चिन्हीकरण प्रक्रिया पर उठाए सवाल

By Edited By: Publish:Mon, 01 Sep 2014 11:00 PM (IST) Updated:Mon, 01 Sep 2014 11:00 PM (IST)
चिन्हीकरण प्रक्रिया पर उठाए सवाल

जागरण संवाददाता, अल्मोड़ा: सर्वदलीय संघर्ष समिति ने राज्य आंदोलनकारियों के चिन्हीकरण की मौजूदा प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाते हुए मानकों में शिथिलीकरण करने की मांग तेज कर दी है। संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने इस बावत मुख्यमंत्री को भी पत्र लिखा है और सोमवार को कलक्ट्रेट पहुंचकर मुख्यमंत्री को संबोधित ज्ञापन जिलाधिकारी को सौंपा।

सर्वदलीय संघर्ष समिति के अध्यक्ष पीसी जोशी व प्रवक्ता डा.शमशेर सिंह बिष्ट का कहना है कि राज्य आंदोलनकारियों के चिन्हीकरण के मानकों का और उदार बनाया जाना चाहिए ताकि अधिक से अधिक आंदोलनकारियों को इसका लाभ मिल सके। उनका कहना है कि राज्य आंदोलन में समाज के सभी तबकों ने भरपूर भागीदारी निभाई थी, लेकिन आज कुछ चुनिंदा लोगों को ही राज्य आंदोलनकारी घोषित किया जा रहा है। सरकार की इन नीतियों से लोगों में गलत संदेश जा रहा है और लोगों में वैमनस्यता की भावना पैदा हो रही है।

मुख्यमंत्री को भेज गए पत्र में कहा गया है कि 1994 के एतिहासिक उत्तराखंड राज्य आंदोलन में यहां के प्रत्येक परिवार और समाज के हर तबके ने बढ़ चढ़कर भागीदारी निभाई थी। सभी के सहयोग से यह आंदोलन प्रचंड जनांदोलन में तब्दील हो गया था। उत्तराखंड की जनता के व्यापक जनसमर्थन के फलस्वरूप तत्कालीन केंद्र सरकार ने 2000 में पृथक उत्तराखंड राज्य का गठन कर दिया गया, लेकिन आज जब राज्य आंदोलनकारियों के चिन्हीकरण की बात होती है तो कुछ चंद लोगों को आंदोलनकारी घोषित कर दिया गया और इस जनांदोलन का नेतृत्व करने वाले प्रमुख आंदोलनकारियों को पूरी तरह नकार दिया गया, जो सरासर अनुचित है।

डीएम को ज्ञापन सौंपने वालों में संघर्ष समिति के अध्यक्ष पीसी जोशी, प्रवक्ता डा.शमशेर बिष्ट, पूरन चंद्र तिवाड़ी, दयाकृष्ण कांडपाल, घनानंद जोशी, नवीन चंद्र जोशी, पूरन सिंह ऐरी, कर्नल शशि शेखर जोशी, अमर प्रकाश, बसंत खनी, महेश परिहार, दीवान बनौला, कुंदन सिंह, बसंत जोशी, एलडी शर्मा, दौलत सिंह, राम सिंह बोरा, पूरन सिंह बनौला, गोपाल सिंह गैड़ा, गोविंद राम, रमेश सिंह, सुंदर राम, दीवान राम आदि लोग शामिल थे।

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