उत्तराखंड की 50 फीसद जनसंख्या जलसंकट की जद में, जानिए वजह

उत्तराखंड में 50 फीसद जनसंख्या जलसंकट की जद में है। आने वाले समय में प्राकृतिक जल स्त्रोतों को दोबारा पुनर्जीवित नहीं किया जा सका तो स्थिति और गंभीर हो जाएगी।

By Edited By: Publish:Fri, 25 Oct 2019 09:34 PM (IST) Updated:Sat, 26 Oct 2019 08:33 PM (IST)
उत्तराखंड की 50 फीसद जनसंख्या जलसंकट की जद में, जानिए वजह
उत्तराखंड की 50 फीसद जनसंख्या जलसंकट की जद में, जानिए वजह

देहरादून, जेएनएन। प्रदेश की 50 फीसद जनसंख्या जलसंकट की जद में है। आने वाले समय में प्राकृतिक जल स्त्रोतों को दोबारा पुनर्जीवित नहीं किया जा सका, तो स्थिति और गंभीर हो जाएगी। लगातार बरसात के व्यवहार में हो रहे परिवर्तन के कारण यह स्थिति बनी है। दि एनर्जी रिसोर्स इंस्टीट्यूट (टेरी) के स्कूल ऑफ एडवांस्ड स्टडीज शोध में यह खुलासा हुआ है। शुक्रवार को प्रिंस चौक स्थित एक निजी होटल में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की वित्तीय सहायता से संचालित राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के तत्वावधान में आयोजित कार्यशाला के समापन पर विभिन्न शोध पत्र पेश हुए। 

'उत्तराखंड में जल संसाधन संरक्षण हेतु प्रतिबद्धता, कार्रवाई और चुनौतियों पर हितधारकों से मंत्रणा' विषय पर आयोजित कार्यशाला में टेरी की रिसर्च स्कॉलर आयुषी ने अपनी रिपोर्ट पेश करते हुए बताया कि उत्तराखंड की 50 फीसद जनसंख्या जलसंकट की जद में है। प्रदेश भर में हर 25 किलोमीटर पर ब्लॉक स्तर पर किए गए सर्वे के आधार पर यह बात सामने आई है। आयुषी ने बताया कि उन्होंने प्रदेश में 103 स्थानों पर यह सर्वे किया है। बताया कि 1970 के बाद से जलवायु परिवर्तन के कारण बरसात के व्यवहार में लगातार परिवर्तन हो रहा है। 

बताया कि शिवालिक श्रेणी के अलावा मध्य हिमालय की श्रेणियों में भी बरसात में कमी आई है। बताया कि प्रदेश में पचास फीसद जनसंख्या ऐसी जगहों पर बसी हुई है, जहां जल स्त्रोत भी कम हैं और बरसात भी कम होती है। ऐसे में प्रदेश में यह स्थिति बन गई है। बताया कि यह संकट लगातार गहराता जा रहा है। सूखते जल स्त्रोतों को पुनर्जीवित नहीं किया गया तो स्थिति और खराब हो जाएगी। कार्यक्रम में जल संस्थान, वन विभाग, वाडिया संस्थान, सिंचाई विभाग समेत 25 संस्थानों के शीर्ष नेतृत्व ने जल संरक्षण और सूखते प्राकृतिक जल स्त्रोतों को पुनर्जीवित करने के लिए एक साथ काम करने का संकल्प लिया। 

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कार्यशाला के समापन पर डीएवी पीजी कॉलेज के प्राचार्य डॉ. अजय सक्सेना, डॉ. विनय सिन्हा, जल संस्थान के महाप्रबंधक डॉ. एचके पांडे ने भी अपने विचार पेश किए। कार्यशाला में डॉ. प्रशांत सिंह, डॉ. विकास कंडारी, भास्कर पंत, यशवंत डोबलियाल, अर्चित पांडेय मौजूद रहे।

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