छोटे से वृक्ष पर निवास करती हैं मां कड़ाई, सच्चे मन से मां के दरबार में पहुंचने से मन्नत होती है पूरी

सुईं विशुंग की चार दयोली में शुमार प्रसिद्ध मां कड़ाई देवी का भव्य दरबार घने देवदारों के बीच स्थित है।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 24 Oct 2020 07:30 AM (IST) Updated:Sat, 24 Oct 2020 07:30 AM (IST)
छोटे से वृक्ष पर निवास करती हैं मां कड़ाई, सच्चे मन से मां के दरबार में पहुंचने से मन्नत होती है पूरी
छोटे से वृक्ष पर निवास करती हैं मां कड़ाई, सच्चे मन से मां के दरबार में पहुंचने से मन्नत होती है पूरी

लोहाघाट, जेएनएन : सुईं विशुंग की चार दयोली में शुमार प्रसिद्ध मां कड़ाई देवी का भव्य दरबार कर्णकरायत की पहाड़ी व घने देवदारों के बीच स्थित है। यहां आज भी सच्चे मन से मंदिर पहुंचने वाले भक्तों को मां कड़ाई की अलौकिक शक्तियों से सीधा साक्षात्कार होता है। यहां की प्राकृतिक एवं नैसर्गिक सौंदर्यता मन को विभोर कर देती है। मान्यता के अनुसार मंदिर के एक छोटे से कांटेदार वृक्ष में मां कड़ाई निवास करती हैं। इस वृक्ष की लंबाई जैसी कई वषरें पूर्व थी वैसी ही आज भी है मां कंडा़ई का यह वृक्ष वर्ष भर हरा भरा रहता है। जिसके दर्शन करने को वर्ष भर भक्तों की भीड़ लगी रहती है। चैत्र मास व शारदीय नवरात्र की पहली नवरात्र से मां कड़ाई के दरबार में अपनी मनोकामना को पूर्ण करने के लिए अखंड ज्योति जलाई जाती है जो लगातार दशहरे तक जलती रहती है। नवमी के दिन मंदिर में रात्रि में देवी जागरण का आयोजन किया जाता है। दूर दूर से नि:संतान महिलाएं मन्नतें मांगने के लिए मंदिर में आती है। कड़ाई मां उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर स्वप्न के रूप में महिलाओं को दर्शन देकर उनकी मनोकामना पूर्ण करती हैं। ======== न्याय की गद्दी में फरियादियों के दुखों का होता है निवारण

लोहाघाट : मंदिर के पुजारी मदन पुजारी ने बताया कि नवमी की मध्य रात्रि में मंदिर के पुजारी द्वारा मां भगवती की तथा बीस गांव विशुंग और पांच गांव सुईं के देव डांगर समस्याओं के निराकरण के लिए सवा मुट्ठी चावल खरीद के रूप में देव गद्दी में डाले जाते हैं। जिनका न्यायिक गद्दी में माता रानी से स्वत: ही साक्षात्कार होकर बारी-बारी से समस्त भक्तों की पीड़ा का निराकरण किया जाता है। यहां की एक विशेषता देवी-देवताओं तथा पितृ आदि से संबंधित जो फैसला कहीं हल नहीं हो पाते है। वह फैसले आसानी से हल किया जाते है। ======= दशहरे के दिन देव डांगर दूध और चावल की खाते है गाल

लोहाघाट : दशहरे के दिन बुड़चौंड़ा गलचौंड़ा से चार दयोली होते हुए देव-डांगर देवी-देवताओं के अस्त्र-शस्त्र हाथ में लेकर नंगे पांव मां कड़ाई के दरबार तक पहुंचते है। जहा वैदिक मंत्रोच्चारण एवं विधि-विधान पूर्वक गोदान एवं हवन यज्ञ के बाद देव डांगर अवतरित होकर कच्चे दूध तथा चावल की गाल खाते हुए भक्तों को आशीर्वाद देते हैं।

======== साल भर ब्रह्माचर्य का पालन करते है पुजारी

लोहाघाट : मंदिर के पुजारी बहुत ही कठिन तप से होकर गुजरते हैं। साल भर ब्रह्माचर्य जीवन का पालन कर नंगे पांव चलते हैं। पूर्णिमा, संक्रांति एवं अमावास्या पर्व पर मंदिर के पुजारी द्वारा बीस गांव विशुंग एवं पांच गांव सुईं के प्रत्येक परिवारों से दूध, अक्षत, चावल, घी एकत्रित कर मां कड़ाई मंदिर में भोग लगाते हैं।

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