आठ साल से निदेशालय व जिला पंचायत के बीच घूम रही सीपी टैक्स की फाइल

जिला पंचायत अपनी आय बढ़ाने को विगत आठ साल से प्रयासरत है लेकिन निदेशालय की लचर कार्यप्रणाली के चलते यह संभव नहीं हो पा रहा।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 18 Jan 2021 12:24 AM (IST) Updated:Mon, 18 Jan 2021 12:24 AM (IST)
आठ साल से निदेशालय व जिला पंचायत के बीच घूम रही सीपी टैक्स की फाइल
आठ साल से निदेशालय व जिला पंचायत के बीच घूम रही सीपी टैक्स की फाइल

विनय कुमार शर्मा, चम्पावत

जिला पंचायत अपनी आय बढ़ाने को विगत आठ साल से प्रयासरत है लेकिन निदेशालय की लचर कार्य प्रणाली के चलते यह संभव नहीं हो पा रहा है। जिपं ने आय बढ़ाने को वर्ष 2012 में बोर्ड बैठक में प्रस्ताव पारित करते हुए संपत्ति एवं विभव कर (सीपी टैक्स) लागू करने को प्रस्ताव बनाकर निदेशालय भेजा गया। जिससे गजट का प्रकाशन हो सके लेकिन गजट का प्रकाशन तो दूर नए पंचायती राज एक्ट के बन जाने के बाद निदेशालय ने प्रस्ताव को खटाई में डाल दिया। जिला पंचायत नए एक्ट के तहत विगत तीन साल से सीपी टैक्स प्रस्ताव बनाने के लिए टैक्स की दर निर्धारित करने को निदेशालय से पत्राचार कर रहा लेकिन निदेशालय में बैठे अधिकारियों के कान में जूं तक नहीं रेंग रही। लिहाजा एक बार फिर जिला पंचायत ने निदेशालय को रिमाइंडर पत्र भेजा है।

जिला पंचायत ने अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए प्रदेश के अन्य जिलों की तरह ही जनपद में सीपी टैक्स लगाने के लिए अप्रैल 2012 में बोर्ड बैठक में इसे पारित कराकर अक्टूबर 12 में गजट नोटिफिकेशन के लिए आयुक्त को फाइल भेज दी गई। उस दौरान उत्तर प्रदेश के समय का पंचायती राज एक्ट लागू था। नवंबर 2012 में आयुक्त ने कुछ आपत्तियां लगाकर फाइल वापस जिपं में भेज दी। दिसंबर 2013 में जिपं ने आपत्तियों का निस्तारण कर फाइल फिर से आयुक्त के पास भेज दी। जिसके बाद सितंबर 2014 में आयुक्त ने जिपं अधिनियम 1994 के तहत कार्यवाही करने के लिए आदेशित कर दिया लेकिन गजट नहीं छपवाया और फाइल जिपं को भेज दी। इस पर फरवरी 2015 को जिपं ने फिर से फाइल आयुक्त को भेज दी। जिससे जिपं ने लिखा कि बगैर गजट प्रकाशन के कुछ नहीं हो सकता। वहीं 2016 में उत्तराखंड का पंचायती राज एक्ट बन गया। इस पर मई 2017 में आयुक्त ने डीएम को पत्र लिखकर प्रस्ताव का विधिक परीक्षण कराने को कहा। जुलाई 2017 में डीएम ने विधिक राय लेने के बाद जिला पंचायत को नए पंचायती राज एक्ट बनने के बाद नए एक्ट के तहत पुन: प्रस्ताव बनाने के लिए निर्देशित किया। इसके बाद जिला पंचायत ने अगस्त 2017 में नए एक्ट के तहत प्रस्ताव बनाने के लिए निदेशालय से टैक्स की दर निर्धारित करने के लिए पत्र लिखा। लेकिन आज तक इस पत्र का जवाब निदेशालय से नहीं मिला। जिपं द्वारा कई बार इसको लेकर रिमाइंडर भी भेजा गया है। टैक्स दर निर्धारित न होने जिला पंचायत नया प्रस्ताव तैयार नहीं कर पा रहा है। प्रति वर्ष होती करीब 12 लाख की आमदनी

अगर सीपी टैक्स लागू हो जाता तो जिपं को प्रति वर्ष करीब 12 लाख रुपये की आमदनी होती। सीपी टैक्स ग्रामीण क्षेत्र में उन लोगों से लिया जाता है तो आयकर दाता होते हैं। जनपद के ग्रामीण क्षेत्रों में करीब 25-30 हजार आयकर दाता है। पूर्व में चल रहे एक्ट के तहत उन ग्रामीण आयकर दाताओं से तीन पैसे प्रति रुपये के हिसाब से सीपी टैक्स निर्धारित था। जिपं को वर्तमान में इससे होती है आमदनी

जिला पंचायत को वर्तमान में करीब तीन हजार दुकानों से करीब 18 लाख प्रति वर्ष लाइसेंस शुल्क्, बनबसा स्थित छह दुकानों से करीब 1.50 लाख प्रति वर्ष व करीब पांच लाख रुपये प्रति वर्ष टेंडर फार्म से आमदनी होती है। अगर सीपी टैक्स लागू हो जाता तो जिपं की करीब 12 लाख की आमदनी बढ़ जाती है। केवल चम्पावत व पिथौरागढ़ में नहीं लिया जाता सीपी टैक्स

एएमए राजेश कुमार ने बताया कि सीपी टैक्स प्रदेश के दो जनपदों चम्पावत व पिथौरागढ़ में ही नहीं लिया जाता। अन्य 11 जनपदों में यह टैक्स लागू है। यहां टैक्स लागू करने की कवायद की जा रही है। जो निदेशालय में लंबित पड़ा हुआ है। वर्जन-

सीपी टैक्स लागू करने के लिए 2012 में निदेशालय में गजट नोटिफिकेशन के लिए भेज दिया गया था लेकिन नए पंचायती राज एक्ट बन जाने के बाद आगे की कार्यवाही नहीं हो पाई। निदेशालय में पत्र भेजकर नए एक्ट के तहत टैक्स निर्धारण करने की मांग की गई है। इससे जिला पंचायत की करीब 12 लाख की आमदनी बढ़ जाएगी। = राजेश कुमार, अपर मुख्य अधिकारी, जिला पंचायत चम्पावत सीपी टैक्स लागू करने के जिला पंचायत चम्पावत से पूर्व में फाइल आई होगी। अभी यह मेरी जानकारी में नहीं है। अगर निदेशालय में कोई फाइल लंबित है तो जिपं को रिमाइंडर पत्र भेजना चाहिए। मुझसे वार्ता करनी चाहिए। अगर कोई फाइल लंबित है तो इसमें जरूरी कार्यवाही की जाएगी। = हरीश चंद्र सेमवाल, निदेशक, पंचायती राज, उत्तराखंड

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