मध्य हिमालय तक महकने लगा जड़ी बूटियों का संसार

अब मध्य हिमालय तक जड़ी बूटी के साथ अन्य औषधीय एवं सगंध पौधों की खेती हो सकेगी।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 01 Oct 2020 05:54 AM (IST) Updated:Thu, 01 Oct 2020 05:54 AM (IST)
मध्य हिमालय तक महकने लगा जड़ी बूटियों का संसार
मध्य हिमालय तक महकने लगा जड़ी बूटियों का संसार

दीप सिंह बोरा, अल्मोड़ा

अब मध्य हिमालय तक जड़ी बूटी के साथ अन्य औषधीय एवं सगंध पौधों की खेती हो सकेगी। विज्ञानियों ने इस दिशा में बड़ी सफलता हासिल कर विलुप्त हो रही औषधीय प्रजातियों के संरक्षण, व्यावसायिक खेती और स्थानीय स्तर पर स्वरोजगार की राह खोली है। उत्तराखंड में चौदास घाटी (पिथौरागढ़) से जड़ी बूटी उत्पादन की सुखद शुरुआत हो गई है। वहां 11 गांवों के 172 ग्रामीण व्यावसायिक खेती शुरू कर हर्बल उत्पाद कंपनियों को सीधे अपनी उपज बेच आर्थिकी मजबूत कर रहे हैं।

दरअसल, उच्च हिमालयी क्षेत्रों में अवैज्ञानिक दोहन, वनाग्नि व अन्य कारणों से जड़ी बूटियां व औषधीय प्रजातियां नष्ट होती जा रही हैं। जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण शोध एवं सतत विकास संस्थान कोसी कटारमल (अल्मोड़ा) के विज्ञानियों ने दो वर्ष पूर्व जड़ी बूटी संरक्षण को कदम बढ़ाए। हिमालयी निचली घाटियों पर शोध कर संभवानाएं तलाशीं। आबोहवा, मिट्टी आदि माकूल मिली। अध्ययन में पता लगा कि स्थानीय बाशिंदे दैनिक जीवन में परंपरागत रूप से जड़ी बूटियों का उपयोग तो करते हैं, पर सरकारी प्रोत्साहन व तकनीक न मिलने से व्यावसायिक खेती नहीं करते।

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15 प्रजातियों से शुरुआत, कंपनियों से करार

डेढ़ वर्ष पूर्व विज्ञानियों ने समुद्रतल से ढाई हजार मीटर की ऊंचाई पर चौदास घाटी के नारायण आश्रम क्षेत्र को प्रयोग के लिए चुना। प्रशिक्षणशाला बनाई। शुरूआत में संकटग्रस्त गंधरैणी, कटुकी, जंबू, जटामासी, सम्यों, वन तुलसी, वज्रदंती, चंद्रा, कूट, मेदा एवं महामेदा आदि 15 प्रजातियां उगाई। बेहतर बढ़वार पर राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के तहत नामचीन हर्बल उत्पाद कंपनियां डाबर, पतंजिल, इमामी आदि के प्रतिनिधियों व ग्रामीणों के बीच सीधा संवाद कराया। विपणन व मूल्य तय कराया। विज्ञानियों की पहल, कंपनी प्रतिनिधियों की सहमति व दिलचस्पी अब रंग ला रही।

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तीन विद्यालयों में नर्सरी

मध्य हिमालय में सफल प्रयोग के बाद जीबी पंत संस्थान के विज्ञानियों ने चौदास घाटी स्थित प्राथमिक स्कूल नियाग व पस्ती तथा इंटर कॉलेज पागू में नर्सरी भी स्थापित की है। ताकि नई पीढ़ी जड़ी बूटी का महत्व समझ सके।

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18 से 22 माह में उपज तैयार

जड़ी बूटिया 18 से 22 माह के अंतराल में व्यावसायिक उपयोग के लिए तैयार हो जाती हैं। एक गाव से एक वर्ष में पाच से दस लाख रुपये की आमदनी का लक्ष्य रखा गया है। डेढ़ वर्ष में किसानों की आय बढ़ने लगी है। आगे पौध व बीज जीबी पंत संस्थान के विज्ञानी ही मुहैया कराएंगे।

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इस प्रयोग से दो लाभ हो रहे। जिस हिमालयी क्षेत्र से अवैज्ञानिक दोहन हो रहा था वह रुकेगा। इससे वहां की जैवविविधता बची रहेगी। दूसरा, किसान कंपनियों को सीधा उत्पाद बेच रहे। उन्हें वाजिब मूल्य भी मिलने लगा है। हमने संबंधित कंपनियों से किसानों का अनुबंध कराया है। उच्च व मध्य हिमालय के हिसाब से जड़ी बूटी की खेती को बढ़ावा दे संकटग्रस्त पादप प्रजातियों को संरक्षित कर रहे।

- डॉ. आइडी भट्ट, परियोजना प्रमुख जीबी पंत संस्थान कोसी कटारमल

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'हिमालयी क्षेत्रों में जड़ी बूटियों के संरक्षण को मिशन के तहत तमाम परियोजनाएं चल रही हैं। कोविड-19 के दौर में यह आजीविका का बड़ा माध्यम भी बन सकता है। जड़ी बूटी का विश्व बाजार तेजी से उभर रहा है। इसका सतत प्रबंधन बेहद जरूरी है।

- प्रो. किरीट कुमार, नोडल अधिकारी राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन

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