उत्तराखंड से था अटल बिहारी वाजपेयी को खास लगाव
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का उत्तराखंड से गहरा नाता रहा। उत्तराखंड देश के मानचित्र पर अलग राज्य के रूप में वजूद में आया, तो इसमें सबसे निर्णायक भूमिका उन्हीं की थी।
देहरादून, [राज्य ब्यूरो]: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के देहावसान से उत्तराखंड में शोक की लहर है। दरअसल, वाजपेयी का उत्तराखंड से गहरा नाता रहा। दशकों की लंबी मांग के बाद अगर नौ नवंबर 2000 को उत्तराखंड देश के मानचित्र पर अलग राज्य के रूप में वजूद में आया, तो इसमें सबसे निर्णायक भूमिका उन्हीं की थी। राज्य गठन के अलावा प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल में वाजपेयी ने उत्तराखंड को विशेष औद्योगिक पैकेज और विशेष राज्य के दर्जे से भी नवाजा। युगपुरुष अटल के निधन से देवभूमि उत्तराखंड के एक करोड़ से अधिक बाशिंदे भी शोकाकुल हैं तो इसकी वजह यही है कि यहां के लोग अटल बिहारी वाजपेयी से अपार स्नेह करते थे।
देवभूमि उत्तराखंड से अटल बिहारी वाजपेयी का विशेष लगाव था। उत्तराखंड में अलग राज्य निर्माण को लेकर लंबा आंदोलन चला। वर्ष 1996 में अपने देहरादून दौरे के दौरान उन्होंने राज्य आंदोलनकारियों की मांग पर विचार करने का भरोसा दिया था। वाजपेयी ने इस भरोसे को कायम भी रखा और नए राज्य की स्थापना वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के दौरान ही हुई।
राज्य में पहली निर्वाचित सरकार नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व में कांग्रेस की बनी थी। उस वक्त, यानी वर्ष 2003 में प्रधानमंत्री के रूप में नैनीताल पहुंचे वाजपेयी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री तिवारी के आग्रह पर उत्तराखंड के लिए दस साल के विशेष औद्योगिक पैकेज की घोषणा की। यह उत्तराखंड के प्रति उनकी दूरदर्शी सोच ही थी कि औद्योगिक पैकेज देकर उन्होंने नवोदित राज्य को खुद के पैरों पर खड़ा होने का मौका दिया।
दून की सड़कों पर स्कूटर पर घूमा करते थे वाजपेयी
अटल बिहारी वाजपेयी को पहाड़ों की रानी मसूरी बहुत आकर्षित करती थी। जब भी अवसर मिलता, वह मसूरी आते और पहाड़ी की शांत वादियों में आत्ममंथन में समय गुजारते। देहरादून में उनके गहरे पारिवारिक मित्र नरेंद्र स्वरूप मित्तल रहते थे और जब भी वाजपेयी देहरादून आते, उनके पास खासा वक्त गुजारते। आज भी मित्तल परिवार के पास तस्वीरों के रूप में उनकी यादें कैद हैं। स्व. नरेंद्र स्वरूप मित्तल के पुत्र भाजपा नेता पुनीत मित्तल ने उनके साथ बिताए दिनों को स्मरण करते हुए बताया कि वे बचपन से ही अटल जी को घर आते हुए देखते रहे हैं। अटल जी जब भी देहरादून आते थे, उन्हीं के घर रुकते थे।
सरल व्यक्तित्व और ओजस्वी कंठ वाले अटल जी ऐसे थे कि अपने सामान का छोटा सा ब्रीफकेस भी खुद उठाते थे। वे ट्रेन से आते-जाते थे। उनके ब्रीफकेस में एक धोती-कुर्ता, अंतर्वस्त्र, एक रुमाल और एक टूथब्रश होता था। जमीन से जुड़े हुए अटल जी दून की सड़कों पर नरेंद्र स्वरूप मित्तल के साथ 1975 मॉडल के स्कूटर पर सैर करते थे। बाद में जब नरेंद्र स्वरूप मित्तल ने फिएट कार ले ली तो वे अटल जी को उसमें भी घुमाया करते थे।
पुनीत मित्तल ने बताया कि अटल जी को मैंगो-शेक और मूंग की दाल बेहद पसंद थी। हंसमुख स्वभाव के थे और नियमित रूप से सभी अखबार पढ़ते थे। जब भी वे दून आते थे, उस समय नरेंद्र स्वरूप उनके लिए 15-16 अखबार रोजाना मंगाया करते थे। दून के बाद वे मसूरी जाया करते थे व हफ्ते-दो हफ्ते रहकर वापस दिल्ली लौट जाते थे।
पुनीत की 12 फरवरी 1993 को हुई शादी में थी अटल जी दून आए थे। पुनीत ने बताया कि उनके स्मरण में कम से कम 50 बार अटल जी उनके घर आए होंगे। प्रधानमंत्री बनने के बाद जब वे यहां परिवर्तन रैली में आए थे, उस दौरान अटल जी ने पूरे मित्तल परिवार के साथ नाश्ता किया था। पुनीत मित्तल ने बताया कि अटल जी उनके पिता के साथ स्कूटर पर ही मसूरी चले जाया करते थे।
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