औषधीय वनस्पति उत्पाद होंगे पेटेंट

विकास धूलिया, देहरादून उत्तराखंड में पाई जाने वाली औषधीय गुणों की वनस्पतियों का वन महकमा शोध के बा

By JagranEdited By: Publish:Sat, 24 Jun 2017 01:00 AM (IST) Updated:Sat, 24 Jun 2017 01:00 AM (IST)
औषधीय वनस्पति उत्पाद होंगे पेटेंट
औषधीय वनस्पति उत्पाद होंगे पेटेंट

विकास धूलिया, देहरादून

उत्तराखंड में पाई जाने वाली औषधीय गुणों की वनस्पतियों का वन महकमा शोध के बाद सुव्यवस्थित तरीके से उत्पादन और मार्केटिंग कराएगा। साथ ही, इन औषधीय पौधों के उत्पादों का पेटेंट भी सरकार कराएगी, ताकि इनके व्यावसायिक दोहन पर लगाम लग सके। इस कड़ी में शुक्रवार को वन विभाग और डीआरडीओ (डिफेंस रिसर्च एंड डेवलेपमेंट ऑर्गनाइजेशन) के अंतर्गत डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ बायो इनर्जी रिसर्च के बीच एक एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए। यह पहला मौका है जब उत्तराखंड सरकार ने वनस्पतियों पर शोध के लिए डीआरडीओ के साथ मिलकर कदम आगे बढ़ाए हैं।

उत्तराखंड को औषधि प्रदेश, यानी हर्बल स्टेट भी कहा जाता है। यह बात दीगर है कि औषधीय वनस्पतियों के उत्पादन और मार्केटिंग को लेकर सरकार राज्य गठन के बाद से पिछले सोलह सालों में अब तक कोई सुस्पष्ट नीति अमल में नहीं ला पाई है। अब वन विभाग ने इस दिशा में पहल की है। शुरुआत में औषधीय गुणों वाली दो वनस्पतियों को शोध के लिए चुना गया है। ये हैं कासनी और बज्रदंती। शुक्रवार को वन विभाग की ओर से कंजरवेटर, फारेस्ट रिसर्च सर्किल, हल्द्वानी संजीव चतुर्वेदी और डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ बायो इनर्जी रिसर्च, हल्द्वानी के डाइरेक्टर डॉ. एसके द्विवेदी ने एमओयू पर हस्ताक्षर किए।

संजीव चतुर्वेदी ने 'जागरण' से बातचीत में जानकारी दी कि शुरुआत में कासनी और बज्रदंती, दो वनस्पतियों के शोध, व्यवस्थित तरीके से उत्पादन, विपणन और इसे स्थानीय जनता के रोजगार से जोड़ने के लिए वन विभाग ने यह कदम उठाया है। इसके तहत ग्रामीणों को इन वनस्पतियों के उत्पादन के संबंध में प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। साथ ही, इस तरह की वनस्पतियों से तैयार उत्पादों को पेटेंट कराया जाएगा। इस एमओयू के बाद राज्य के औषधीय पौधों के संरक्षण में तो मदद मिलेगी ही, राज्य की आर्थिकी के लिए भी यह महत्वपूर्ण साबित होगा। बाद में इसमें अन्य औषधीय वनस्पतियां भी शामिल की जाएंगी।

इनसेट

क्या है कासनी

इसका वानस्पतिक नाम चिकोरियम इंटाईबस है। यह उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर के निचले क्षेत्रों के अलावा पंजाब, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु एवं कर्नाटक में पाई जाती है। मधुमेह, किडनी संक्रमण, रक्तचाप, बवासीर, अस्थमा, लीवर संक्रमण के उपचार में इस पौधे के पत्ती, बीज व जड़ का इस्तेमाल किया जाता है।

क्या है बज्रदंती

इसका वानस्पतिक नाम पोटेंशिला फल्गंस है। उच्च हिमालयी क्षेत्रों में दो से तीन हजार मीटर के मध्य पाई जाती है। उत्तराखंड में उत्तरकाशी, पिथौरागढ़ व मुन्स्यारी में बहुतायत से मिलती है। इस पौधे की जड़ों व पत्ती का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है। जड़ का उपयोग मसूड़ों व दांतों के अलावा पेचिस, जलने के घाव भरने व मूत्र रोगों में होता है।

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