उत्तराखंड में व्यवस्था सुधारने को दावे बड़े-बड़े, पर बुनियादी शिक्षा ही 'गायब'

देहरादून से बुनियादी शिक्षा गायब होती दिख रही है। यह हाल तब हैं जब दून प्रदेश की राजधानी है। दून की शिक्षा व्यवस्था की यह बदहाल तस्वीर असर 2019 की रिपोर्ट में सामने आई।

By Raksha PanthariEdited By: Publish:Sat, 25 Jan 2020 02:00 PM (IST) Updated:Sat, 25 Jan 2020 08:26 PM (IST)
उत्तराखंड में व्यवस्था सुधारने को दावे बड़े-बड़े, पर बुनियादी शिक्षा ही 'गायब'
उत्तराखंड में व्यवस्था सुधारने को दावे बड़े-बड़े, पर बुनियादी शिक्षा ही 'गायब'

देहरादून, आयुष शर्मा। शिक्षा के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध देहरादून से बुनियादी शिक्षा 'गायब' होती दिख रही है। यह हाल तब हैं, जब दून प्रदेश की राजधानी है। पिछले हफ्ते दून की शिक्षा व्यवस्था की यह बदहाल तस्वीर एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (असर) 2019 में सामने आई। जिम्मेदार भले ही राज्य में शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लाख दावे करते हों, मगर हकीकत चिंताजनक है। रिपोर्ट में यह बात सामने आई कि दून में तीसरी कक्षा में पढ़ रहे 75 फीसद बच्चों को दहाई (दो अंकों की संख्याएं) का घटाना नहीं आता। इससे यह तो साफ हो जाता है कि दून ने शिक्षा की बदौलत पूरी दुनिया में जो नाम कमाया आज वही संकट में है, जबकि शिक्षकों के वेतन बढ़ोत्तरी में किसी भी सरकार ने कंजूसी नहीं बरती है, लेकिन इससे इतर ज्ञान बांटने में शिक्षक कंजूसी बरत गए। अन्यथा बच्चों का यह हाल न होता। 

शिक्षा व्यवस्था पर भी हो चर्चा 

बोर्ड परीक्षाओं में बेहतर प्रदर्शन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्कूली छात्रों को जो सलाह दी है वह छात्रों के लिए सबल बनेगी। बच्चों के मन में परीक्षा के प्रति डर कुछ कम होगा। साथ ही पीएम की परीक्षा परिणाम को जीवन की कसौटी न मनाने की सलाह के दूरगामी सार्थक परिणाम सामने आएंगे। दून से भी छात्र पीएम की इस चर्चा में शामिल हुए। सभी ने इसे अद्भुत अनुभव बताया।

पीएम का बच्चों से परीक्षा पर चर्चा करना एक सकारात्मक पहल है। लेकिन क्या यह काफी है, शायद नहीं। क्योंकि इन परीक्षाओं को पास करने के बाद ही जीवन की असल चुनौतियां सामने आती हैं। कितना अच्छा होता अगर देश की दम तोड़ती शिक्षा व्यवस्था पर भी चर्चा होती। इससे लचर शिक्षा व्यवस्था सुदृढ़ होती, तब छात्र परीक्षा के साथ-साथ जीवन में भी सफल होते और देश के विकास में योगदान देते। 

अब देवता सुनेंगे कांग्रेस की 'याचना' 

बुरे वक्त में ही लोग ईश्वर को याद करते हैं। ऐसा ही कुछ कांग्रेस कर रही है। भाजपा को मात देने के लिए कांग्रेस अब देवताओं की शरण में जा रही है। इस क्रम में कांग्रेस पांच फरवरी से 'उत्तराखंड बचाओ देव याचना' यात्रा शुरू करेगी। यात्रा का नेतृत्व कर रहे पूर्व शिक्षा मंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी प्रदेश के 'इंसाफ के देवताओं' के पास भाजपा सरकार की शिकायत करेंगे।

प्रदेश में शिक्षा विभाग की कमान संभाल चुके मंत्री के मुंह से यह बात सुनकर कुछ अटपटा जरूर लग रहा है। लोगों का कहना है कि देवताओं के पास जाने की बजाय कांग्रेस को घर-घर जाकर लोगों को भाजपा की नीतियों की कमियां बतानी चाहिए। साथ ही लोगों की समस्या को लेकर सड़कों पर उतरना चाहिए। कांग्रेस को देवताओं के नहीं बल्कि जनता जनार्धन की दरबार पर याचना करनी चाहिए, वहीं से उनका कल्याण संभव है। 

स्कूली बच्चों से सीख लें अधिकारी 

पूरा देश गणतंत्र दिवस समारोह मनाने के लिए सप्ताहभर से तैयारी में जुटा है। प्राइमरी स्कूलों के बच्चे इस पर्व को वर्षों से सुबह प्रभात फेरी निकाल कर उत्साह से मनाते हैं। वहीं हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय विवि के कुलपति को अपने प्रशासनिक अधिकारियों को गणतंत्र दिवस समारोह में अनिवार्य रूप से आने के लिए आदेश देने पड़ रहे हैं। इस बाबत विवि कुलपति प्रो. अन्नपूर्णा नौटियाल ने आदेश जारी कर कहा कि सभी अधिकारी झंडारोहण और राष्ट्रगान में अनिवार्य रूप से शामिल हों। 

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अगर शिक्षा के ऐसे मंदिर में जब गणतंत्र दिवस समारोह के लिए आदेश देने की जरूरत पड़ रही है तो अन्य रूटीन कार्यक्रमों और बैठकों को कर्मचारी अधिकारी गंभीरता से लेते भी है इस पर सवाल उठना लाजमी है। ऐसे अधिकारियों को देश के राष्ट्रीय पर्व को लेकर प्राइमरी स्कूल के बच्चों की झांकियों से सीख लेने की जरूरत है। 

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