PanthariEdited By: Publish:Sat, 29 Aug 2020 02:32 PM (IST) Updated:Sat, 29 Aug 2020 09:45 PM (IST)
उत्तराखंड के शहरी क्षेत्रों में मिलेगी सुकून की छांव, पहले चरण में ये पांच शहर शामिल
उत्तराखंड के शहरी क्षेत्रों में मिलेगी सुकून की छांव, पहले चरण में ये पांच शहर शामिल

देहरादून, केदार दत्‍त। उत्तराखंड में सभी शहरी क्षेत्रों के निवासियों को भी अब सुकून की छांव नसीब हो सकेगी। केंद्र सरकार की सिटी फॉरेस्ट (नगर वन) योजना के तहत राज्य के नगर निकायों में भी इसे धरातल पर उतारा जाएगा। प्रथम चरण में इसके लिए पांच शहरों में वन भूमि चयनित कर ली गई है, जिसमें सिटी फॉरेस्ट विकसित किए जाएंगे। धीरे-धीरे इस पहल को प्रदेश के अन्य शहरी क्षेत्रों में भी मूर्त रूप दिया जाएगा।

दरअसल, 71 फीसद वन भूभाग वाला उत्तराखंड अपनी जैवविविधता और बेहतरीन आबोहवा के लिए प्रसिद्ध है। यही वजह भी है कि यहां के पर्यटक स्थलों के साथ ही प्राकृतिक नजारों का लुत्फ उठाने के लिए देश-दुनिया से सैलानी यहां पहुंचते हैं। नैसर्गिक सौंदर्य से परिपूर्ण घाटियों और गांवों में भी पर्यटन से जुड़ी गतिविधियां तेज करने की दिशा में सरकार ने कदम बढ़ाए हैं। दरअसल, गांवों के साथ ही पर्यटक स्थलों के आसपास जंगलों के साथ ही गांवों के अपने वन भी हैं। ये वहां के सौंदर्य में चार चांद लगाने के साथ ही पर्यावरण को भी शुद्ध रखते हैं।

वहीं, राज्य के शहरी क्षेत्रों, विशेषकर मैदानी इलाकों के शहरों की तस्वीर गांवों से एकदम उलट है। शहरों पर आबादी का दबाव निरंतर बढ़ रहा है। ऐसे में वहां सीमेंट-कंक्रीट का जंगल तेजी से पनप रहा है और इससे सांसें घुट रही हैं। रही-सही कसर पूरी कर दी है शहरों की भागदौड़ भरी जिंदगी और बदलती जीवनशैली ने। इस परिदृश्य के बीच यदि कुछ पल कुदरत की छांव में बिताने को मिल जाएं, तो सोने में सुहागा। इसी अवधारणा पर केंद्रित है केंद्र सरकार की सिटी फॉरेस्ट योजना, जिसका एलान केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर किया। इसके तहत देशभर में 200 शहरों में सिटी फॉरेस्ट विकसित किए जाने हैं। सिटी फॉरेस्ट की स्थापना शहरी क्षेत्रों और उनसे लगे क्षेत्रो में वन भूमि पर होना है।

इस कड़ी में उत्तराखंड में भी कसरत हुई और केंद्र के निर्देशों के क्रम में वन महकमे ने प्रथम चरण में सभी आठ नगर निगमों से प्रस्ताव मांगे। ये विभाग को मिल चुके हैं, जिन पर परीक्षण के बाद कोटद्वार, हल्द्वानी, काशीपुर, ऋषिकेश, रुद्रपुर के प्रस्ताव उपयुक्त पाए गए हैं। अलबत्ता, देहरादून में शहर के नजदीक झाझरा में आनंद वन नाम से सिटी फॉरेस्ट पहले ही तैयार हो चुका है, लेकिन कोरोना संकट के कारण इसका लोकार्पण अभी लटका हुआ है।

सेंट्रल कैंपा से मिलेगी धनराशि

शहरी क्षेत्रों में सिटी फॉरेस्ट को वन विभाग और स्थानीय निकाय जनसहभागिता से विकसित करेंगे। प्रमुख वन संरक्षक और मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक जेएस सुहाग बताते हैं कि इस योजना के तहत तैयार होने वाले सिटी फॉरेस्ट (लंग्स ऑफ सिटी) का वित्त पोषण केंद्रीय प्रतिकरात्मक वनरोपण निधि प्रबंधन (सेंट्रल कैंपा) से होगा। सिटी फॉरेस्ट का दायरा न्यूनतम 10 हेक्टेयर से अधिकतम 50 हेक्टेयर तक का होगा।

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वन और पर्यावरण मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत ने बताया कि सिटी फॉरेस्ट योजना के माध्यम से केंद्र सरकार ने शहरों के पर्यावरण के बारे में भी सोचा है। यह एक अच्छी पहल है। उत्तराखंड में पांच शहरों के लिए फिलहाल इस योजना में भूमि चयनित की गई है। देहरादून में पहले ही सिटी फॉरेस्ट तैयार हो चुका है। जल्द ही अन्य शहरों को भी योजना में शामिल किया जाएगा। इसके साथ ही केंद्र सरकार से आग्रह किया गया है कि पर्वतीय क्षेत्र की विषम भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए राज्य में सिटी फॉरेस्ट के भूमि के तय मानकों में कुछ छूट दी जाए।

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