खिसक रही है यमुना के मायके की जमीन, हिमाचल के ऊर्नी में भी खतरा
उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के दो अहम क्षेत्र भूस्खलन की तरफ बढ़ रहे हैं। उत्तराखंड में यमुना का मायका खरसाली गांव और हिमाचल के उर्नी क्षेत्र में खतरा मंडरा रहा है।
देहरादून, [सुमन सेमवाल]: उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के दो अहम क्षेत्र गंभीर भूस्खलन की तरफ बढ़ रहे हैं। उत्तराखंड में जिस खरसाली गांव को मां यमुनोत्री का मायका कहा जाता है, वह पूरा भूभाग भूस्खलन की चपेट में है। इसी तरह हिमाचल प्रदेश के किन्नौर में सतलुज घाटी में उर्नी क्षेत्र का एक पूरा पहाड़ कभी भी सरककर सतलुज नदी पर 70 मीटर ऊंची झील बना सकता है। यह हिस्सा सामरिक महत्व वाले शिमला-स्फीति राजमार्ग से भी लगा है।
भूस्खलन की यह स्थिति वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के अध्ययन में सामने आई। इन अध्ययन को संस्थान में इंडिया इंटरनेशनल साइंस फेस्टिवल-2018 के तहत आयोजित कार्यक्रम में साझा किया गया।
संस्थान के रिचर्स फेलो विपिन कुमार के अनुसार खरसाली गांव एक त्रिकोणीय टापू के भूभाग पर बसा है, जिसके एक हिस्से पर यमुना नदी बह रही है और दूसरे हिस्से पर उंतागाड़ नदी है। पहाड़ी क्षेत्र में इन नदियों का वेग अत्यधिक होने के चलते गांव की जमीन खिसकने लगी है।
दूसरी तरफ भूकंपीय दृष्टि से भी यह हिस्सा काफी संवेदनशील है। गांव के प्रवेश वाले हिस्से पर 15-20 सेंटीमीटर चौड़ी दरारें उभर आई हैं। इसी तरह कई घर एक तरफ से 7.5 डिग्री के अंश पर खिसकने लगे हैं। कुछ ऐसा ही झुकाव यहां के ऐतिहासिक शनि मंदिर पर भी देखने को मिल रहा है।
किन्नौर के उर्नी गांव क्षेत्र में वर्ष 1990 से सक्रिय भूस्खलन क्षेत्र 10 गुना तक गंभीर स्थिति में पहुंच गया है। इस गांव में वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 500 से अधिक लोग रहते हैं। यही नहीं, इसके 700 मीटर ऊपर सेना का कैंप और चालिंग नामक गांव है। जबकि चार किलोमीटर नीचे की तरफ चागांव नामक कस्बा है।
रिसर्च फेलो विपिन कुमार ने बताया कि उर्नी गांव के छह किलोमीटर ऊपर ऐतिहासिक फॉल्ट लाइन मेन सेंट्रल थ्रस्ट (एमसीटी) गुजर रही है। यह फॉल्ट सक्रिय है और इसके कारण भी भूस्खलन की स्थिति नाजुक दौर में पहुंच गई है। यदि कभी यह पहाड़ खिसका तो सतलुज नदी पर 70 मीटर ऊंची और करीब 150 मीटर तक लंबी झील बन जाएगी। यदि कभी यह टूटी तो निचले हिस्सों में काफी दूर तक तबाही हो सकती है।
इससे पूर्व की घटनाओं पर नजर डालें तो भूस्खलन के चलते पांच बार भारी बाढ़ आ चुकी है और अब तक 30 मिलियन डॉलर की संपत्तियों को नुकसान पहुंचने के साथ ही 200 से अधिक लोग जान गंवा चुके हैं। गांव के लोग नहीं कर रहे यकीन वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के रिसर्च फेलो विपिन कुमार का कहना है कि जब गांव वालों को जमीन खिसकने, भवनों व ऐतिहासिक शनि मंदिर पर मंडरा रहे खतरे के बारे में बताया गया है, मगर वह यकीन करने को तैयार नहीं हैं।
उनका मत है कि शनि मंदिर होने के चलते गांव को कुछ नहीं हो सकता। अध्ययन में यह भी बताया गया है कि इस गांव के भवन कोटी बनाल शैली में बने हैं, जो भूकंपरोधी हैं। हालांकि जब जमीन खिसकती है तो भवनों की क्षमता मायने नहीं रखती।
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