नगर निगम के बजट से तर रहे रिश्ते-नातेदार, पार्षद के देवर-देवरानी कागजों में बने सफाई कर्मी

निगम की ओर से बनाई मोहल्ला स्वच्छता समिति के पचास लाख रुपये का मासिक बजट पार्षदों के रिश्ते-नातेदारों पर खर्च हो रहा। पार्षद के देवर-देवरानी कागजों में सफाई कर्मी बने हैं।

By Sunil NegiEdited By: Publish:Sun, 05 Jan 2020 07:42 AM (IST) Updated:Sun, 05 Jan 2020 09:19 AM (IST)
नगर निगम के बजट से तर रहे रिश्ते-नातेदार, पार्षद के देवर-देवरानी कागजों में बने सफाई कर्मी
नगर निगम के बजट से तर रहे रिश्ते-नातेदार, पार्षद के देवर-देवरानी कागजों में बने सफाई कर्मी

देहरादून, अंकुर अग्रवाल। शहर के 100 वार्डों में नगर निगम की ओर से बनाई मोहल्ला स्वच्छता समिति के पचास लाख रुपये का मासिक बजट पार्षदों के रिश्ते-नातेदारों पर खर्च हो रहा। हद यह है कि किसी वार्ड में पार्षद के देवर-देवरानी कागजों में सफाई कर्मी बने हुए तो किसी में ननद, जेठ या भाई-बहन। किसी की दुकान या घर में काम करने वाले नौकर भी समिति में सफाई कर्मी बने हुए। इन 100 समितियों में 635 सफाई कर्मी केवल कागजों में काम कर रहे हैं। हैरानी वाली बात ये है कि नगर निगम में इन कर्मचारियों का कोई रिकार्ड ही नहीं है। निगम हर माह 50 लाख 80 हजार रुपये का भुगतान समितियों के बैंक खाते में कर रहा।

यह खुलासा तब हुआ जब नगर आयुक्त विनय शंकर पांडेय ने स्वास्थ्य अधिकारी से समितियों में रखे कार्मिकों का रिकार्ड तलब किया। मुख्य नगर स्वास्थ अधिकारी ने यह स्वीकार किया कि समितियों में रखे कर्मियों की कोई जानकारी या कोई रिकार्ड स्वास्थ्य अनुभाग के पास नहीं है। सभी कर्मी पार्षदों के जरिए रखे गए और किसी भी पार्षद द्वारा नगर निगम को रिकार्ड उपलब्ध नहीं कराया गया। स्वास्थ्य अधिकारी ने भी यह माना है कि समितियों में रखे कर्मचारियों में गड़बड़ी की शिकायतें मिली हैं। नगर आयुक्त ने अब सभी पार्षदों से समितियों में नियुक्त कर्मियों का ब्योरा मांगा है।

बता दें कि शहर के सौ वार्डो में छह माह पूर्व जुलाई में नगर निगम ने सफाई के लिए मोहल्ला स्वच्छता समितियां गठित की थीं। इनका अध्यक्ष संबंधित वार्डो के पार्षद को बनाया गया और उन्हीं को इन समितियों में सफाईकर्मी को नियुक्त करने, उनकी हाजिरी लगाने, काम की निगरानी समेत वेतन जारी करने के अधिकार भी पार्षदों को सौंप दिए गए। निगम हर माह समिति के खाते में प्रति कर्मी आठ हजार रुपये के हिसाब से वेतन भेज रहा। किसी वार्ड में पांच तो किसी में आठ सफाई कर्मचारियों का वेतन हर माह जारी किया जा रहा, लेकिन निगम को यही नहीं पता कि किस कर्मी के नाम पर वेतन जारी हो रहा। वह सिर्फ पार्षद की ओर से बताई गई कर्मियों की संख्या के हिसाब से वेतन भेज रहा।

बोले अधिकारी

नगर आयुक्‍त विनय शंकर पांडेय का कहना है कि मोहल्ला स्वच्छता समितियों में रखे 635 सफाई कर्मचारियों की नियुक्ति में शिकायतें मिली हैं। पार्षदों की ओर से बीते छह माह से काम कर रही समितियों में नियुक्त किसी कर्मचारी का रिकार्ड निगम को उपलब्ध ही नहीं कराया गया, जो गंभीर बात है। निगम के स्वास्थ्य अनुभाग को अब सभी पार्षदों से वार्डो में रखे गए कर्मचारियों का रिकार्ड एकत्रित करने के आदेश जारी किए गए हैं। उसके बाद कर्मचारियों का सत्यापन कराया जाएगा।

पुराने 610 का पूरा रिकॉर्ड, नए 635 का नहीं

नगर निगम में एक ही श्रेणी के कर्मचारियों के लिए अलग-अलग मापदंड हैं। वर्तमान में शहर में जो मोहल्ला स्वच्छता समिति काम कर रही हैं, उनमें दो श्रेणी हैं। इनमें पहली समिति वर्ष 2004 में बनाई गई थी, जबकि दूसरी समिति 2019 में। वर्ष 2004 में इनमें 610 सफाई कर्मचारी नियुक्त किए गए। इन सभी का पूरा रिकार्ड निगम के पास है और निगम से ही इनका वेतन सीधे बैंक खाते में जाता है। वहीं, 2019 में बनाई गई समिति के 635 कर्मचारियों का निगम के पास कोई रिकार्ड नहीं, जबकि इनके नाम पर निगम से हर माह 50 लाख 90 हजार रुपये वेतन के रूप में जारी हो रहे।

वर्ष 2004 में शहर में सफाई व्यवस्था को सुधारने को तत्कालीन महापौर मनोरमा शर्मा ने हर वार्ड में मोहल्ला स्वच्छता समिति को बनाने का फैसला लिया था। उस वक्त 610 सफाई कर्मचारी इन समिति में नियुक्त किए। ये सभी दैनिक वेतनभोगी प्रक्रिया में नियुक्त किए गए। पिछले साल तक इन कर्मचारियों को महज 200 रुपये प्रतिदिन मानदेय दिया जा रहा था, जिसे सरकार ने पिछले वर्ष ही बढ़ाकर 275 रुपये किया। इस दौरान शहर का दायरा बढ़ा और वार्डो की संख्या साठ से बढ़कर 100 हो गई। सफाई व्यवस्था के तहत महापौर ने जुलाई-2019 में दोबारा से नई मोहल्ला स्वच्छता रखने के आदेश दिए और इनकी नियुक्ति का अधिकार पार्षदों को दिया गया। यही एक चूक निगम पर मौजूदा समय में भारी पड़ रही।

पुराने कर्मचारियों का वेतन भी निगम ही सीधे जारी कर रहा और उनकी निगरानी व हाजिरी भी निगम के सुपरवाइजर कर रहे हैं मगर नई समितियों में कर्मियों पर निगम का कोई नियंत्रण नहीं। पार्षदों की मनमानी और निगम की ‘दरियादिली’ में नई समितियों में रखे 635 कर्मचारियों का वेतन तो जारी हो रहा, लेकिन ये काम कर भी रहे या नहीं, ये जानकारी निगम अफसरों को नहीं।

सफाई कर्मियों ने जताया था विरोध

महापौर सुनील उनियाल गामा के निर्देश पर जुलाई में रखी मोहल्ला स्वच्छता समिति का सफाई कर्मचारी यूनियन ने शुरुआत में ही विरोध किया था। हड़ताल का भी एलान किया गया था, मगर महापौर ने कर्मचारियों को मना लिया। महापौर ने भरोसा दिया था कि समिति में किसी सफाई कर्मी का शोषण नहीं होगा और मानदेय भी सीधे उनके खाते में भेजा जाएगा, मगर इसके बावजूद उनका मानदेय समिति के खाते में ही भेजा जा रहा है। यूनियन इसके विरोध में थी कि कर्मियों का वेतन पार्षद जारी करेंगे। आरोप था कि समिति में कर्मी बंधुआ मजदूर की तरह रह जाएंगे। सफाई कर्मचारी यूनियन के सचिव धीरज भारती ने कहा कि नए समितियों का वेतन सीधे कर्मचारी के खाते में जाए, इसके बारे में महापौर से वार्ता की जाएगी।

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अटका हुआ है संविदाकरण

वर्ष 2016 में तत्कालीन हरीश रावत सरकार द्वारा मोहल्ला स्वच्छता समिति के 408 कर्मचारियों के संविदाकरण का आदेश जारी किया था, लेकिन अब तक यह कर्मी संविदाकृत नहीं हुए। कर्मचारियों ने संविदा के आदेश लागू कराने के लिए मई-2017 में एक हफ्ते हड़ताल भी की और शहर का कूड़ा उठान ठप रखा। इसके बाद सरकार ने संविदाकरण की प्रक्रिया शुरू की मगर इसी बीच अप्रैल-2018 में हाईकोर्ट ने प्रदेश में संविदाकरण पर रोक लगा दी।

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